यह ख़बर 02 फ़रवरी, 2012 को प्रकाशित हुई थी

सेना प्रमुख उम्र विवाद में सरकार की किरकरी

खास बातें

  • थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह की उम्र विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 10 फरवरी तक के लिए टल गई है। इस पर कोर्ट ने सरकार को अपना रुख बताने को कहा है।
नई दिल्ली:

सर्वोच्च न्यायालय में शुक्रवार को एक बार फिर केंद्र सरकार की किरकरी हुई। एक दिन पहले ही 122 2जी लाइसेंस रद्द करने का आदेश देने वाले न्यायालय ने शुक्रवार को सेना प्रमुख की उम्र से सम्बंधित विवाद में पूरी सरकारी प्रक्रिया पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि यह 'गलत' मालूम पड़ती है।

न्यायालय ने सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह की याचिका पर सुनवाई के बाद यह टिप्पणी की। मामले की अगली सुनवाई 10 फरवरी को होगी। जनरल ने याचिका में अपनी जन्मतिथि 10 मई, 1950 के बजाय 10 मई, 1951 स्वीकार करने की अपील की है। सेना प्रमुख की उम्र को लेकर यह विवाद सेना की दो शाखाओं में उनकी अलग-अलग जन्मतिथि रहने के कारण है।

रक्षा मंत्रालय ने इस सम्बंध में जनरल सिंह की वैधानिक शिकायत पिछले साल 30 दिसम्बर को खारिज कर दी थी, जिसका अर्थ यह हुआ कि उन्हें इसी साल 31 मई को सेवानिवृत्त होना होगा। इससे पहले 21 जुलाई, 2011 को भी सरकार ने सेना प्रमुख की जन्मतिथि 10 मई, 1950 ही मानने का आदेश जारी किया था।

सरकार के दोनों आदेश (30 दिसम्बर, 2011 और 21 जुलाई, 2011 के आदेश) महान्यायवादी (अटॉर्नी जनरल) जीई वाहनवति के परामर्श पर आधारित थे।

इस पर न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा और न्यायमूर्ति एचएल गोखले की खंडपीठ ने कहा कि जनरल सिंह की उम्र पर लिए गए निर्णय की पूरी प्रक्रिया में 'प्रशासनिक खामी' मालूम पड़ती है। सवाल उठता है कि एक ही कानूनी अधिकारी से एक ही मुद्दे पर कैसे दो बार सलाह ली जा सकती है। पूरी प्रक्रिया ही 'गलत' गलत मालूम पड़ती है।

खंडपीठ ने कहा, "हमारी चिंता निर्णय को लेकर नहीं बल्कि निर्णय प्रक्रिया को लेकर है, जो गलत मालूम पड़ती है।"

न्यायालय ने वाहनवति से भी सवाल किया, "जब आपने एक बार सरकार को कानून पर निर्णय लेने का परामर्श दिया, तो आप शिकायत पर निर्णय लेने में दोबारा कैसे अपनी राय दे सकते हैं?"

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न्यायमूर्तियों ने कहा, "समस्या मौलिक है। हम निर्णय के सही या गलत होने की बात नहीं कर रहे, लेकिन निर्णय प्रक्रिया गलत है।" उन्होंने कहा कि यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के भी खिलाफ है। उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्रालय अपने आदेश (30 दिसम्बर, 2011 के आदेश) को स्वतंत्र कानूनी परामर्श पर संशोधित कर सकता है अथवा न्यायालय इसे रद्द कर देगा। इसके बाद न्यायालय ने मामले की सुनवाई 10 फरवरी तक स्थगित कर दी।