शिवसेना ने केंद्र सरकार की ओर से जारी की गई नई शिक्षा नीति (New Education Policy 2020) को लेकर अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय (Saamana Editorial) में टिप्पणी की है. गुरुवार को छपे संपादकीय में सामना ने लिखा है कि केंद्र सरकार की ओर से जारी की गई नई शिक्षा नीति राफेल फाइटर जेट की खरीद (Rafale Fighter Jets Procurement) से ज्यादा जरूरी है, लेकिन इसको लागू किए जाने को लेकर चिंताएं उठ रही हैं. संपादकीय में कहा गया है कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अच्छा फैसला किया है. उन्होंने देश की शिक्षा नीति को पूरी तरह से बदल दिया है. ऐसा 34 सालों बाद हुआ है. यह फ्रांस से आए राफेल विमानों से ज्यादा जरूरी है. अब हमें नया शिक्षा मंत्रालय मिल गया है, तो नया शिक्षा मंत्री भी मिलेगा. अगर कोई एजुकेशन सेक्टर में बेहतर पकड़ रखने वाला व्यक्ति है, तो उसे यह पद दिया जाना चाहिए. कई लोग ऐसे हैं, जिन्हें फाइनेंस की जानकारी नहीं है, या हेल्थ सेक्टर की बहुत जानकारी नहीं है लेकिन उन्हें मंत्रालय दिया गया और उन्होंने वहां बहुत अच्छा काम नहीं किया.'
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शिवसेना ने पांचवीं कक्षा तक बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने को अनिवार्य बनाए जाने के फैसले का स्वागत किया. हालांकि, पार्टी ने सवाल उठाया कि यह नियम क्या बस सरकारी स्कूलों तक ही सीमित रह जाएगा और प्राइवेट या फिर मिशनरी स्कूलों तक नहीं पहुंच पाएगा? संपादकीय में कहा गया है कि इंग्लिश को जोर दिए जाने से बहुत सी भाषाएं और बोलियां मर रही हैं. संघ परिवार हमेशा से मातृभाषा में पढ़ाई पर जोर देता रहा है.
संपादकीय में कहा गया है कि सरकार ने 10-12वीं की परीक्षा को खत्म करते हुए 5+3+3+4 के फ्रेमवर्क को पेश किया गया है, जो ज्यादा व्यावहारिक, कुशलता पर आधारित और गुणवत्ता को वरीयता देता है. हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि इससे मनचाहे नतीजे मिलेंगे या नहीं, इस पर संशय है क्योंकि सिस्टम में गुणवत्ता को इतनी अहमियत नहीं दी जाती है.
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सामना ने सवाल उठाए हैं कि आखिर नई एजुकेशन पॉलिसी पर नया करिकुलम कौन बनाएगा और इसके लिए किन यूनिवर्सिटी से विशेषज्ञ काम करेंगे? पार्टी ने नई शिक्षा नीति में नैतिक शिक्षा को कोई जोर न देने पर निराशा जताई है.
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