भारत में 29वें राज्य तेलंगाना के गठन का मार्ग प्रशस्त करते हुए इससे संबंधित बहुचर्चित एवं विवादास्पद विधेयक को गुरुवार को संसद की मंजूरी मिल गई और प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया कि सीमांध्र क्षेत्र के लोगों की हितों की पूरी तरह से रक्षा की जाएगी।
राज्यसभा में आज दिनभर चले हंगामे और कई बार के स्थगन के बाद सदन ने आंध्र प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2014 विपक्ष द्वारा लाए गए संशोधनों को खारिज करते हुए ध्वनिमत से पारित कर दिया। विधेयक पर मत विभाजन नहीं करवाने के विरोध में माकपा, सपा और बीजद के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया।
लोकसभा इस विधेयक को दो दिन पहले ही मंजूरी दे चुकी है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उच्च सदन में ऐलान किया कि आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद बनने वाले राज्यों को छह सूत्री विकास पैकेज दिया जाएगा। सीमांध्र को विशेष पैकेज दिए जाने की भी घोषणा की गई।
प्रधानमंत्री ने विधेयक पर चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि विभाजन के बाद बनने वाले दोनों राज्यों में औद्योगिकीकरण और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कर रियायतें प्रदान की जाएंगी।
विधेयक पर चर्चा के दौरान तेदेपा के सीएम रमेश और वाई एस चौधरी तथा तृणमूल कांग्रेस के कई सदस्य आसन के समक्ष लगातार नारेबाजी करते रहे। प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे तथा अन्य दलों के वरिष्ठ नेता जब सदन में बोल रहे थे, उस दौरान तृणमूल के सदस्य नारेबाजी करने के साथ कागज फाड़कर हवा में उछाल रहे थे।
उच्च सदन में तेलंगाना विधेयक को पारित कराने में सरकार को विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि मुख्य विपक्षी दल ने किसी भी संशोधन पर मत विभाजन के लिए जोर नहीं दिया। भाजपा नेता एम वेंकैया नायडू ने कई संशोधन पेश किए थे, लेकिन शिंदे और केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण से वह संतुष्ट हो गए।
हालांकि माकपा नेता सीताराम येचुरी तथा तृणमूल कांग्रेस के कई सदस्यों ने इस मामले में भाजपा और कांग्रेस के बीच 'मैच फिक्सिंग' का भी आरोप लगाया।
शिंदे ने कहा कि तेलंगाना राज्य के गठन का फैसला सरल नहीं था। यह निर्णय व्यापक विचार विमर्श तथा सभी कारकों को ध्यान में रखकर किया गया।
उन्होंने कहा, यह हमारी मंशा नहीं थी कि एक क्षेत्र या मौजूदा राज्य की कीमत पर विभाजन किया जाये। शिंदे ने कहा, हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद बनने वाले राज्य की अर्थव्यवस्था विकसित होती रहे, केन्द्र सरकार आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद बनने वाले राज्यो में रायलसीमा एवं उत्तर तटीय जिलों के लिए एक विशेष विकास पैकेज प्रदान करेगा।
तेलंगाना विधेयक में केन्द्र सरकार ने इस बात की दृढ़ प्रतिबद्धता जतायी है कि पोलावरम परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना के तहत क्रियान्वित किया जाएगा। इसके लिए सभी जरूरी मंजूरियां ली जाएंगी तथा पूरी तरह से पुनर्वास सुनिश्चित किया जाएगा।
विधेयक से जुड़े संवैधानिक मुद्दे उठाते हुए विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि दोनों नए राज्यों की संयुक्त राजधानी हैदराबाद में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्यपाल को देने से संविधान की संघीय परिकल्पना का उल्लंघन होगा। साथ ही सीमांध्र राज्य को हैदराबाद से होने वाली कर आमदनी भी प्रभावित होगी। कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने जेटली की आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि सरकार ने इन सभी मुद्दों पर व्यापक विचार करके ही विधेयक में उपयुक्त प्रावधान किए हैं।
उन्होंने कहा कि यदि इस विधेयक को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जाती है तो शीर्ष न्यायालय के निर्देश पर अगली लोकसभा इस पर फैसला कर सकती है और जरूरत पड़ने में संविधान में संशोधन भी किया जा सकता है।
ग्रामीण विकास मंत्री रमेश ने विभिन्न संशोधनों के स्पष्टीकरण में कहा कि सरकार ने दोनों राज्यों के राजस्व तथा अन्य संसाधनों के बंटवारे तथा देनदारियों के मामले में वही मानक अपनाए हैं जो झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के गठन के समय अपनाए गए थे।
उन्होंने कहा कि पोलावरम परियोजना महज सिंचाई परियोजना नहीं होकर एक बहु-उद्देश्यीय परियोजना है। इससे तेलंगाना एवं सीमांध्र दोनों क्षेत्रों के लोगों की पेयजल, सिंचाई सहित विभिन्न जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा। इसी कारण सरकार ने इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया है।
विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए पर्यटन मंत्री चिरंजीवी ने मौजूदा प्रारूप में विधेयक का विरोध किया और तेलंगाना तथा सीमांध्र दोनों क्षेत्रों पर ध्यान दिए जाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि इस विधेयक पर प्रदेश के मुख्यमंत्री के अलावा अन्य नेताओं के साथ सलाह मशविरा नहीं किया गया। इस मुद्दे पर अपनी सरकार की आलोचना करते हुए चिरंजीवी ने भाजपा, तेदेपा सहित कई दलों पर भी निशाना साधा और आरोप लगाया कि तेलंगाना मुद्दे पर दोहरे मानदंड अपनाए गए हैं।
चिरंजीवी ने अपने पहले भाषण में कहा, अलग राज्य के मुद्दे पर उनकी व्यक्तिगत राय में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है लेकिन वह अपनी पार्टी के फैसले का पालन करेंगे। उन्होंने कहा कि वह प्रदेश के करोड़ों तेलुगू लोगों की ओर से बोल रहे हैं और वह किसी एक क्षेत्र की ओर से नहीं बोल रहे हैं।
उन्होंने हैदराबाद को केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने की मांग की। इसके पहले भाजपा सदस्य एम वेंकैया नायडू ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा वह तेलंगाना बनाए जाने के पक्ष में हैं, लेकिन सीमांध्र क्षेत्र के विकास की ओर भी पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।
कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि तेलंगाना मुद्दे को लेकर सत्ता पक्ष की ओर से उनकी पार्टी पर कई बार गलत आरोप लगाए जाते रहे हैं जबकि खुद कांग्रेस में ही इस मुद्दे पर एक राय नहीं है और आंध्र प्रदेश विधानसभा में इसके विरोध में प्रस्ताव भी लाया गया।
उन्होंने आम चुनाव के ठीक पहले नए राज्य के गठन पर सवाल उठाए। उन्होंने सीमांध्र के लिए उचित आर्थिक पैकेज की मांग की। उन्होंने कहा कि हैदराबाद की ही तरह सीमांध्र क्षेत्र में भी शिक्षण संस्थान स्थापित किए जाने चाहिए। उन्होंने रायलसीमा सहित अन्य पिछड़े क्षेत्रों का विकास किए जाने की भी मांग की।
माकपा के सीताराम येचुरी ने कहा कि उनकी पार्टी हमेशा विभाजन के विरोध में रही है। उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश के विभाजन के लिए कांग्रेस और भाजपा जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से कई स्थानों पर नए राज्यों के गठन की मांग उठेगी।
उन्होंने कहा कि पिछड़े राज्यों के साथ एकसमान व्यवहार किया जाना चाहिए और उनके साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। बसपा नेता मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी बड़े प्रदेशों को विभाजित कर छोटे राज्य बनाए जाने के पक्ष में है। उन्होंने राज्य पुनर्गठन आयोग के जरिये बड़े राज्यों का विभाजन किए जाने की मांग की।
उच्च सदन में तेलंगाना विधेयक के विरोध में हो रहे हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही कई बार स्थगित की गयी। विधेयक को जब शिंदे सदन में चर्चा के लिए रखने जा रहे थे और जब प्रधानमंत्री चर्चा में हस्तक्षेप कर रहे थे, उस दौरान तृणमूल एवं तेदेपा के कुछ सदस्यों को सत्ता पक्ष की ओर बढ़ते देखा गया। लेकिन प्रमोद तिवारी सहित कई कांग्रेसी सदस्यों ने उन्हें चारों तरफ से घेर रखा था।
चर्चा के दौरान कई बार शिवसेना सदस्य भी आसन के समक्ष आकर नारेबाजी करते देखे गए।
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