विकास दुबे एनकाउंटर मामले (Vikas Dubey encounter Case) में यूपी सरकार (UP Government) के हलफनामे पर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जवाब दाखिल किया है. जवाब में कहा गया है कि न्यायिक आयोग का गठन अवैध है. सरकार ने न विधानसभा की मंजूरी ली है, न अध्यादेश पारित किया है. याचिकाकर्ता ने कहा है कि जस्टिस शशिकांत अग्रवाल हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज नहीं हैं. उन्होंने विवादास्पद हालात में पद से इस्तीफा दिया था. SIT में शामिल DIG रवीन्द्र गौड़ खुद 2007 में फ़र्ज़ी मुठभेड़ में शामिल रह चुके हैं.
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि पुलिस ने 16 साल के प्रभात मिश्रा का भी एनकाउंटर कर दिया. विकास के एनकाउंटर की कहानी सी ग्रेड फ़िल्म जैसी है. बदला लेने पर उतारू पुलिस ने गैंग वार में शामिल प्रतिद्वंद्वी गिरोह जैसा बर्ताव किया.
यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यह एनकाउंटर तेलंगाना मुठभेड़ से अलग था. वहां आरोपी हार्ड कोर अपराधी नहीं थे, लेकिन विकास दुबे पर 64 आपराधिक मामले दर्ज थे. तेलंगाना में आरोपियों को घटनास्थल पर ले जाया गया लेकिन यहां एक दुर्घटना हुई और इसे साबित करने के लिए सामग्री साक्ष्य उपलब्ध हैं. वहीं यूपी सरकार ने यह भी कहा कि तेलंगाना ने मजिस्ट्रेट जांच या न्यायिक आयोग का आदेश नहीं दिया लेकिन जहां यूपी ने जांच आयोग का गठन किया है वहीं एसआईटी भी गठित की है. विकास दुबे ने 80 के आसपास अपराधी छत के ऊपर तैनात किए थे. उसने आत्मसमर्पण नहीं किया, बल्कि उसे उज्जैन पुलिस ने हिरासत लिया था.
यूपी सरकार ने कहा था कि दुर्घटना स्थल (भौंती) के पास कोई बसावट नहीं थी और इसलिए स्थानीय लोग गोलियों की की आवाज सुनकर नहीं आए. विकास दुबे पर पुलिस ने 6 गोलियां चलाईं जिनमें से तीन उसको लगी हैं. विकास दुबे के पैर में रॉड प्रत्यारोपण हुआ था. लेकिन उसे भागने में कोई दिक्कत नहीं थी. वो 3 जुलाई को पुलिसकर्मियों को मारने के बाद 3 किमी दौड़ा था. सरकार ने कहा था कि यह केवल संक्षिप्त उत्तर है और यदि समय दिया जाए तो अधिक तथ्य दर्ज किए जाएंगे.
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