राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर को एक चलती बस में बलात्कार के बेहद विभत्स मामले के बाद चारों तरफ से जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में बदलाव को लेकर आवाजें उठीं, लेकिन कुछ नहीं हुआ। अब एक बार फिर ये मुद्दा उठा है और इस बार सुप्रीम कोर्ट ने इसे उठाया है।
एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हत्या और रेप जैसे संगीन अपराधों में नाबालिगों की संलिप्ता पर चिंता जाहिर करते हुए केंद्र सरकार को कहा है कि वह एक बार फिर जुवेनाइल जस्टिस (जेजे) एक्ट पर गौर करे। कोर्ट ने कहा है कि एक मई तक केंद्र इस मामले में अपना रुख साफ करे।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट हरियाणा में हुई एक हत्या के मामले में उम्रकैद की सजायाफ़ता की अपील पर सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी अपील में उसने कहा है कि जिस वक्त हत्या हुई थी तब वह नाबालिग था। इसके लिए उसने स्कूल का एक सर्टिफिकेट भी दिया है, लेकिन सरकार का कहना है कि वह वारदात के वक्त बालिग था।
सोमवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि जिस तरह नाबालिगों के मामले सामने आ रहे हैं वह चिंताजनक है। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि इस मुद्दे पर कोई कदम उठाया जाए। कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा कि वह सरकार से बात करें और कोर्ट को बताएं कि जेजे एक्ट के लिए क्या सरकार गौर कर रही है। कोर्ट ने एक मई तक सरकार की राय कोर्ट में बताने के लिए कहा है।
गौरतलब है कि 16 दिसंबर 2012 को चलती बस में रेप और हत्या के मामले के बाद नाबालिगों के लिए कानून में बदलाव के लिए आंदोलन शुरू हुआ था। मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था और पीड़िता के परिजनों ने भी मांग की थी कि एक नाबालिग को फांसी की सजा दी जाए। इस केस में चार लोगों को फांसी की सजा दी गई, जबकि एक नाबालिग को तीन साल के लिए सुधार गह भेजा गया।
याचिका में यह भी कहा गया था कि संगीन मामलों में 18 साल नहीं बल्कि 16 साल तक वालों को भी बालिग की तरह माना जाना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था।
इधर, सरकार ने भी जेजे एक्ट में बदलाव करने से इनकार कर दिया था, लेकिन अब अगली सुनवाई में तय होगा कि इस मामले में सरकार का रुख क्या है।
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