सावजी भाई ढोलकिया (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
दो साल पहले अपने 1200 कर्मचारियों को दीवाली बोनस के रूप में कार और अपार्टमेंट देकर पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करने वाले सूरत के व्यापारी सावजी ढोलकिया एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार सुर्खियों में आने का कारण उनके 21 वर्षीय पुत्र हैं, जो कि अमेरिका में व्यवसाय प्रबंधन की शिक्षा ले रहे हैं।
ढोलकिया के बेटे ध्रव्य को पारिवारिक परंपरा का पालन करते हुए एक माह के लिए केरल भेजा गया। उन्हें तीन जोड़ी कपड़े और आपात स्थिति के लिए बहुत थोड़ी राशि दी गई। इसके साथ उन्हें चुनौती दी गई एक ऐसे शहर में रोजगार और रुकने का ठिकाना ढूंढने की जहां वे पहले कभी नहीं गए।
एनडीटीवी ने ऐसे तीन नियोक्ताओं से बात की जहां ध्रव्य ने सेवाएं दीं। सभी ने ध्रव्य को एक मेहनती कर्मचारी बताया। एक ऐसा कर्मचारी जो अपनी पहचान के रूप में सिर्फ अपना नाम और सेल फोन का नंबर लेकर आया था। ध्रव्य ने अपने चार हफ्ते के अनुभव एनडीटीवी के साथ फोन पर साझा किए। उन्होंने बताया कि एक युवा को अपने लिए जगह बनाने के लिए किस तरह का संघर्ष करना होता है।
बातचीत के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं-
प्रश्न - इस यात्रा के पीछे क्या उद्देश्य था?
उत्तर - आइडिया यह देखना था कि देश में एक आम आदमी किस तरह जीवन यापन करता है। एक अनजान शहर में मुझे अपनी सारी सुख सुविधाओं को छोड़कर जीवन यापन करने की आदत डालनी थी। मुझसे पहले मेरे तीन चचेरे भाई भी 12 साल और छह साल पहले इसी तरह के चुनौतीपूर्ण अभियान पर जा चुके हैं। इस बार कालेज में गर्मियों की छुट्टियों के दौरान मेरी बारी आई।
प्रश्न - आपको अपने उद्देश्य में कितनी सफलता मिली?
उत्तर - मेरी पृष्ठभूमि में काफी विशेषाधिकार शामिल हैं। मैं ऐसी स्थिति में हूं जहां कीमत को देखे बिना ही चीजें मिल सकती हैं। इसलिए धन की कीमत को समझना बड़ा मुश्किल था। इस अभियान के पीछे मूल उद्देश्य वास्तव में यही था कि रुपये की कीमत को समझना और साथ ही आम नागरिकों के संघर्ष को भी समझना।
प्रश्न - क्या आपके पिता ने ही आपको इस अभियान पर भेजा?
उत्तर - सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे कठिन दौर से न गुजरें, लेकिन कठिनाई झेलकर ही कठिन हालात का सामना करने लायक बना जा सकता है। पैसे से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है लेकिन अनुभव नहीं। कई बार अनुभवों से ही सीख मिलती है।
प्रश्न - आप यह खुद करना चाहते थे, या यह तय था इसलिए किया?
उत्तर - मैं इसके लिए पूरी तरह तैयार था। मेरे परिवार में पहले इस तरह के अभियान कई लोगों ने पूरे किए थे, इसलिए मुझे कोई शंका नहीं थी। मैं खुद का परीक्षण करने को लेकर काफी उत्साहित था।
प्रश्न- आप अपने साथ क्या ले गए थे और क्या नियम बनाए थे?
उत्तर- मैं अपने साथ तीन जोड़ी कपड़े, प्रसाधन सामग्री और आपात स्थिति के लिए 7000 रुपये ले गया था। मैंने दृढ़ता के साथ खुद को इस राशि को खर्च करने से रोके रखा, तब तक जब तक कि इसकी बहुत अधिक जरूरत न पड़े। मैंने खुद अपने लिए आवास और भोजन सहित बाकी सब कुछ जुटाया। इसके अलावा मैंने किसी भी एक स्थान पर एक सप्ताह से अधिक काम नहीं किया। ध्रव्य ढोलकिया।
प्रश्न - कैसा रहा आपका अनुभव?
उत्तर - मैंने शुरुआत 26 जून को की थी। एक डफल बैग में मैंने अपना सामान रख लिया था। रवानगी से पहले रात में जब मैं डिनर कर रहा था तब तक मुझे नहीं पता था कि मुझे जाना कहां है। मेरे पिता ने मेरे टिकट बुक करा दिए थे। मुझे केरल के कोच्ची शहर में भेजा गया। पहले पांच दिन मैं रोजगार तलाशने, रुकने के लिए जगह और सस्ता भोजन तलाशने के लिए संघर्ष करता रहा। वहां मेरी कोई पहचान नहीं थी और भाषा की भी समस्या थी, भला क्यों कोई मुझे नौकरी दे? लेकिन छठे दिन मैंने एक रेस्टोरेंट में नौकरी तलाश ली। मैं वहां काउंटर पर बेकरी क सामना बेचने लगा। मैं वहीं रेस्टोरेंट के स्टाफ के बाकी लोगों के साथ रहने लगा और वही खाने लगा, जो वे खाते थे। लेकिन मेरा एक सप्ताह गुजर गया तो मैं नई नौकरी की तलाश में जुट गया। काफी कोशिशों के बाद मैं एडिडास के शोरूम के मालिक को मनाने में कामयाब हुआ और उन्होंने मुझे रख लिया। लेकिन पहले दिन ही उन्हें अहसास हुआ कि मैं अपेक्षा के मुताबिक काम नहीं कर पा रहा हूं। उन्होंने मुझसे लौट जाने को कहा और कहा कि वह बाद में लौटकर आए, वे प्रशिक्षित कर देंगे और फिर नौकरी दे देंगे। इसके बाद मेरा संघर्ष चलता रहा और आखिरकार मुझे एक कॉल सेंटर में नौकरी मिल गई। यह कंपनी अमेरिका में उपभोक्ताओं को सोलर पावर सर्विस देती है। यहां मुझे सफलता मिली और मैंने अच्छे से काम करना शुरू कर दिया। यही कारण है कि वे मुझे प्रति दिन भुगतान करने पर सहमत हो गए। यह एक छोटी-सी शुरुआत थी, हालांकि वेतन बहुत अच्छा नहीं था। तब दिन में एक समय सांभर-चावल की एक थाली खाकर गुजारा किया। शाम को ग्लूकोज के उन बिस्किटों को खाकर काम चला लिया जाता था जो कि कंपनी में कर्मचारियों को दिए जाते थे। अपने अभियान के अंतिम चरण में मैंने मैकडोनाल्ड्स में नौकरी तलाश ली। वहां 30 रुपये प्रति घंटे के मेहनताने पर कम मिला। हालांकि यहां मैं अगले दिन काम नहीं कर सका क्योंकि मेरे पिता के सहयोगी मुझे वापस ले जाने के लिए वहां पहुंच गए। मैंने अंतिम दो दिनों में उन सभी लोगों से मुलाकात की जिन्होंने मुझे कोच्ची में मदद की। उन सभी को मैंने छोटे-छोटे उपहार भी दिए।
प्रश्न - आपने क्या सीखा?
उत्तर - सबसे बड़ी बात जो मैं समझ सका, वह है सहानुभूति। अक्सर जीवन में हम परिस्थितियों को जाने बिना ही लोगों के साथ कठोर बर्ताव करते हैं। साथियों की पीड़ा को समझने का अनुभव मुझे मिला। नीचे जाने पर पता चलता है कि हर व्यक्ति एक स्तर पर जाकर समान है। इस अभियान से मैं और अधिक विचारशील व्यक्ति बन सका।
ढोलकिया के बेटे ध्रव्य को पारिवारिक परंपरा का पालन करते हुए एक माह के लिए केरल भेजा गया। उन्हें तीन जोड़ी कपड़े और आपात स्थिति के लिए बहुत थोड़ी राशि दी गई। इसके साथ उन्हें चुनौती दी गई एक ऐसे शहर में रोजगार और रुकने का ठिकाना ढूंढने की जहां वे पहले कभी नहीं गए।
एनडीटीवी ने ऐसे तीन नियोक्ताओं से बात की जहां ध्रव्य ने सेवाएं दीं। सभी ने ध्रव्य को एक मेहनती कर्मचारी बताया। एक ऐसा कर्मचारी जो अपनी पहचान के रूप में सिर्फ अपना नाम और सेल फोन का नंबर लेकर आया था। ध्रव्य ने अपने चार हफ्ते के अनुभव एनडीटीवी के साथ फोन पर साझा किए। उन्होंने बताया कि एक युवा को अपने लिए जगह बनाने के लिए किस तरह का संघर्ष करना होता है।
बातचीत के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं-
प्रश्न - इस यात्रा के पीछे क्या उद्देश्य था?
उत्तर - आइडिया यह देखना था कि देश में एक आम आदमी किस तरह जीवन यापन करता है। एक अनजान शहर में मुझे अपनी सारी सुख सुविधाओं को छोड़कर जीवन यापन करने की आदत डालनी थी। मुझसे पहले मेरे तीन चचेरे भाई भी 12 साल और छह साल पहले इसी तरह के चुनौतीपूर्ण अभियान पर जा चुके हैं। इस बार कालेज में गर्मियों की छुट्टियों के दौरान मेरी बारी आई।
प्रश्न - आपको अपने उद्देश्य में कितनी सफलता मिली?
उत्तर - मेरी पृष्ठभूमि में काफी विशेषाधिकार शामिल हैं। मैं ऐसी स्थिति में हूं जहां कीमत को देखे बिना ही चीजें मिल सकती हैं। इसलिए धन की कीमत को समझना बड़ा मुश्किल था। इस अभियान के पीछे मूल उद्देश्य वास्तव में यही था कि रुपये की कीमत को समझना और साथ ही आम नागरिकों के संघर्ष को भी समझना।
प्रश्न - क्या आपके पिता ने ही आपको इस अभियान पर भेजा?
उत्तर - सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे कठिन दौर से न गुजरें, लेकिन कठिनाई झेलकर ही कठिन हालात का सामना करने लायक बना जा सकता है। पैसे से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है लेकिन अनुभव नहीं। कई बार अनुभवों से ही सीख मिलती है।
प्रश्न - आप यह खुद करना चाहते थे, या यह तय था इसलिए किया?
उत्तर - मैं इसके लिए पूरी तरह तैयार था। मेरे परिवार में पहले इस तरह के अभियान कई लोगों ने पूरे किए थे, इसलिए मुझे कोई शंका नहीं थी। मैं खुद का परीक्षण करने को लेकर काफी उत्साहित था।
प्रश्न- आप अपने साथ क्या ले गए थे और क्या नियम बनाए थे?
उत्तर- मैं अपने साथ तीन जोड़ी कपड़े, प्रसाधन सामग्री और आपात स्थिति के लिए 7000 रुपये ले गया था। मैंने दृढ़ता के साथ खुद को इस राशि को खर्च करने से रोके रखा, तब तक जब तक कि इसकी बहुत अधिक जरूरत न पड़े। मैंने खुद अपने लिए आवास और भोजन सहित बाकी सब कुछ जुटाया। इसके अलावा मैंने किसी भी एक स्थान पर एक सप्ताह से अधिक काम नहीं किया।
प्रश्न - कैसा रहा आपका अनुभव?
उत्तर - मैंने शुरुआत 26 जून को की थी। एक डफल बैग में मैंने अपना सामान रख लिया था। रवानगी से पहले रात में जब मैं डिनर कर रहा था तब तक मुझे नहीं पता था कि मुझे जाना कहां है। मेरे पिता ने मेरे टिकट बुक करा दिए थे। मुझे केरल के कोच्ची शहर में भेजा गया। पहले पांच दिन मैं रोजगार तलाशने, रुकने के लिए जगह और सस्ता भोजन तलाशने के लिए संघर्ष करता रहा। वहां मेरी कोई पहचान नहीं थी और भाषा की भी समस्या थी, भला क्यों कोई मुझे नौकरी दे? लेकिन छठे दिन मैंने एक रेस्टोरेंट में नौकरी तलाश ली। मैं वहां काउंटर पर बेकरी क सामना बेचने लगा। मैं वहीं रेस्टोरेंट के स्टाफ के बाकी लोगों के साथ रहने लगा और वही खाने लगा, जो वे खाते थे। लेकिन मेरा एक सप्ताह गुजर गया तो मैं नई नौकरी की तलाश में जुट गया। काफी कोशिशों के बाद मैं एडिडास के शोरूम के मालिक को मनाने में कामयाब हुआ और उन्होंने मुझे रख लिया। लेकिन पहले दिन ही उन्हें अहसास हुआ कि मैं अपेक्षा के मुताबिक काम नहीं कर पा रहा हूं। उन्होंने मुझसे लौट जाने को कहा और कहा कि वह बाद में लौटकर आए, वे प्रशिक्षित कर देंगे और फिर नौकरी दे देंगे। इसके बाद मेरा संघर्ष चलता रहा और आखिरकार मुझे एक कॉल सेंटर में नौकरी मिल गई। यह कंपनी अमेरिका में उपभोक्ताओं को सोलर पावर सर्विस देती है। यहां मुझे सफलता मिली और मैंने अच्छे से काम करना शुरू कर दिया। यही कारण है कि वे मुझे प्रति दिन भुगतान करने पर सहमत हो गए। यह एक छोटी-सी शुरुआत थी, हालांकि वेतन बहुत अच्छा नहीं था। तब दिन में एक समय सांभर-चावल की एक थाली खाकर गुजारा किया। शाम को ग्लूकोज के उन बिस्किटों को खाकर काम चला लिया जाता था जो कि कंपनी में कर्मचारियों को दिए जाते थे। अपने अभियान के अंतिम चरण में मैंने मैकडोनाल्ड्स में नौकरी तलाश ली। वहां 30 रुपये प्रति घंटे के मेहनताने पर कम मिला। हालांकि यहां मैं अगले दिन काम नहीं कर सका क्योंकि मेरे पिता के सहयोगी मुझे वापस ले जाने के लिए वहां पहुंच गए। मैंने अंतिम दो दिनों में उन सभी लोगों से मुलाकात की जिन्होंने मुझे कोच्ची में मदद की। उन सभी को मैंने छोटे-छोटे उपहार भी दिए।
प्रश्न - आपने क्या सीखा?
उत्तर - सबसे बड़ी बात जो मैं समझ सका, वह है सहानुभूति। अक्सर जीवन में हम परिस्थितियों को जाने बिना ही लोगों के साथ कठोर बर्ताव करते हैं। साथियों की पीड़ा को समझने का अनुभव मुझे मिला। नीचे जाने पर पता चलता है कि हर व्यक्ति एक स्तर पर जाकर समान है। इस अभियान से मैं और अधिक विचारशील व्यक्ति बन सका।
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