सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
पुणे के भीमा-कोरेगांव में हिंसा मामले के मुख्य आरोपी मिलिन्द एकबोटे की अग्रिम जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस की स्टेटस रिपोर्ट के बाद यह फैसला लिया है. इसका मतलब है कि अब गिरफ्तारी हो सकती है. बता दें कि इस मामले में पहले कोर्ट ने अंतरिम संरक्षण दिया था.
महाराष्ट्र पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा है कि आरोपी जांच में सहयोग नहीं कर रहा है. एक बार पूछताछ में वो देरी से शामिल हुआ. यहां तक कि मोबाइल फोन के बारे में वो कह रहा है कि उसका फोन खो गया है और चूंकि उसके पास रसीद नहीं थी. इसलिए उसने इसकी शिकायत दर्ज नहीं कराई.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में हिंसा की घटना के मुख्य आरोपी मिलिन्द एकबोटे को बड़ी राहत दी थी. अदालत ने एकबोटे को गिरफ्तारी से अंतिरम संरक्षण प्रदान कर दिया है. भीमा-कोरेगांव में एक जनवरी को हुयी इस हिंसा में एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी.
भीमा कोरेगांव दंगे के अभियुक्त मिलिंद रमाकांत एकबोटे को सुप्रीम कोर्ट से राहत
न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की अध्यक्षता वाली बेंच ने एकबोटे को इस मामले में गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया है. पीठ ने एकबोटे की अंतिरम जमानत की याचिका पर महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगने के साथ ही उसे राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति के बारे में अवगत कराने का भी राज्य सरकार को निर्देश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि एकबोटे को गिरफ्तार करने की स्थिति में उन्हें एक लाख रुपये का मुचलका देने पर रिहा किया जायेगा. महाराष्ट्र पुलिस के अनुसार पुणे की एक अदालत ने दक्षिणपंथी नेता एकबोटे के खिलाफ मंगलवार को ही गिरफ्तारी का वॉरंट जारी किया था.
ब्रिटेन के लिए शहीद भारतीय सैनिकों को सलामी दी जा सकती है, तो भीमा-कोरेगांव के महार सैनिकों को क्यों नहीं?
एकबोटे के खिलाफ एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक आयोजन के दौरान हिंसा भड़काने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था. इस हिंसा के बाद हुए विरोध प्रदर्शन मे मुंबई का सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ था. बॉम्बे हाई कोर्ट ने दो फरवरी को एकबोटे की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी थी. इससे पहले, पुणे की अदालत ने भी उनकी अग्रिम जमानत याचिका खरिज कर दी थी.
दरसअल, यह पूरा विवाद 1 जनवरी 1818 के दिन हुए उस युद्ध को लेकर है, जो अंग्रेजों और पेशवा बाजीराव द्वितीय के बीच कोरेगांव भीमा में लड़ा गया था. इस युद्ध में अंग्रेजों ने पेशवा को शिकस्त दे दी थी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज में बड़ी संख्या में दलित भी शामिल थे. उस युद्ध में अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए ही दलित समुदाय की तरफ से पुणे में कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिस पर बवाल हो गया.
VIDEO : भीमा-कोरेगांव हिंसा के बाद गिरफ़्तारियां
महाराष्ट्र पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा है कि आरोपी जांच में सहयोग नहीं कर रहा है. एक बार पूछताछ में वो देरी से शामिल हुआ. यहां तक कि मोबाइल फोन के बारे में वो कह रहा है कि उसका फोन खो गया है और चूंकि उसके पास रसीद नहीं थी. इसलिए उसने इसकी शिकायत दर्ज नहीं कराई.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में हिंसा की घटना के मुख्य आरोपी मिलिन्द एकबोटे को बड़ी राहत दी थी. अदालत ने एकबोटे को गिरफ्तारी से अंतिरम संरक्षण प्रदान कर दिया है. भीमा-कोरेगांव में एक जनवरी को हुयी इस हिंसा में एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी.
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न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की अध्यक्षता वाली बेंच ने एकबोटे को इस मामले में गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया है. पीठ ने एकबोटे की अंतिरम जमानत की याचिका पर महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगने के साथ ही उसे राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति के बारे में अवगत कराने का भी राज्य सरकार को निर्देश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि एकबोटे को गिरफ्तार करने की स्थिति में उन्हें एक लाख रुपये का मुचलका देने पर रिहा किया जायेगा. महाराष्ट्र पुलिस के अनुसार पुणे की एक अदालत ने दक्षिणपंथी नेता एकबोटे के खिलाफ मंगलवार को ही गिरफ्तारी का वॉरंट जारी किया था.
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एकबोटे के खिलाफ एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक आयोजन के दौरान हिंसा भड़काने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था. इस हिंसा के बाद हुए विरोध प्रदर्शन मे मुंबई का सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ था. बॉम्बे हाई कोर्ट ने दो फरवरी को एकबोटे की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी थी. इससे पहले, पुणे की अदालत ने भी उनकी अग्रिम जमानत याचिका खरिज कर दी थी.
दरसअल, यह पूरा विवाद 1 जनवरी 1818 के दिन हुए उस युद्ध को लेकर है, जो अंग्रेजों और पेशवा बाजीराव द्वितीय के बीच कोरेगांव भीमा में लड़ा गया था. इस युद्ध में अंग्रेजों ने पेशवा को शिकस्त दे दी थी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज में बड़ी संख्या में दलित भी शामिल थे. उस युद्ध में अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए ही दलित समुदाय की तरफ से पुणे में कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिस पर बवाल हो गया.
VIDEO : भीमा-कोरेगांव हिंसा के बाद गिरफ़्तारियां
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