नई दिल्ली:
लोकपाल की नियुक्ति में हो रही देरी को लेकर दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर उठाए सवाल. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लोकपाल एक्ट 2014 में बना था, अब तक प्रक्रिया पूरी क्यों नहीं हुई. लोकपाल की नियुक्ति क्यों नहीं हुई. सुप्रीम कोर्ट इस तरह लोकपाल की नियुक्ति में देरी होते नहीं देख सकता है. लोकपाल को एक डेड लेटर नहीं बनने दिया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आप ईमानदारी लाने के लिए अपनी रुचि दिखाते हुए दिख रहे हैं, लेकिन लोकपाल बिल में संशोधन क्यों नहीं ला रहे हैं. केंद्र सरकार को इसके लिए कोई डेडलाइन तय करनी होगी.
वहीं, इस मामले में केंद्र सरकार ने कहा, कि लोकपाल एक्ट में संशोधन करना है. इसके लिए बिल संसद में लंबित है. एक्ट के मुताबिक सर्च कमेटी में नेता विपक्ष होना चाहिए, लेकिन अभी कोई नेता विपक्ष नहीं है. इसलिए सबसे बड़ी पार्टी के नेता को कमेटी में शामिल करने के लिए एक्ट में संशोधन करना है और ये संसद में लंबित है. मामले पर अगली सुनवाई 7 दिसंबर को होगी.
इससे पहले तत्कालीन UPA सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वह लोकपाल की नियुक्ति से संबंधित विवादास्पद मुद्दों पर विचार करना चाहती है तथा लोकपाल कानून की दो धाराओं में संशोधन करने के लिए भी तैयार है.
उस समय एनजीओ कॉमन कॉज के लिए पेश होते हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि सरकार लोकपाल कानून के अनुच्छेद 10 की धारा 1 और 4 के आधार पर आगे नहीं बढ़ सकती है. अनुच्छेद 10 (1) के तहत प्रावधान है कि खोज समिति केंद्र सरकार द्वारा भेजी गई गई सूची में से लोकपाल अध्यक्ष और सदस्य पद के लिए उपयुक्त नामों का पैनल चयन समिति को प्रस्तावित करेगी. प्रशांत भूषण की दलील थी कि यह प्रावधान स्वतंत्र लोकपाल की अवधारणा के विपरीत है. इस आधार पर एनजीओ कामन कॉज ने लोकपाल चयन प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आप ईमानदारी लाने के लिए अपनी रुचि दिखाते हुए दिख रहे हैं, लेकिन लोकपाल बिल में संशोधन क्यों नहीं ला रहे हैं. केंद्र सरकार को इसके लिए कोई डेडलाइन तय करनी होगी.
वहीं, इस मामले में केंद्र सरकार ने कहा, कि लोकपाल एक्ट में संशोधन करना है. इसके लिए बिल संसद में लंबित है. एक्ट के मुताबिक सर्च कमेटी में नेता विपक्ष होना चाहिए, लेकिन अभी कोई नेता विपक्ष नहीं है. इसलिए सबसे बड़ी पार्टी के नेता को कमेटी में शामिल करने के लिए एक्ट में संशोधन करना है और ये संसद में लंबित है. मामले पर अगली सुनवाई 7 दिसंबर को होगी.
इससे पहले तत्कालीन UPA सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वह लोकपाल की नियुक्ति से संबंधित विवादास्पद मुद्दों पर विचार करना चाहती है तथा लोकपाल कानून की दो धाराओं में संशोधन करने के लिए भी तैयार है.
उस समय एनजीओ कॉमन कॉज के लिए पेश होते हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि सरकार लोकपाल कानून के अनुच्छेद 10 की धारा 1 और 4 के आधार पर आगे नहीं बढ़ सकती है. अनुच्छेद 10 (1) के तहत प्रावधान है कि खोज समिति केंद्र सरकार द्वारा भेजी गई गई सूची में से लोकपाल अध्यक्ष और सदस्य पद के लिए उपयुक्त नामों का पैनल चयन समिति को प्रस्तावित करेगी. प्रशांत भूषण की दलील थी कि यह प्रावधान स्वतंत्र लोकपाल की अवधारणा के विपरीत है. इस आधार पर एनजीओ कामन कॉज ने लोकपाल चयन प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की थी.
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