नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने योगगुरु बाबा रामदेव और उनके समर्थकों के खिलाफ पिछले साल दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई लाठीचार्ज की पुलिस कार्रवाई को गलत ठहराते हुए रामदेव को भी लापरवाही का दोषी करार दिया है। मामले में आलोचना झेलते आ रहे गृहमंत्री पी चिदम्बरम को राहत देते हुए कोर्ट ने उन्हें क्लीन चिट दे दी है, और कहा कि इस कार्रवाई में गृह मंत्रालय का कोई हाथ नहीं था।
कोर्ट के मुताबिक पुलिस ने कार्रवाई करने में जल्दबाजी की, और ताकत दिखाने की कोशिश की। यदि वह चाहती तो भगदड़ नहीं होती, हालात नहीं बिगड़ते। कोर्ट के मुताबिक दरअसल भीड़ को सही तरह से नियंत्रित नहीं किया गया, वरना टकराव को टाला जा सकता था।
हालांकि कोर्ट ने यह भी माना कि कार्रवाई के दौरान यदि रामदेव मंच से नहीं उतरते, और वहां से नहीं भाग जाते, तो स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दोनों पक्षों की गलतियों का नतीजा आम जनता को भुगतना पड़ा। दो जजों की बेंच ने पिछले साल 4-5 जून की दरमियानी रात को रामलीला मैदान में हुई रामदेव और उनके समर्थकों पर की गई पुलिस कार्रवाई की तस्वीरें देखने के बाद यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस कार्रवाई के दौरान घायल होने के बाद अस्पताल में दम तोड़ने वाली राजबाला के परिजनों को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया, जिसमें से 25 फीसदी (1.25 लाख) बाबा रामदेव के स्वाभिमान ट्रस्ट को और शेष 75 फीसदी (3.75 लाख) सरकार को देने होंगे।
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने रामदेव के सोते समर्थकों पर आधी रात को की गई कार्रवाई की खबरों पर स्वत: संज्ञान लिया था। कार्रवाई में घायल हुई एक महिला राजबाला की बाद में मौत हो गई। न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने 20 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था।
रामदेव ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने अपने राजनीतिक आकाओं के निर्देशों पर कार्रवाई की। रामदेव की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने कोर्ट में दलील दी कि आम जनता पर लाठीचार्ज का फैसला सुनियोजित था, जिसके लिए चिदंबरम को सजा मिलनी चाहिए।
वहीं दिल्ली पुलिस का कहना है कि हिंसा के लिए बाबा रामदेव खुद जिम्मेदार हैं, पुलिस लोगों को हटा नहीं रही थी, बल्कि उन्हें सुबह तक जगह खाली करने को कहा गया, लेकिन रामदेव मंच से कूद पड़े और भगदड़ मच गई। दिल्ली पुलिस की इस कार्रवाई में कई लोग घायल हुए थे, जिनमें राजबाला भी थीं जिन्होंने बाद में अस्पताल में दम तोड़ दिया था।
कोर्ट के मुताबिक पुलिस ने कार्रवाई करने में जल्दबाजी की, और ताकत दिखाने की कोशिश की। यदि वह चाहती तो भगदड़ नहीं होती, हालात नहीं बिगड़ते। कोर्ट के मुताबिक दरअसल भीड़ को सही तरह से नियंत्रित नहीं किया गया, वरना टकराव को टाला जा सकता था।
हालांकि कोर्ट ने यह भी माना कि कार्रवाई के दौरान यदि रामदेव मंच से नहीं उतरते, और वहां से नहीं भाग जाते, तो स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दोनों पक्षों की गलतियों का नतीजा आम जनता को भुगतना पड़ा। दो जजों की बेंच ने पिछले साल 4-5 जून की दरमियानी रात को रामलीला मैदान में हुई रामदेव और उनके समर्थकों पर की गई पुलिस कार्रवाई की तस्वीरें देखने के बाद यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस कार्रवाई के दौरान घायल होने के बाद अस्पताल में दम तोड़ने वाली राजबाला के परिजनों को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया, जिसमें से 25 फीसदी (1.25 लाख) बाबा रामदेव के स्वाभिमान ट्रस्ट को और शेष 75 फीसदी (3.75 लाख) सरकार को देने होंगे।
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने रामदेव के सोते समर्थकों पर आधी रात को की गई कार्रवाई की खबरों पर स्वत: संज्ञान लिया था। कार्रवाई में घायल हुई एक महिला राजबाला की बाद में मौत हो गई। न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने 20 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था।
रामदेव ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने अपने राजनीतिक आकाओं के निर्देशों पर कार्रवाई की। रामदेव की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने कोर्ट में दलील दी कि आम जनता पर लाठीचार्ज का फैसला सुनियोजित था, जिसके लिए चिदंबरम को सजा मिलनी चाहिए।
वहीं दिल्ली पुलिस का कहना है कि हिंसा के लिए बाबा रामदेव खुद जिम्मेदार हैं, पुलिस लोगों को हटा नहीं रही थी, बल्कि उन्हें सुबह तक जगह खाली करने को कहा गया, लेकिन रामदेव मंच से कूद पड़े और भगदड़ मच गई। दिल्ली पुलिस की इस कार्रवाई में कई लोग घायल हुए थे, जिनमें राजबाला भी थीं जिन्होंने बाद में अस्पताल में दम तोड़ दिया था।
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