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This Article is From Mar 03, 2015

बनारस की होली का मिजाज और परम्परा

बनारस : भोले शंकर का गौना, गुलाल की फुहार के बीच विदा हुई पार्वती, रंगों से सराबोर बारातियों और श्मशान में चिता भष्म की होली के साथ शुरू हुई बनारस की होली।

फागुन शुक्ल एकादशी यानी इस दिन बाबा भोलेनाथ अपनी पत्नी पार्वती  को ससुराल से विदा कराने के लिए गौना बारात लेकर जाते हैं। चूंकि ये फागुन का महीना होता है लिहाजा बाबा की बारात अबीर गुलाल और ढोल नगाड़ों की गूंज के साथ निकलती है। इसलिए इसे रंग भरी एकादशी कहा जाता है। इस दिन बाबा के भक्त उनके गाल पर पहला गुलाल मलने के साथ ही उनसे होली के हुड़दंग की इज़ाज़त भी ले लेते हैं।

शनिवार को बनारस में विश्वनाथ गली में ऐसा ही मस्ती का नज़ारा दिखा जहां अबीर गुलाल इतना उड़ा कि जमीन लाल गलीचा सी नज़र आने लगी। फिजाओं में शंखनाद और डमरुओं की गड़गड़ाहट गूंज उठी और रंग से सराबोर हज़ारों भक्तों की भव्यता के बीच चांदी की पालकी में बाबा की बारात निकली।

भोर होते ही महन्त निवास पर बाबा की बरात का उल्लास नज़र आने लगा। वेद मन्त्रों के सस्वर ध्वनि के बीच वर-वधू को पंचामृत स्नान और साज श्रृंगार किया गया। रेशमी साड़ी में सजी गौरा और बाबा पहने खादी की धोती, सुन्दर परिधान और सिर पर सेहरा बांध कर भोलेनाथ की बरात निकली।

गौरा के घर पहुंच कर बाबा के साथ पालकी पर पार्वती विदा हुई तो हर तरफ हर हर महादेव के नारे गूंजने लगे। लोगों में पालकी उठाने की होड़ लगी रही। फिर जब घर आ गए तो उनके दर्शन के लिए पूरे परिवार के साथ उनका दरबार सजा रहा। इस बीच भक्तों की अपनी होली अबीर गुलाल और डमरुओं की थाप के साथ शाम तक चलती रही।

मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन गौना बारात में उनके भक्तगण रहते हैं लेकिन उनके दूसरे गण यानी भूत प्रेत औघड़ वहां नहीं जा पाते। लिहाजा दूसरे दिन भोलेनाथ बनारस के मणिकर्णिका घाट जाते हैं स्नान कर चिता भष्म मलने। तो दूसरे दिन मणिकर्णिका के श्मशान घाट पर हर साल की तरह इस वर्ष भी बाबा पहुंचे तो वहां आरती के बाद उनके गण जमकर चिता भष्म के साथ होली खेली। इसमें देश ही नहीं बल्कि विदेशों से आए तमाम पर्यटक भी इस नज़ारे को देख कर अभिभूत हो गए क्योंकि एक तरफ जहां चिताएं जल रही थीं और ग़म के सागर में डूबे उनके परिजन थे तो वहीं दूसरी तरफ चिता भष्म की होली की मस्ती।

परम्पराओं और जीवन जीने की यही विविधिता शायद बनारस को पूरी दुनिया से अलग करती है। मान्यता भी है कि 'काश्याम् मरणाम् मुक्तिः' यानी काशी में मरने पर मुक्ति मिल जाती है। ये मुक्ति स्वयं भगवान शंकर यहां अपने तारक मन्त्र से देते हैं। तो ऐसे मुक्ति के देवता की इस श्मशान की होली में सभी शामिल होते हैं और बनारस में इसके बाद से होली की धूम करने की इज़ाज़त भी भक्तों को मिल जाती है।

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