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This Article is From Nov 11, 2016

Exclusive: दावेदार कई, मिलिए उनसे जिनकी सलाह पर पीएम नरेंद्र मोदी ने लिया फैसला

Exclusive: दावेदार कई, मिलिए उनसे जिनकी सलाह पर पीएम नरेंद्र मोदी ने लिया फैसला
महाराष्ट्र के औरंगाबाद में अर्थक्रांति संस्था संचालित कर रहे अनिल बोकिल.
नई दिल्ली: काले धन और भ्रष्टाचार से अर्जित राशि पर रोक लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 500 और 1000 के नोटों पर प्रतिबंध लगाने का कदम ऐतिहासिक निर्णय करार दिया जा रहा है. इस निर्णय के पीछे क्या किसी की सलाह थी? यह तो कोई नहीं जानता लेकिन इसके लिए दावेदार कई हैं जिनका कहना है कि उनकी सलाह पर पीएम मोदी ने यह साहसिक फैसला लिया.      

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी समय से कालाधन के मुद्दे को उठाते रहे हैं  और इस मुद्दे का इस्तेमाल करके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों पर हमले भी करते रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा और भ्रष्टाचार का मुद्दा काफी अहम हो गया. इस मुद्दे ने वास्तव में मतदाताओं को काफी हद तक प्रभावित भी किया.  अब जब पीएम मोदी ने काले धन पर 'सर्जिकल स्ट्राइक' की तर्ज पर हमला कर दिया है तब कई ऐसे लोग सामने आ रहे हैं जिनका दावा है कि पीएम मोदी ने उनकी सलाह पर गौर करके यह कदम उठाया.

महाराष्ट्र के अनिल बोकिल नाम के एक और शख्य हैं जो कालाधन के खिलाफ काफी समय से मुहिम चला रहे हैं. उनका भी दावा है कि उन्होंने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. इस मुलाकात में उन्होंने पीएम मोदी को समझाया था कि कैसे एक झटके में काले धन के मुद्दे पर कुछ समय के लिए काबू पाया जा सकता है.

महाराष्ट्र के औरंगाबाद के अनिल बोकिल ने अर्थक्रांति नाम के समूह का गठन किया था. वे कुछ समय से 1,000 और 500 के नोटों पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी कर रहे थे. प्रधानमंत्री मोदी से बोकिल की पहली मुलाकात 2012 में उस समय हुई थी जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

अर्थक्रांति संस्था का  दावा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में 95 प्रतिशत हिस्सा 500, 1000 और 100 रुपये का है. जबकि देश के आम आदमी की औसत आय केवल 150 रुपये प्रतिमाह है. ऐसे मे ज्यादा बड़े नोटों का प्रयोग केवल काला धन जमा करने के लिए होता है. यह काला धन बनाने और बढ़ाने में सहायक है.

एनडीटीवी से बात करते हुए अनिल बोकिल के सहायक अरुण फोके ने बताया कि पहली बार अनिल बोकिल ने नरेंद्र मोदी से 2013 में मुलाकात की थी. यह मुलाकात तब हुई थी जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्हें बीजेपी ने अपना पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया था.

उन्होंने दावा किया कि बोकिल के सुझावों मानने के बाद ही सरकार ने यह कदम उठाया है. अरुण ने बताया कि मुख्यमंत्री मोदी से मुलाकात के लिए केवल 9 मिनट का समय मिला था लेकिन विषय में मोदी की रुचि बहुत बढ़ी और चर्चा दो घंटे से भी ज्यादा चली. मुख्यमंत्री मोदी को बोकिल के सुझाव काफी अच्छे लगे और उन्होंने तब सकारात्मक जवाब दिया था.

अरुण का दावा है कि जब नरेंद्र मोदी 2014 में चुनाव जीते और पीएम बने उसके बाद भी उन्होंने बोकिल से मुलाकात की. अरुण का कहना है कि दोनों ने कई बार मुलाकात की. इस मुलाकात को गुप्त ही रखा गया. इतना ही नहीं अरुण का कहना है कि पीएम मोदी ने अपने कई अधिकारियों के साथ बोकिल की मुलाकात करवाई और तो और बोकिल के प्रेजेंटेशन करवाए गए. कई अर्थशास्त्रियों के समक्ष बोकिल ने अपनी बातों को रखा.

तमाम जगहों से संतुष्ट होने के बाद पीएम मोदी ने इसके लिए तैयारी कर ली. लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी सलाह यह थी कि लोगों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ा जाए. अरुण का दावा है कि बोकिल ने सबसे पहले इसकी व्यवस्था करने की बात कही थी. यही वजह है कि पहले जनधन योजना के तहत गरीब लोगों के खाते खोले गए. फिर इस योजना को लागू किया गया.

अरुण ने कहा कि अर्थक्रांति सरकार से पांच मांगों को पूरा करने की बात कहती रही है. अभी सरकार ने केवल एक ही मांग मानी है.

दावेदारों में योगगुरु बाबा रामदेव भी हैं. यह तो सबको पता है कि बाबा रामदेव काफी समय से काले धन के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं. सरकार के कदम के लिए श्रेय लेने में भी वह पीछे नहीं हैं. उन्होंने एक ट्वीट शेयर किया है जिसमें उन्होंने बताया है कि उन्होंने काफी पहले (4 जून 2011 को) इस प्रकार की बात कही थी और सरकार को यह करने के लिए कहा था. लेकिन कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने यह कदम नहीं उठाया. वैसे यह तो साफ ही है कि बाबा रामदेव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं.


पीएम मोदी के फैसले के बाद रामदेव ने एक ट्वीट में बताया कि आरबीआई के अनुसार देश में 17.77 लाख करोड़ रुपये चलन में हैं और इसमें भी 86 फीसदी 500 और 1000 रुपये के नोट हैं. सरकार के कदम से यह रुपया बेकार हो जाएगा. इसमें काफी मात्रा काले धन की है.

बुधवार को खुद यूपीए के कार्यकाल के दौरान वित्तमंत्री रहे और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पी चिदंबरम ने दावा किया कि उनके कार्यकाल में भी ऐसा प्रस्ताव आया था लेकिन उन्हें यह उपयोगी नहीं लगा. उन्होंने यहां तक दावा कर डाला कि 1978 में किया गया ऐसा प्रयोग विफल रहा था.

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