जर्मनी के बॉन से यूनिमान फरीद के साथ बातचीत
बॉन:
जहां दिल्ली में एक ओर प्रदूषण की मार है और ऑड-ईवन जैसे तरीकों को अपना कर कम से कम गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण पर काबू करने की बात सोची जा रही है. वहीं यूरोप में ट्रैफिक और प्रदूषण दोनों को काबू करने के लिये जो एक चीज अपनाई जाती है वो है- 'साइकिल.'
जर्मनी के बॉन में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कवर करने पहुंचे लोगों को एक बात जो साफ दिखती है, वो ये है कि साइकिल के लिये जर्मनी के लोगों की मोहब्बत. यहां लोग लम्बी दूरियां साइकिल से तय करते हैं, चाहे दफ्तर जाना हो या फिर किसी दोस्त के घर. ये बात हमें 53 साल के शख्स यूनिमान फरीद से मिलकर पता चली जो हर रोज 20 किलोमीटर दूर से ऑफिस साइकिल पर आते हैं.
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यूनिमान फरीद ने बताया कि 'मैं 40 किलोमीटर साइकिल हर रोज़ चलाता हूं. मेरे दफ्तर में करीब 200 लोग साइकिल से ही आते हैं. एक साथी तो 30 किलोमीटर दूर से आता है यानी वह हर रोज़ 60 किलोमीटर साइकिल चलाता है.'
अगर आप बॉन शहर में होंगे, तो दिन हो या रात, सड़क पर आपको साइकिल चलाते लोगों की कोई कमी महसूस नहीं होगी. यहां साइकिलिंग ट्रैक और फुटपाथ काफी चौड़े हैं. यहां साइकिल खरीदने की जरूरत नहीं, बल्कि आप मोबाइल पर एक एप डाउनलोड करके साइकिल किराये पर ले सकते हैं. यहां के साइकिल स्टैंड्स को देखकर अंदाजा लगता है कि यहां ये दुपहिया कितना लोकप्रिय है.
कभी एनडीटीवी इंडिया में काम कर चुके साथी ओंकार सिंह पिछले 8 साल से जर्मनी में हैं. ओंकार सिंह बताते हैं कि ''यहां साइकिल चलाना काफी 'कूल' माना जाता है. शहरों में बड़ी कारें रखना अच्छी बात नहीं मानी जाती और लोग उसे दिखावा मानते हैं.''
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VIDEO :साइकिल है ऑड-ईवन का जवाब
वैसे जर्मनी में कार रखना काफी महंगा भी है. साइकिल के अलावा यहां दूसरी पसंदीदा सवारी है ट्राम और ट्रेन. अक्सर लम्बी दूरी तय करने वाले इनका इस्तेमाल करते हैं. बॉन में 60 प्रतिशत से ज्यादा लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ही इस्तेमाल करते हैं. हां साइकिल, ट्रेन या एक मज़बूत पब्लिक ट्रांसपोर्ट ही प्रदूषण और ट्रैफिक का माकूल जवाब है और जर्मनी ही नहीं पूरे यूरोप में ये समझ दिखती है. लेकिन दिल्ली में सड़क पर साइकिल चलाना जानलेवा है और कार में चलने वाले खुद को सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति मानते हैं. इस तरह से देखा जाए तो अगर दिल्ली को बेहतर बनाना है तो सोच और व्यवस्था दोनों में बदलाव की ज़रूरत है.
जर्मनी के बॉन में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कवर करने पहुंचे लोगों को एक बात जो साफ दिखती है, वो ये है कि साइकिल के लिये जर्मनी के लोगों की मोहब्बत. यहां लोग लम्बी दूरियां साइकिल से तय करते हैं, चाहे दफ्तर जाना हो या फिर किसी दोस्त के घर. ये बात हमें 53 साल के शख्स यूनिमान फरीद से मिलकर पता चली जो हर रोज 20 किलोमीटर दूर से ऑफिस साइकिल पर आते हैं.
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यूनिमान फरीद ने बताया कि 'मैं 40 किलोमीटर साइकिल हर रोज़ चलाता हूं. मेरे दफ्तर में करीब 200 लोग साइकिल से ही आते हैं. एक साथी तो 30 किलोमीटर दूर से आता है यानी वह हर रोज़ 60 किलोमीटर साइकिल चलाता है.'
अगर आप बॉन शहर में होंगे, तो दिन हो या रात, सड़क पर आपको साइकिल चलाते लोगों की कोई कमी महसूस नहीं होगी. यहां साइकिलिंग ट्रैक और फुटपाथ काफी चौड़े हैं. यहां साइकिल खरीदने की जरूरत नहीं, बल्कि आप मोबाइल पर एक एप डाउनलोड करके साइकिल किराये पर ले सकते हैं. यहां के साइकिल स्टैंड्स को देखकर अंदाजा लगता है कि यहां ये दुपहिया कितना लोकप्रिय है.
कभी एनडीटीवी इंडिया में काम कर चुके साथी ओंकार सिंह पिछले 8 साल से जर्मनी में हैं. ओंकार सिंह बताते हैं कि ''यहां साइकिल चलाना काफी 'कूल' माना जाता है. शहरों में बड़ी कारें रखना अच्छी बात नहीं मानी जाती और लोग उसे दिखावा मानते हैं.''
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वैसे जर्मनी में कार रखना काफी महंगा भी है. साइकिल के अलावा यहां दूसरी पसंदीदा सवारी है ट्राम और ट्रेन. अक्सर लम्बी दूरी तय करने वाले इनका इस्तेमाल करते हैं. बॉन में 60 प्रतिशत से ज्यादा लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ही इस्तेमाल करते हैं. हां साइकिल, ट्रेन या एक मज़बूत पब्लिक ट्रांसपोर्ट ही प्रदूषण और ट्रैफिक का माकूल जवाब है और जर्मनी ही नहीं पूरे यूरोप में ये समझ दिखती है. लेकिन दिल्ली में सड़क पर साइकिल चलाना जानलेवा है और कार में चलने वाले खुद को सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति मानते हैं. इस तरह से देखा जाए तो अगर दिल्ली को बेहतर बनाना है तो सोच और व्यवस्था दोनों में बदलाव की ज़रूरत है.
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