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This Article is From Mar 05, 2018

शोपियां फायरिंग केस : जम्मू-कश्मीर सरकार ने कहा, मेजर आरोपी नहीं

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में राज्य पुलिस फिलहाल 24 अप्रैल तक जांच नहीं करेगी.

शोपियां फायरिंग केस : जम्मू-कश्मीर सरकार ने कहा, मेजर आरोपी नहीं
शोपियां में सेना की फायरिंग के बाद विरोध में इकट्ठा हुए लोग. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के शोपियां में गोलीबारी की घटना को लेकर मेजर आदित्य कुमार के पिता की याचिका पर सुनवाई को दौरान राज्य सरकार ने आज कोर्ट में कहा कि एफआईआर में मेजर आदित्य का नाम नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने सेना के मेजर आदित्य व अन्य के खिलाफ दर्ज FIR पर फिलहाल जांच पर रोक लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में राज्य पुलिस फिलहाल 24 अप्रैल तक जांच नहीं करेगी.

सुप्रीम कोर्ट 24 अप्रैल को मामले की अंतिम सुनवाई करेगा. चीफ जस्टिस ने कहा कि ये मामला सेना के अधिकारी का है, किसी सामान्य अपराधी का नहीं.  जम्मू कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा - मेजर आदित्य का नाम FIR में बतौर आरोपी नाम नहीं है. सिर्फ ये लिखा गया है कि वो बटालियन को लीड कर कर रहे थे.

कोर्ट ने पूछा, क्या नाम लिया जाएगा? राज्य सरकार ने कहा कि ये जांच पर निर्भर करता है. कोर्ट को मामले की जांच जारी रखने की इजाजत देनी चाहिए. वहीं सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य सरकार इस मामले में आमने-सामने दिखे.

AG के के वेणुगोपाल ने कहा कि आर्मी एक्ट 7 के तहत राज्य सरकार इस तरह FIR दर्ज नहीं कर सकती. इसके लिए केंद्र की अनुमति लेना जरूरी है. वहीं, राज्य सरकार ने इसका विरोध किया. राज्य सरकार ने कहा कि FIR दर्ज करते वक्त इसकी जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट अब ये तय करेगा कि ये FIR वैध है या नहीं. शोपियां फायरिंग केस मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है.

20 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेना के मेजर आदित्य कुमार के खिलाफ FIR पर कोई कार्रवाई नहीं होगी. कोर्ट ने कहा अगली सुनवाई तक कोई कार्रवाई के लिए कदम नहीं उठाया जाएगा. जम्मू कश्मीर सरकार और अटार्नी जनरल को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब देने को कहा था. दरअसल सेना के मेजर के पिता ने FIR के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में जम्मू कश्मीर के शोपियां में 27 जनवरी को दाखिल FIR को रद्द करने की मांग की है.

10 गढवाल राइफल के मेजर आदित्य कुमार के पिता ने लेफ्टिनेंट कर्नल कर्मवीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा है कि राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान को बचाने के लिए और जान की बाज़ी लगाने वाले भारतीय सेना के जवानों के मनोबल की रक्षा की जाए. जिस तरीके से राज्य में राजनीतिक नेतृत्व द्वारा FIR का चित्रण किया गया और राज्य के उच्च प्रशासन ने प्रोजेक्ट किया इससे लगता है कि राज्य में विपरीत स्थिति है. ये उनके बेटे उनके लिए समानता के अधिकार और जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन है. 

पुलिस ने इस मामले में बेटे को आरोपी बना कर मनमाने तरीके से काम किया है ये जानते हुए भी की वो घटना स्थल पर मौजूद नहीं था और सेना के जवान शांतिपूर्वक काम कर रहे थे. जबकि हिंसक भीड़ की वजह से वो सरकारी संपत्ति को बचाने के लिए कानूनी तौर पर करवाई करने के लिए मजबूर हुए. सेना का ये काफ़िला केंद्र सरकार के निर्देश पर जा रहा था और अपने कर्तव्य का पालन कर रहा था. ये कदम लिया गया जब भीड़ ने पथराव किया और  हिंसक भीड़ ने कुछ जवानों को पीट पीट कर मार डालने की कोशिश की और देश विरोधी गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई से रोकने की कोशिश की गई. इस तरह का हमला सेना का मनोबल गिराने के लिए किया गया. याचिका में मांग की गई है आतंकी गतिविधियों और सरकारी सम्पतियों को नुकसान पहुंचाने और केंद्रीय कर्मचारियों के जीवन को खतरे में डालने वाले लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की जाए और पूरे मामले की जांच दूसरे राज्य में किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए. 

राज्य सरकार को आर्मी के मामले में इस तरह के फैसले लेने से रोका जाए और ऐसी स्थिति में सैनिकों को बचाने के लिए गाइड लाइन बनाई जाए. ड्यूटी पर तैनात सेना के जवानों को इस तरह की स्थिति में मुआवजे का प्रावधान किया जाए.
 

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