यह ख़बर 17 जनवरी, 2014 को प्रकाशित हुई थी

जासूसीकांड : कोर्ट ने कहा, मोदी के खिलाफ 'अपमानजनक' आरोप हटाए जाए

नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि गुजरात के जासूसीकांड विवाद की सीबीआई जांच के लिए याचिका पर सिर्फ तभी विचार किया जाएगा, जब इस बात की पुष्टि हो जाएगी कि निलंबित आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ 'अपमानजनक' आरोपों को हटाने के आदेश पर अमल कर लिया है।

शर्मा ने जासूसी कांड की जांच कराने का अनुरोध किया है और गुजरात सरकार ने इसका जोरदार विरोध ही नहीं किया, बल्कि उन पर फर्जी पासपोर्ट की मदद से देश से बाहर भागने का प्रयास करने सहित कई मामलों में लिप्त होने का आरोप लगाया है।

शीर्ष अदालत ने शर्मा को अपनी पत्नी और बेटे से मिलने के लिए अमेरिका जाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया है। ये दोनों अमेरिकी नागरिक हैं।

न्यायालय ने कहा कि शर्मा की जासूसी कांड की सीबीआई जांच की अर्जी पर तभी विचार किया जाएगा जब इसकी पुष्टि हो जाएगी कि उसके 12 मई, 2011 के आदेश पर अमल किया जा चुका है।

भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1984 बैच के अधिकारी शर्मा चाहते हैं कि उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की सीबीआई से जांच कराने और मुकदमा गुजरात से बाहर स्थानांतरित किया जाए।

शीर्ष अदालत ने शर्मा को निर्देश दिया कि मोदी के खिलाफ 'अपमानजनक' आरोपों से संबंधित पैराग्राफ निकाल कर संशोधित याचिका दायर की जाए।

न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की खंडपीठ ने कहा कि चूंकि संशोधित याचिका सुनवाई के दौरान उपलब्ध नहीं है जबकि मूल याचिका के साथ संशोधित याचिका का मिलान करने की आवश्यकता है।

न्यायाधीशों ने कहा कि हम देखेंगे कि क्या आपने हमारे आदेश पर अमल किया है या नहीं। हम संशोधित याचिका का अवलोकन करना चाहते हैं क्योंकि गुजरात सरकार और मोदी के निकट सहयोगी अमित शाह का आरोप है कि शर्मा ने सीबीआई जांच के लिए दायर अर्जी में अपमानजनक आरोप शामिल हैं।

न्यायाधीशों ने कहा, 'यदि ऐसा है तो हम पैराग्राफ का मिलान करेंगे। हमें देखना होगा कि आदेश का पालन किया गया है। यदि आदेश पर अमल किया गया है तो हम इस पर गौर करेंगे अन्यथा हम इस पर विचार नहीं करेंगे।

न्यायालय ने इसके साथ ही जासूसीकांड को लेकर दायर याचिका दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दे दिया। शर्मा के वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि अर्जी में मोदी के खिलाफ आरोपों का सार देना जरूरी है ताकि गुजरात सरकार की कथित दुर्भावना को दर्शाया जा सके जिसने निलंबित आईएएस अधिकारी और उसके आईपीएस अधिकारी भाई कुलदीप शर्मा पर अनेक झूठे मामले थोप दिये हैं क्योंकि उसने नृत्यांगना मल्लिका साराभाई के खिलाफ मामले दर्ज करने से इनकार कर दिया था।

लेकिन प्रशांत की इन दलीलों का अमित शाह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने विरोध किया और कहा कि शर्मा ने 12 मई, 2011 के न्यायिक आदेश पर अमल नहीं किया है जिन्हें मूल याचिका के दस पैराग्राफ में लगाए गए आरोप याचिका में नहीं रखने का निर्देश दिया गया था।

न्यायालय ने शर्मा को अमेरिका जाने की अनुमति देने से इंकार करते समय अपने उस आदेश पर गौर किया जिसमें इस अधिकारी को जमानत देते वक्त अनेक शर्ते लगायी गयी थीं।

गुजरात के अतिरिक्त महाधिवक्ता तुषार मेहता ने शर्मा के विदेश यात्रा के अनुरोध का विरोध किया और इस सिलसिले में 2007 के एक मामले सहित कई अन्य मामलों की ओर न्यायालय का ध्यान आकषिर्त किया। शर्मा 2007 के मामले में फरार थे और बाद में वह नयी दिल्ली के एक गेस्ट हाउस में मिले जहां फर्जी पहचान से रह रहे थे।

उन्होंने कहा कि शर्मा के पास कथित रूप से किसी अन्य व्यक्ति के नाम का ड्राइविंग लाइसेंस है जिस पर उनकी फोटो है और उनके लैपटाप की जांच से पता चला है कि वह देश से भागने का प्रयास कर रहे हैं।

मेहता ने शीर्ष अदालत के आदेश का जिक्र करते हुए कहा, 'न्यायालय ने कहा था कि इन मामलों में पुलिस की जांच पूरी होने तक वह देश से बाहर नहीं जाएंगे और उनके खिलाफ पांच मामलों का निबटारा होने तक उनका पासपोट नहीं लौटाया जाएगा।' गुजरात सरकार की इस दलील का संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने कहा कि इस अनुरोध को स्वीकार करना मुश्किल लगता है।

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शर्मा ने 2011 में एक याचिका दायर करके अनुरोध किया था कि उनके खिलाफ दर्ज मामलों की जांच सीबीआई को सौंपी जाए और नवंबर, 2013 में वह जासूसी कांड का विवाद भी शीर्ष अदालत लेकर आ गए थे।