सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को लगाई फटकार, कहा- कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों की पढ़ाई न हो बाधित

अदालत ने कहा कि सरकारें  उस संख्या पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें जिन्होंने दोनों या माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है, और उन्हें राज्यों और केंद्र की योजनाओं का लाभ मिला है या नहीं? कोर्ट ने कहा कि राज्यों को विवरण देना होगा कि क्या इन अनाथों को आईसीपीसीएस योजना के तहत प्रति माह 2000 रुपये मिल रहे हैं या नहीं? 

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को लगाई फटकार, कहा- कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों की पढ़ाई न हो बाधित

सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों की सही संख्या नहीं बताने पर राज्यों को फटकार लगाई है.

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि मार्च 2020 में COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद से अनाथ हो गए बच्चों की निजी स्कूलों में शिक्षा कम से कम वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के दौरान बिना किसी व्यवधान के जारी रहे.  

कोर्ट ने सुझाव दिया कि ऐसा स्कूलों को फीस माफ करने या राज्य सरकार द्वारा ऐसे बच्चों की आधी फीस माफ करने के लिए कह कर किया जा सकता है. कोर्ट ने राज्यों को बाल कल्याण समितियों और जिला शिक्षा अधिकारियों के साथ मिलकर काम करने और उन निजी स्कूलों के साथ बातचीत करने के निर्देश दिए हैं, जहां ये बच्चे पढ़ रहे हैं. ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इस साल उनकी शिक्षा बाधित न हो. 

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पीएम केयर्स फंड के तहत अनाथों के लिए चलाए जाने वाली सभी वेलफेयर स्कीम का लाभ उन बच्चों को भी मिले जो कोविड-19 के दौरान अपने माता-पिता को खो चुके हैं. कोर्ट ने कई राज्यों को फटकार लगाई क्योंकि स्पष्ट आदेश के बावजूद अनाथ बच्चों के बारे में जानकारी नहीं दी गई.

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कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया कि वह अनाथ बच्चों की जानकारी जुटाने के लिए चाइल्ड केयर हेल्पलाइन, पुलिस, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं समेत हर विभाग की मदद ले. कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से बताया गया कि महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चों के बड़े होने पर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए 10 लाख रुपये प्रदान किए जाएंगे. यह राशि पीएम केयर्स फंड से दी जाएगी.

इसके बाद कोर्ट ने सवाल किया कि केवल कोरोना के कारण नहीं बल्कि कोरोना काल में अनाथ हुए सभी बच्चों को यह सहायता क्यों नहीं दी जा सकती? पश्चिम बंगाल जो मार्च 2020 से अब तक केवल 27 बच्चों के अनाथ होने की बात कह रहा है, उसपर कोर्ट ने हैरानी जताई क्योंकि अब तक जितने राज्यों ने आंकड़े दिए हैं वो कुल मिलाकर करीब 7 हजार है.

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मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि पश्चिम बंगाल सरकार अनाथ बच्चों की संख्या का पता नहीं लगा पा रही है, तो उसे किसी दूसरी एजेंसी को यह काम देना होगा. कोविड-19 महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों को लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. 

इन अनाथ बच्चों को सरकार की आर्थिक सहायता से जुड़ी स्कीमों का लाभ मिलेगा लेकिन असली विवाद बच्चों की संख्या को लेकर है. दरअसल सरकार की ओर से बताया गया है कि मार्च 2020 से लेकर जुलाई 2021 के बीच 645 बच्चे अनाथ हुए जबकि NCPCR के पोर्टल पर ऐेसे बच्चों की संख्या 6855 है.

अदालत ने कहा कि सरकारें  उस संख्या पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें जिन्होंने दोनों या माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है, और उन्हें राज्यों और केंद्र की योजनाओं का लाभ मिला है या नहीं? कोर्ट ने कहा कि राज्यों को विवरण देना होगा कि क्या इन अनाथों को आईसीपीसीएस योजना के तहत प्रति माह 2000 रुपये मिल रहे हैं या नहीं? 

शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को इन अनाथों की निजी या सरकारी स्कूलों में शिक्षा जारी रखना सुनिश्चित करना चाहिए. इसका विवरण स्टेटस रिपोर्ट में कोर्ट को देना होगा. SC ने सभी राज्यों के जिलाधिकारियों को  पुलिस, आंगनबाड़ी, आशा कार्यकर्ताओं और  सिविल सोसायटी संगठनों को मार्च 2020 के बाद अनाथ या माता-पिता में से एक को खोने वाले अनाथों की पहचान करने के लिए शामिल करने का निर्देश दिया. 

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सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूलों से भी कहा है कि इस अकादमिक सत्र में उन बच्चों की पढ़ाई चालू रहने दें जिनके अभिभावक की मृत्यु कोविड संक्रमण से हो गई है. कोर्ट ने राज्य सरकारों से भी कहा है कि वो ऐसे बच्चों और छात्रों की फीस का इंतजाम करें. वो फीस माफी की शक्ल में हो या भरपाई के तौर पर.
 
कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की भी खबर लेते हुए कहा कि यहां के अधिकारियों की लापरवाही और लालफीताशाही की वजह से सारी नीतियों की जानकारी वेबसाइट्स पर समय रहते अपलोड नहीं हो पाती है. हाल ही में स्टेज चार के तहत अनाथ हुए बच्चों के कल्याण के लिए योजनाएं बनाई गई लेकिन अब तक वेबसाइट्स से नदारद हैं.
 
NCPCR की ओर से कहा गया कि दरअसल डाटा तो राज्यों के बाल अधिकार संरक्षण आयोग ही अपलोड करते हैं. एक बार वो अपलोड हो जाएं और फिर सिस्टम लॉक हो जाए तो कोई भी उनके साथ छेड़छाड़ या फेर बदल नहीं कर सकता. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी गौर किया कि इसी वजह से जिला बाल कल्याण समितियों यानी सीडब्ल्यूसी के निर्णय अपडेट नहीं हो पाते, क्योंकि वो सही नहीं होते. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वो सिस्टम सुधारे.