महात्मा गांधी की हत्या की दोबारा जांच...
नई दिल्ली:
महात्मा गांधी की हत्या की दोबारा जांच का मामले में सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या महात्मा गांधी की हत्या के मामले की दोबारा जांच के आदेश दिए जा सकते हैं? कोर्ट ने वरिष्ठ वकील अमरेंद्र शरण को एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि क्या इस केस में पर्याप्त सबूत हैं कि दोबारा जांच के आदेश दिए जा सकते हैं या नहीं. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि इस मामले में दो लोगों को फांसी दी गई और आपके हिसाब से तीसरा व्यक्ति भी था, क्या कोई जिंदा है. इसके लिए सबूत कहां से आएंगे. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में संगठन को दोषी नहीं ठहरा सकते, कोई जिंदा हो तो बताइए. कोर्ट 30 अक्तूबर को मामले की सुनवाई करेगा.
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वहीं याचिकाकर्ता पंकज फडनवीस का कहना था कि इस हत्या के पीछे एक दूसरे संगठन का हाथ था और सुप्रीम कोर्ट को मामले की छानबीन करनी चाहिए. इससे पहले प्रिवी काउंसिल ने 1949 में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को जांच करनी चाहिए, लेकिन इसी दौरान दो लोगों को फांसी दे दी गई.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम आपके पैशन की तारीफ करते हैं, लेकिन इस केस में फिलहाल कोई मेटेरियल नहीं दिखता. क्या महात्मा गांधी का कोई दूसरा हत्यारा भी था? वैसे पुलिस तो इस कहानी पर भरोसा करती है कि गांधी पर तीन गोलियां चलाई गई थीं, लेकिन क्या चौथी गोली भी थी जिसे नाथूराम गोडसे के अलावा किसी और ने चलाई थी? ऐसे कई सवाल सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में उठाए गए हैं और साथ ही अनुरोध किया गया है कि नया जांच आयोग गठित करके गांधी की हत्या के पीछे की बड़ी साजिश का खुलासा किया जाए.
याचिका में गांधी की हत्या की जांच के बारे में भी सवाल उठाए गए हैं जिसमें कहा गया कि क्या यह इतिहास में मामला ढकने की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है और क्या उनकी मौत के लिए विनायक दामोदर सावरकर को जिम्मेदार ठहराने का कोई आधार है या नहीं? अभिनव भारत, मुंबई के शोधार्थी और न्यासी डाक्टर पंकज फडनवीस द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि वर्ष 1966 में गठित न्यायमूर्ति जेएल कपूर जांच आयोग पूरी साजिश का पता लगाने में नाकाम रहा. यह साजिश राष्ट्रपिता की हत्या के साथ पूरी हुई.
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फडनवीस ने गोडसे और नारायण आप्टे सहित अन्य आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए विभिन्न अदालतों द्वारा सही मानी गई तीन गोलियों की कहानी पर भी सवाल उठाए. आरोपियों को 15 नवंबर 1949 को फांसी पर लटकाया गया था जबकि सावरकर को सबूतों के अभाव में संदेह का लाभ दिया गया. सावरकर से प्रेरित होकर अभिनव भारत, मुंबई की स्थापना 2001 में हुई थी और इसने सामाजिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए काम करने का दावा किया था.
फडनवीस ने दावा किया कि उनका शोध और उन दिनों की खबरें बताती हैं कि गांधी को चार गोलियां मारी गई थीं और तीन तथा चार गोलियां के बीच अंतर अहम है क्योंकि गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को जिस पिस्तौल से महात्मा को गोली मारी थी उसमें सात गोलियों की जगह थी और बाकी की चार बिना चली गोलियां पुलिस ने बरामद की गई थीं. ऐसे में यह तय है कि उस पिस्तौल से सिर्फ तीन गोलियां चलीं. उन्होंने याचिका में कहा कि इस (गोडसे) पिस्तौल से चौथी गोली आने की कोई संभावना नहीं है.यह दूसरे हत्यारे की बंदूक से आई.
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वहीं याचिकाकर्ता पंकज फडनवीस का कहना था कि इस हत्या के पीछे एक दूसरे संगठन का हाथ था और सुप्रीम कोर्ट को मामले की छानबीन करनी चाहिए. इससे पहले प्रिवी काउंसिल ने 1949 में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को जांच करनी चाहिए, लेकिन इसी दौरान दो लोगों को फांसी दे दी गई.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम आपके पैशन की तारीफ करते हैं, लेकिन इस केस में फिलहाल कोई मेटेरियल नहीं दिखता. क्या महात्मा गांधी का कोई दूसरा हत्यारा भी था? वैसे पुलिस तो इस कहानी पर भरोसा करती है कि गांधी पर तीन गोलियां चलाई गई थीं, लेकिन क्या चौथी गोली भी थी जिसे नाथूराम गोडसे के अलावा किसी और ने चलाई थी? ऐसे कई सवाल सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में उठाए गए हैं और साथ ही अनुरोध किया गया है कि नया जांच आयोग गठित करके गांधी की हत्या के पीछे की बड़ी साजिश का खुलासा किया जाए.
याचिका में गांधी की हत्या की जांच के बारे में भी सवाल उठाए गए हैं जिसमें कहा गया कि क्या यह इतिहास में मामला ढकने की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है और क्या उनकी मौत के लिए विनायक दामोदर सावरकर को जिम्मेदार ठहराने का कोई आधार है या नहीं? अभिनव भारत, मुंबई के शोधार्थी और न्यासी डाक्टर पंकज फडनवीस द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि वर्ष 1966 में गठित न्यायमूर्ति जेएल कपूर जांच आयोग पूरी साजिश का पता लगाने में नाकाम रहा. यह साजिश राष्ट्रपिता की हत्या के साथ पूरी हुई.
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फडनवीस ने दावा किया कि उनका शोध और उन दिनों की खबरें बताती हैं कि गांधी को चार गोलियां मारी गई थीं और तीन तथा चार गोलियां के बीच अंतर अहम है क्योंकि गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को जिस पिस्तौल से महात्मा को गोली मारी थी उसमें सात गोलियों की जगह थी और बाकी की चार बिना चली गोलियां पुलिस ने बरामद की गई थीं. ऐसे में यह तय है कि उस पिस्तौल से सिर्फ तीन गोलियां चलीं. उन्होंने याचिका में कहा कि इस (गोडसे) पिस्तौल से चौथी गोली आने की कोई संभावना नहीं है.यह दूसरे हत्यारे की बंदूक से आई.
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