तस्लीमा नसरीन ने किया खुलासा, क्यों भारत में ही बिताना चाहती हैं बाकी जिंदगी

मूल बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने कहा इस धरती की बेटी हूं, स्थायी रेसीडेंस परमिट चाहती हूं, कहा- दिल्ली सबसे अच्छा शहर

तस्लीमा नसरीन ने किया खुलासा, क्यों भारत में ही बिताना चाहती हैं बाकी जिंदगी

लेखिका तस्लीमा नसरीन ने कहा है कि वे सारा जीवन भारत में बिताना चाहती हैं, यहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है.

खास बातें

  • तस्लीमा नसरीन का ‘रेसीडेंस परमिट’ एक साल के लिए बढ़ा
  • कहा- मेरी बिल्ली भी भारतीय है, जो कि 16 साल से साथ है
  • नारी स्वतंत्रता और इस्लाम धर्म पर लेखन को लेकर होते रहे हैं विवाद
नई दिल्ली:

पिछले 25 साल से बांग्लादेश से निर्वासित प्रख्यात लेखिका तस्लीमा नसरीन अपनी बाकी सारा जीवन भारत में बिताना चाहती हैं. तस्लीमा स्वीडन की नागरिक हैं और अस्थायी परमिट पर भारत में रह रही हैं. वे भारतीय उपमहाद्वीप में दिल्ली को सबसे बेहतर शहर मानती हैं और यहीं बसना चाहती हैं. भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर उनका मानना है कि यहां दूसरे देशों की तुलना में काफी आजादी है. सरकार ने तस्लीमा नसरीन का परमिट एक साल के लिए बढ़ा दिया है.

अपना ‘रेसीडेंस परमिट' एक साल के लिए बढ़ाए जाने से राहत महसूस कर रहीं बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार उन्हें लंबा या स्थायी परमिट देगी क्योंकि वह इस ‘धरती की बेटी' हैं और पिछले 16 साल से उनके साथ रह रही उनकी बिल्ली तक भारतीय है.
 
नसरीन ने एक इंटरव्यू में कहा ,‘'भारत मेरा घर है. मैं उम्मीद करती हूं कि मुझे पांच या दस साल का ‘रेसीडेंस परमिट' मिल जाए ताकि हर साल इसे लेकर चिंता नहीं करनी पड़े. मैने पूर्व गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी से 2014 में यह अनुरोध किया था क्योंकि मैं अपनी बाकी जिंदगी भारत में बिताना चाहती हूं.''

गृह मंत्रालय ने नसरीन का रेसीडेंस परमिट रविवार को एक साल के लिए बढ़ा दिया. स्वीडन की नागरिक नसरीन का ‘रेसीडेंस परमिट' सन 2004 से हर साल बढ़ता आया है. उन्हें इस बार तीन महीने का ही परमिट मिला था लेकिन ट्विटर पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से इसे एक साल के लिए बढ़ाने का उनका अनुरोध मान लिया गया.

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नसरीन ने कहा,‘मुझे विदेशी मानते हैं लेकिन मैं इस धरती की बेटी हूं. मैं उम्मीद करती हूं कि सरकार मुझे स्थायी या लंबी अवधि का परमिट देगी. मैं 25 साल से निष्कासन की जिंदगी जी रही हूं और हर साल मुझे अपना घर छिनने का डर सताता है. इसका असर मेरी लेखनी पर भी पड़ता है.'

उन्होंने दिल्ली में ही आखिरी सांस लेने की ख्वाहिश जताते हुए कहा,‘मुझे लगता है कि उपमहाद्वीप में दिल्ली ही ऐसा शहर है जहां मैं सुकून से रह सकती हूं. मैं पूर्वी या पश्चिमी बंगाल में रहना चाहती थी लेकिन अब यह संभव नहीं है. मैं दिल्ली में बाकी जिंदगी बिताना चाहती हूं. अगर आप मुझे भारतीय नहीं मानते तो मेरी बिल्ली तो भारतीय है, जो मेरी बेटी की तरह है और पिछले 16 साल से मेरे साथ है.'

नसरीन ने कहा ,‘मेरा घर, मेरी किताबें, मेरे दस्तावेज, मेरे कपड़े सब कुछ यहां हैं. मेरा कोई दूसरा ठौर नहीं है. मैं यहां बस चुकी हूं और भारत छोड़ने के बारे में सोचना भी नहीं चाहती.' उन्होंने कहा ,‘मैं यूरोप की नागरिक हूं लेकिन यूरोप और अमेरिका को छोड़कर मैंने भारत को चुना.'

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लेखकों के एक वर्ग को लगता है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है लेकिन नसरीन इससे इत्तेफाक नहीं रखती और उनका मानना है कि यहां दूसरे देशों की तुलना में काफी आजादी है. उन्होंने कहा,‘यहां संविधान मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है. आप सरकार की आलोचना कर सकते हैं. मैंने कई देशों में देखा है कि ऐसी स्वतंत्रता बिल्कुल नहीं है.' उन्होंने कहा,‘मैं यूरोप या अमेरिका की बात नहीं करती लेकिन इराक युद्ध के समय अमेरिका में कहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी ?'

तस्लीमा नसरीन ने कहा,‘भारत में ऐसा नहीं है कि कोई सरकार के खिलाफ बोल ही नहीं सकता. सोशल मीडिया पर कई बार हमला होता है क्योंकि हमारी बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आती. लेकिन यह चलता है. हालात बुरे या चिंताजनक नहीं हैं.' तस्लीमा ने अपने आगामी प्रकाशन के बारे में बताया कि उनके चर्चित उपन्यास ‘लज्जा' का अंग्रेजी सीक्वल ‘शेमलेस' (बेशरम) अगले साल की शुरुआत में हार्पर कोलिंस जारी करेगा.

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गौरतलब है कि लेखिका तस्लीमा नसरीन पूर्व में पेशेवर डॉक्टर रही हैं. उन्हें 1994 में बांग्लादेश से निर्वासित कर दिया गया था. वे 1970  के दशक में कवि और लेखिका के रूप में उभरीं. वे 1990 में अपने खुले विचारों के कारण काफी प्रसिद्ध हो गईं. वे अपने नारीवादी विचारों वाले लेखों, उपन्यासों एवं इस्लाम व अन्य नारीद्वेषी मजहबों की आलोचना के लिए जानी जाती हैं. वे नारीवादी विचारों और आलोचनाओं के साथ ही इस्लाम की "गलत" धर्म के रूप में व्याख्या करती रही हैं. वह प्रकाशन, व्याख्यान और प्रचार द्वारा विचारों और मानवाधिकारों की आजादी की वकालत करती हैं.

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(इनपुट भाषा से)