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This Article is From Jan 08, 2018

अफसोस है सरकार ने पत्रकारिता में एक ईमानदार कोशिश को गलत समझा : द ट्रिब्यून

'द ट्रिब्यून' अखबार के एडिटर इन चीफ़ हरीश खरे ने कहा कि सरकार ने पत्रकारिता में एक ईमानदार कोशिश को गलत समझा और मामले को सामने लाने वाले के खिलाफ ही आपराधिक कार्रवाई शुरू कर दी.

अफसोस है सरकार ने पत्रकारिता में एक ईमानदार कोशिश को गलत समझा : द ट्रिब्यून
UIDAI ने कहा है कि पुलिस ने केस इसलिए दर्ज किया, क्योंकि इस मामले में अपराध हुआ है.
चंडीगढ़/नई दिल्ली: आधार कार्ड से संबंधित डेटा में सेंध से जुड़ी 'द ट्रिब्यून' की खबर पर यूआईडीएआई की ओर से मामला दर्ज किए जाने के बाद अखबार के एडिटर इन चीफ़ हरीश खरे ने कहा है कि हमारी स्टोरी एक बहुत ही वाजिब चिंता के जवाब में थी. हमें अफ़सोस है कि सरकार ने पत्रकारिता में एक ईमानदार कोशिश को गलत समझा और मामले को सामने लाने वाले के खिलाफ ही आपराधिक कार्रवाई शुरू कर दी. हम अपनी आजादी की रक्षा करने और गंभीर खोजी पत्रकारिता को बनाए रखने के लिए इस मामले में सभी कानूनी पहलुओं पर विचार कर रहे हैं.

हरीश खरे ने कहा, 'मेरे सहकर्मी और मैं खुद मीडिया संगठनों और पत्रकारों की ओर से दिखाई जा रही एकजुटता को लेकर उनके आभारी हैं. ‘द ट्रिब्यून’ की ओर से हम इस बात पर विश्वास करते हैं कि हम नियमबद्ध तरीके से पत्रकारिता करते हैं.

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हालांकि 'द ट्रिब्यून' समाचार पत्र की पत्रकार रचना खैरा ने कहा कि वह उस घटनाक्रम के बारे में खुश है कि उन्होंने एफआईआर 'अर्जित' की है. एक अरब आधार कार्डों को लेकर जानकारियां दिए जाने संबंधी एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के सिलसिले में दर्ज एक एफआईआर में रचना का नाम है. भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के उप निदेशक बी.एम.पटनायक ने 'द ट्रिब्यून' अखबार में छपी खबर के बारे में पुलिस को सूचित किया और बताया कि अखबार ने अज्ञात विक्रेताओं से व्हाट्सऐप पर एक सेवा खरीदी थी, जिससे एक अरब से अधिक लोगों की जानकारियां मिल जाती थी. 

पांच जनवरी को पटनायक ने शिकायत की थी, जिसके बाद उसी दिन प्राथमिकी दर्ज कर ली गई थी. रचना खैरा ने एक टेलीविजन समाचार चैनल से कहा, 'मेरा सोचना है कि मैंने यह एफआईआर कमाई है. मैं खुश हूं कि कम से कम यूआईडीएआई ने मेरी रिपोर्ट पर कुछ कार्रवाई की और मुझे वास्तव में उम्मीद है कि एफआईआर के साथ ही भारत सरकार यह देखेगी कि ये सभी जानकारियां कैसे ली जा रही थीं और सरकार उचित कार्रवाई करेगी.'

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गौरतलब है कि आधार नंबरों के व्हाट्स ऐप के जरिये बिकने की खबर का पर्दाफाश करने वाली पत्रकार रचना खैरा के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दायर कर दी है. तीन जनवरी को आई इस रिपोर्ट में कहा गया था कि रिपोर्टर ने सिर्फ़ 500 रुपये में दस मिनट के अंदर एक एजेंट के जरिए आधार के सिस्टम में सेंध लगा ली. अख़बार ने यह बताने के लिए इस ख़बर को छापा कि आधार का सिक्योरिटी सिस्टम कितना कमज़ोर है, लेकिन इस मामले में UIDAI डिप्टी डायरेक्टर की ओर से कराई गई रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि ट्रिब्यून अख़बार के रिपोर्टर ने करोड़ों आधार नंबरों का ब्योरा जानने के लिए किसी गुमनाम आदमी को पैसे दिए. पत्रकारों की शीर्ष संस्था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकार रचना खैरा और अखबार के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई की निंदा की है. 

(इनपुट : भाषा)

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