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This Article is From Mar 02, 2020

सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ का फैसला- जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ दी गई याचिकाओं पर सुनवाई के लिए बड़ी बेंच की जरूरत नहीं

जम्मू- कश्मीर में 370 हटाने के संवैधानिक वैधता को लेकर दी गई याचिका की सुनवाई के लिए बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ का फैसला- जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ दी गई याचिकाओं पर सुनवाई के लिए बड़ी बेंच की जरूरत नहीं
नई दिल्ली:

जम्मू- कश्मीर में 370 हटाने के संवैधानिक वैधता को लेकर दी गई याचिका की सुनवाई के लिए बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा. यह फैसला पांच जजों की पीठ ने सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत के संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया है. दरअसल याचिकाकर्ताओं ने पांच जजों के संविधान पीठ के दो अलग- अलग और विरोधाभासी फैसलों का हवाला देकर मामले क बड़ी बेंच को भेजे जाने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों का संविधान पीठ को ये तय करना था कि जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को कम से कम सात जजों के संविधान पीठ को भेजा जाए या नहीं.   याचिकाकर्ताओं में  नेशनल कांफ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन और हसनैन मसूदी, पूर्व IAS अधिकारी और जम्मू-कश्मीर के राजनेता शाह फैसल, एक्टिविस्ट शेहला राशिद, कश्मीरी वकील शाकिर शबीर, वकील एम एल शर्मा,  जेके पीपल्स कॉन्फ्रेंस, सीपीआई (एम) के नेता मोहम्मद युसूफ तारिगामी समेत अन्य याचिकाकर्ता शामिल हैं.

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कुछ याचिकाओं में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है जिसमें राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया है. पीठ ने कहा - मामले को सात जजों के पीठ के पास भेजे जाने की जरूरत नहीं है.  आपको बता दें कि इस फैसले के खिलाफ 23 याचिकाएं दाखिल की गई हैं. 

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गौरतलब है कि बीते साल अगस्त में गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 हटाने का ऐलान कर दिया था. साथ ही राज्य को दो भागों में बांटते हुए लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के नाम से दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिए. इस फैसले का काफी विरोध हुआ है और राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित कई नेता अब भी नजरबंद या हिरासत में हैं. 

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