
नीतीश कटारा (फाइल फोटो)
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विकास और सुखदेव पहलवान ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी
IPC की धारा 201 के तहत 5 साल की अलग सजा अब साथ-साथ चलेगी
इस फैसले के साथ ही सजा 5 साल कम हो गई
इससे पहले विकास और सुखदेव पहलवान ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 अप्रैल 2014 को हत्याकांड को ऑनर किलिंग करार देते हुए तीनों हत्यारों को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए कहा था कि विकास यादव व विशाल यादव को 30 साल से पहले सजा में छूट पर विचार न हो जबकि सुखदेव पहलवान की सजा में 25 साल से पहले छूट पर विचार न हो.
इस मामले में विकास और सुखदेव पहलवान ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. साथ ही मामले में मृतक नीतीश की मां नीलम कटारा और अभियोजन पक्ष की ओर से अर्जी दाखिल कर उनकी सजा बढ़ाने और फांसी की मांग की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट अभियोजन पक्ष व नीलम कटारा की फांसी की गुहार ठुकरा चुका है साथ ही विकास और अन्य को हत्या में दोषी करार दे दिया था.
सजा पर बहस के दौरान विकास यादव की ओर से दलील दी गई है कि हत्या मामले में या तो फांसी की सजा का प्रावधान है या फिर उम्रकैद की सजा का प्रावधान है. मामले में उम्रकैद की सजा का मतलब उम्रकैद होता है और उसके लिए कोई फिक्स टर्म तय नहीं किया जा सकता.
सजा में छूट देने का अधिकार एग्जेक्यूटिव का है और ऐसे में उसमें दखल नहीं दिया जा सकता. वहीं अभियोजन पक्ष की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट दयान कृष्णन ने दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट की लार्जर बेंच श्रद्धानंद के केस में इस बात की व्याख्या कर चुकी है कि अदालत सजा में छूट देने के बारे में टर्म तय कर सकती है.
पुलिस के मुताबिक, नीतीश कटारा 17 फरवरी, 2002 को गाजियाबाद के डायमंड हॉल में अपनी दोस्त की शादी में शामिल होने गए थे. वहीं से नीतीश का विकास और विशाल ने अपहरण किया और सुखदेव पहलवान के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी.
पुलिस के मुताबिक, नीतीश कटारा की विकास की बहन से दोस्ती थी और यह दोस्ती विकास और विशाल को पसंद नहीं थी. इसी कारण नीतीश की हत्या की गई.
नीतीश कटारा हत्याकांड - कब क्या हुआ
- फ़रवरी 2002: नीतीश कटारा की हत्या
- विशाल, विकास यादव पर आरोप
- विशाल, विकास की बहन से संबंध पर हत्या
- अप्रैल 2003: SC ने केस दिल्ली ट्रांसफ़र किया
- मई 2008: ट्रायल कोर्ट से उम्र क़ैद की सज़ा
- अप्रैल 2014: HC ने सज़ा घटाकर 30 साल की
- हाईकोर्ट के आदेश को विशाल, विकास की चुनौती
- अगस्त 2005: सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसले को सही ठहराया
- 3 अक्टूबर 2016: विकास की सज़ा 30 से 25 साल
- सुखदेव पहलवान की सज़ा 25 से 20 साल
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