फाइल फोटो...
सोलन:
हिमाचल प्रदेश के जंगलों में लगी आग ने उतना कहर नहीं बरपाया, जितना नुकसान उत्तराखंड में हुआ। इसका श्रेय उन दिलेर अग्निशमन कर्मियों को भी जाता है, जिन्होंने जान खतरे में डालकर आग बुझाई। परवाणू में तैनात अग्निशमन दल के लिए इस साल गर्मियों के मौसम की बेहद व्यस्त शुरुआत रही है, लेकिन पिछला एक हफ्ता तो इम्तेहान भरा रहा। पहाड़ों पर जंगल की आग बुझाना न सिर्फ बेहद चुनौतीपूर्ण, बल्कि जोखिम से भरा भी रहता है।
हमारा काम ही खतरों से खेलना है : दमकलकर्मी
अग्निशमन सेवा में 21 साल गुज़ारने वाले बाल किशन कहते हैं कि जंगल की आग बुझाना खतरे से खेलने जैसा है। वो कहते हैं, 'जंगल की आग हवा के साथ बहुत तेजी से दिशा बदलती है...इसलिए इस काम में जान का जोखिम रहता है, लेकिन हमारा काम ही खतरों से खेलना है।'
पहाड़ी इलाके में तो अग्निशमन कर्मियों के लिए चुनौती और भी बढ़ जाती है। जहां पानी पहुंचना संभव नहीं, वहां ऐसी झाड़ियों से ही आग की लपटों से जूझना पड़ता है।
पहाड़ों पर जंगल की आग बुझाना बेहद मुश्किल भरा काम : जेसी शर्मा
हिमाचल प्रदेश के मुख्य फायर अफसर जेसी शर्मा कहते हैं, 'पहाड़ों पर जंगल की आग बुझाना बेहद मुश्किल भरा होता है। दुर्गम इलाकों तक पानी का टैंकर नहीं पहुंच सकता और एरिया भी बहुत बड़ा होता है। ऐसे में हमें वन विभाग की मदद लेनी पड़ती है।'
वन विभाग ने आग से निपटने के लिए 700 वालंटियर्स तैनात किए
वन विभाग ने आग से निपटने के लिए 700 वालंटियर्स तैनात किए हैं, जो न सिर्फ आग की दिशा पर नज़र रखते हैं, बल्कि उसे रिहायशी इलाकों तक पहुंचने से रोकते भी हैं... वो भी बिना किसी सुरक्षा कवच के। सिर्फ मजबूत इरादों के साथ ये लोग झुलसा देने वाली लपटों और दम घोटू धुएं से मुक़ाबला करते हैं।
केंद्र से जो पैसा आया है हम उसे बेहतर तैयारी पर खर्च करेंगे : वासुदेव
वन विभाग के प्रमुख एस पी वासुदेव कहते हैं, 'ये सही है कि कई मामलों में इनके पास मुकम्मल साजो-सामान नहीं होता, लेकिन हम इसके लिए तैयारी कर रहे हैं। केंद्र से जो पैसा आया है हम उसे बेहतर तैयारी पर खर्च करेंगे।'
पिछले एक हफ्ते के दौरान हिमाचल प्रदेश में कुल 593 छोटी-बड़ी आग जंगलों में लगी, जिससे करीब 5 हज़ार हेक्टेयर इलाका प्रभावित हुआ। ये नुकसान कहीं ज़्यादा हो सकता था, लेकिन आग इनके हौंसले की लक्ष्मण रेखा को पार नहीं कर सकी।
हमारा काम ही खतरों से खेलना है : दमकलकर्मी
अग्निशमन सेवा में 21 साल गुज़ारने वाले बाल किशन कहते हैं कि जंगल की आग बुझाना खतरे से खेलने जैसा है। वो कहते हैं, 'जंगल की आग हवा के साथ बहुत तेजी से दिशा बदलती है...इसलिए इस काम में जान का जोखिम रहता है, लेकिन हमारा काम ही खतरों से खेलना है।'
पहाड़ी इलाके में तो अग्निशमन कर्मियों के लिए चुनौती और भी बढ़ जाती है। जहां पानी पहुंचना संभव नहीं, वहां ऐसी झाड़ियों से ही आग की लपटों से जूझना पड़ता है।
पहाड़ों पर जंगल की आग बुझाना बेहद मुश्किल भरा काम : जेसी शर्मा
हिमाचल प्रदेश के मुख्य फायर अफसर जेसी शर्मा कहते हैं, 'पहाड़ों पर जंगल की आग बुझाना बेहद मुश्किल भरा होता है। दुर्गम इलाकों तक पानी का टैंकर नहीं पहुंच सकता और एरिया भी बहुत बड़ा होता है। ऐसे में हमें वन विभाग की मदद लेनी पड़ती है।'
वन विभाग ने आग से निपटने के लिए 700 वालंटियर्स तैनात किए
वन विभाग ने आग से निपटने के लिए 700 वालंटियर्स तैनात किए हैं, जो न सिर्फ आग की दिशा पर नज़र रखते हैं, बल्कि उसे रिहायशी इलाकों तक पहुंचने से रोकते भी हैं... वो भी बिना किसी सुरक्षा कवच के। सिर्फ मजबूत इरादों के साथ ये लोग झुलसा देने वाली लपटों और दम घोटू धुएं से मुक़ाबला करते हैं।
केंद्र से जो पैसा आया है हम उसे बेहतर तैयारी पर खर्च करेंगे : वासुदेव
वन विभाग के प्रमुख एस पी वासुदेव कहते हैं, 'ये सही है कि कई मामलों में इनके पास मुकम्मल साजो-सामान नहीं होता, लेकिन हम इसके लिए तैयारी कर रहे हैं। केंद्र से जो पैसा आया है हम उसे बेहतर तैयारी पर खर्च करेंगे।'
पिछले एक हफ्ते के दौरान हिमाचल प्रदेश में कुल 593 छोटी-बड़ी आग जंगलों में लगी, जिससे करीब 5 हज़ार हेक्टेयर इलाका प्रभावित हुआ। ये नुकसान कहीं ज़्यादा हो सकता था, लेकिन आग इनके हौंसले की लक्ष्मण रेखा को पार नहीं कर सकी।
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