ट्रकों में लदकर वापस जा रहे हैं मजदूर
भोपाल: हजारों की तादाद में रोज प्रवासी मजदूर मध्यप्रदेश की सीमा में आ रहे हैं. कहते हैं कि मजबूरी है कि मजदूर हैं, अब तो कई लोग इनकी मजबूरी का फायदा उठाने लगे हैं. राज्य सरकारों पर भी आरोप लगा रहे हैं कि वो संवेदनहीन बने हुए हैं नंदलाल मुंबई में प्रिंटिंग प्रेस में काम करते थे, 6 दिनों से साइकिल चलाकर मध्यप्रदेश पहुंचे हैं, उत्तरप्रदेश के बांदा जाना है. मजबूरी में साइकिल की भी दूनी कीमत देनी पड़ी. कुछ पैदल ही चले आ रहे हैं. नंदलाल कहते हैं अभी ली थी साइकिल, 5500 रु में दिया .. महंगा ही दिया मजबूरी में क्या करेंगे. जब हमने पूछा क्या वो वापस लौटेंगे तो उन्होंने कहा अब मुंबई नहीं लौटेंगे.
पुणे में मज़दूरी करने वाले बृजेश 7-8 दिन से पैदल चल रहे हैं घर जाना है कोई साधन नहीं मिला. विस्थापन की तस्वीरें बड़ी भयावह हैं जिसको जो मिला रहा है, टैक्सी ऑटो, साइकिल में पैदल है एक ट्रक खड़ा हो रहा लोग कूदने को तैयार हैं. विनोद के साथ दस लोग हैं, यूपी जाना है. भिवंडी में पावरलूम में काम करते थे ... कहते हैं "लूम चलाते थे, काम धंधा है नहीं क्या करेंगे महाराष्ट्र सरकार ने बॉर्डर पर फेंक दिया उठाकर, अब भोपाल फेंक दिया.. पैदल चले अब वापस जा रहे हैं."
परेशानी की कुछ ऐसी तस्वीरें भी आईं जो मन को झंझोर देती है. ये परिवार आजमगढ़ से बिलासपुर दो बच्चे और अपनी दिव्यांग पत्नी को लिए हाथ ठेला गाड़ी से कटनी पहुंचा लगभग 435 किलोमीटर पैदल सफर तय करने के बाद कटनी पुलिस की तरफ से उन्हें मदद मिली.
खाना खिलाकर, चप्पल पहनाकर उन्हें छत्तीसगढ़ रवाना किया गया. सरकार दावे कर रही है कि कोई पैदल या ट्रक में ठुंसकर नहीं जाएगा लेकिन हकीकत आप खुद देख लें, 3000-3000 देकर ये ट्रक में सफर को मजबूर हैं.
मुंबई से बनारस के लिये निकले सन्नी कुमार बताते हैं, 3000 रु लिये हैं, ट्रक में 35-36 लोग बैठे हैं.राम सिंह चौहान उत्तर प्रदेश सरकार से नाराज़ दिखे, साफ कहा व्यवस्था अगर यूपी में हो तो क्यों आना पड़ेगा, चार दिन से धक्का खाकर आ रहे हैं, 2 महीने से बैठे हैं खाने पीने की तकलीफ हो रही है.