वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ अदालत की अवमानना मामले की सुनवाई पूरी, सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि मामले में वह स्पष्टीकरण/ माफीनामे को मंजूर करे या अदालत की अवमानना के लिए कार्रवाई आगे बढ़े

वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ अदालत की अवमानना मामले की सुनवाई पूरी, सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण (फाइल फोटो).

नई दिल्ली:

वकील प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) के खिलाफ सन 2009 में दर्ज अदालत की अवमानना के मामले (Contempt case) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रखा है. सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि मामले में वह स्पष्टीकरण/ माफीनामे को मंजूर करे या अदालत की अवमानना के लिए कार्रवाई आगे बढ़े. प्रशांत भूषण ने 16 चीफ जस्टिसों को भ्रष्ट बताने पर अपना स्पष्टीकरण दिया है जबकि तहलका के संपादक तरुण तेजपाल ने माफी मांगी है. 

सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के लिए वकील राजीव धवन, तरुण तेजपाल के लिए कपिल सिब्बल और एमिक्स क्यूरी हरीश साल्वे से करीब एक घंटे तक अकेले में बहस सुनकर सुनवाई पूरी की. इस दौरान शुरुआत में जस्टिस अरुण मिश्रा ने राजीव धवन से पूछा था कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और फिर अवमानना, हम इस प्रणाली के ग्रेस को कैसे बचा सकते हैं? मैं आपसे एक एमिकस के रूप में जानना चाहता हूं ताकि हम इस संघर्ष से बच सकें.

धवन ने कहा कि भूषण ने एक स्पष्टीकरण दिया है. वह स्पष्टीकरण इस पर विराम लगा सकता है. इसके बाद वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई बंद कर 'इन कैमरा' सुनवाई शुरू की गई जो करीब एक घंटे तक चली. 

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अभी उसे माफीनामा/ स्पष्टीकरण नहीं मिला है. अगर अदालत ने उसे मंजूर नहीं किया तो मामले में आगे सुनवाई होगी.

यह मामला प्रशांत भूषण के तहलका मैगजीन में दिए गए इंटरव्यू मे पूर्व मुख्य न्यायाधीशों पर टिप्पणी करने का है. इस मामले में हरीश साल्वे ने चिट्ठी लिखी थी जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण पर अदालत की अवमानना का मामला शुरू किया था. सन 2012 के बाद यह मामला 24 जुलाई को सुनवाई के लिए आया था जिसमें वकीलों ने समय मांग लिया था. 

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वरिष्ठ पत्रकार एन राम, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में अदालत की अवमानना के प्रावधान को चुनौती दी है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अधिनियम असंवैधानिक है और संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है. यह संविधान द्वारा प्रदत्त बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है. याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत, अदालत की अवमानना ​​अधिनियम 1971 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दे.