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This Article is From Mar 06, 2015

शरद शर्मा की खरी खरी : संभलकर केजरीवाल, राजनीति में धारणा बड़ी चीज है...

Sharad Sharma, Rajeev Mishra
  • India,
  • Updated:
    मार्च 06, 2015 15:58 pm IST
    • Published On मार्च 06, 2015 15:09 pm IST
    • Last Updated On मार्च 06, 2015 15:58 pm IST

ये तो तय ही था कि योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण आम आदमी पार्टी की पोलिटिकल अफेयर्स कमिटी से बाहर हो जाएंगे और आखिरकार हो भी गए। लेकिन, इसके बारे में अभी तक जो देखा, सुना या बताया जा रहा है वो केवल एक पक्ष है और इस एक पक्ष के होने के कारण पार्टी का एक गुट सिम्पैथी पा रहा है तो दूसरा गुट बाल्टी भर आलोचना का शिकार हो रहा है।

ये बहुत स्वाभाविक सी बात है जब कोई ताक़तवर माना जाने वाला किसी कमज़ोर माने जानेपर ज़्यादती करता दिखता है तो हम ताक़तवर की आलोचना करते हैं और कमज़ोर को सिम्पैथी देते हैं।

जैसे सड़क पर जब कोई बाइक वाला साइकिल वाले को टक्कर मारता है तो हम मानते हैं कि गलती बाइक वाले की ही होगी। ऐसे ही जब कोई कार वाला बाइक वाले को टक्कर मारता है तो मानते हैं कि गलती कार वाले की होगी। टका सा बयान, थोड़ा पैसा क्या आ गया गरीब आदमी को दबाने में लगा है।

लेकिन बड़ा या छोटा होने से सही और गलत का फैसला नहीं होता, क्योंकि जब तक असली बात ही मालूम न चले तब तक सही या गलत का फैसला कैसे होगा? और जब तक फैसला नहीं होगा तब धारणा काम करती है, जो कमज़ोर दिखने वाले के पक्ष पहले से ही और आसानी से बन जाती है।

इसलिए मैं शुरू से ये कह रहा हूं कि आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने जो फैसला किया है पोलिटिकल अफेयर्स कमिटी से दो बड़े नेताओं को बाहर करने का उसपर सवाल नहीं है बल्कि फैसला लिए जाने के तरीके पर सवाल हैं।

फैसले के तरीके पर सवाल क्यों?

1 . योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण आम आदमी पार्टी की पोलिटिकल अफेयर्स कमिटी से बाहर हुए, ये घोषणा तो पार्टी ने सार्वजनिक रूप से की, लेकिन जिन आरोप के चलते या कारणों के चलते ये फैसला हुआ उसपर पार्टी आधिकारिक रूप से चुप है।

2. इस मुद्दे पर बोलने के लिए सभी नेताओं और प्रवक्ताओं को मना किया गया है।

3. अगर मान भी लें कि चिट्ठियां लीक करने की वजह ये कार्रवाई हुई तो चिट्ठियां दूसरी तरफ से भी लीक हुई।

असल में जब पार्टी खुद सामने आकर कुछ नहीं कहेगी और चुप्पी साध लेगी तो यही होगा जो हो रहा है और इसके लिए ज़िम्मेदार कोई बीजेपी या कांग्रेस वाले नहीं है, बल्कि खुद आम आदमी पार्टी वाले हैं।

ऐसी कार्रवाई क्यों हुई?

आम लोगों, पार्टी के अपने वॉलंटियर्स और मीडिया में भी लोगों के मन भी सवाल उठ रहे हैं कि
(प्रशांत भूषण)
1.  अरविन्द और प्रशांत का साथ तो जाने कितना पुराना है, लोकपाल आंदोलन से लेकर पार्टी ही नहीं बल्कि ये साथ उससे भी बहुत पुराना है।

2. कदम कदम पर प्रशांत भूषण और शांति भूषण के अनुभव और कद से अरविन्द केजरीवाल, आंदोलन और पार्टी सबको फायदा हुआ।

3. जब आम आदमी पार्टी शुरू हुई तो पहला चंदा शांति भूषण ने एक करोड़ रुपये के चेक के रूप में दिया जो की बहुत बड़ी बात थी, आज तो इस पार्टी को कोई भी कितना भी चंदा दे देगा लेकिन उस समय दिए गए चंदे का महत्व हर कोई नहीं समझ सकता।

4. आम आदमी पार्टी आगे तो बढ़ी, प्रशांत भूषण का भी कद ज़रूर बढ़ा क्यूंकि अब वो देश के पोलिटिकल सिस्टम के अहम हिस्सा बन गए हैं और उनकी बात का वज़न पहले से ज़्यादा बढ़ गया है।

5. अरविन्द केजरीवाल अखंड भारत में विश्वास रखते हैं जबकि समय समय पर प्रशांत भूषण के कश्मीर मुद्दे पर दिए गए बयान पार्टी के लिए मुश्किल बढ़ाते रहे लेकिन सब ठीक चलता रहा।

(योगेन्द्र यादव)
1. योगेन्द्र यादव पार्टी बनाने की घोषणा से ठीक पहले अरविन्द के साथ जुड़े।

2. योगेन्द्र यादव के राजनीतिक अनुभव खासतौर से पोलिटिकल एनालिसिस का खूब फायदा आम आदमी पार्टी को मिला।

3. अभी के दिल्ली चुनाव में प्रचार के आखिरी में मैंने अरविन्द केजरीवाल से पूछा कि कितनी सीटें आ रही हैं आपकी? तो अरविन्द बोले ''योगेन्द्र जी ने कहा है कि हम 51 सीटें जीतेंगे'' (इसका मतलब आप खुद निकाले मैं नहीं निकालूँगा)

4. योगेन्द्र यादव को साल 2014 में पार्टी का मुख्य प्रवक्ता के साथ हरियाणा का ज़िम्मा दिया अरविन्द केजरीवाल ने।

5. योगेन्द्र यादव को हरियाणा का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बना रहे थे केजरीवाल और हरियाणा की 10 में से 9 लोकसभा सीटों पर टिकट योगेन्द्र यादव के कहने पर ही फाइनल किए गए।

6. 2014 के लोकसभा चुनाव में अरविन्द चाहते थे कि पार्टी 50-70 सीटों पर ही चुनाव लड़े लेकिन योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण के कहने पर पार्टी ने 434 सीटों पर चुनाव लड़ा, और केवल 13 सीटों पर अपनी ज़मानत बचा पायी जिनमें 4 जीती हुई पंजाब की सीटें शामिल हैं।

ये जो मैंने ऊपर लिखा है इससे पता चलता है कि रिश्ते कितने मज़बूत और विश्वास कितना गहरा था इन लोगों में, इसलिए लोग सोच रह हैं कि ऐसा क्या हो गया कि बात यहाँ तक आ गई।

केजरीवाल कैंप के योगेंद्र यादव और कैंप पर आरोप कुछ इस तरह हैं-

1. जनवरी 2014 में जब केजरीवाल सीएम थे तब योगेंद्र यादव ने अपना सचिवालय बनाने की कोशिश यह कहकर की कि वो अब राष्ट्रीय संयोजक बनने जा रहे हैं।

2. मई 2014 में शांति भूषण ने केजरीवाल को चिट्ठी लिखकर कहा कि आप इस पद के योग्य नहीं है इसलिए आप इस्तीफा दें और योगेंद्र यादव को संयोजक बनाएं वर्ना मैं जनता और मीडिया में जाकर तुमको एक्सपोज़ कर दूंगा।

3. जून 2014 में जब ये अटकल चल रही थी कि दिल्ली में बीजेपी सरकार बना सकती है तब पार्टी की एक पॉलिसी मीटिंग के दौरान शांति भूषण बिना न्योते के बैठक में आए और प्रस्ताव रखा कि सरकार बीजेपी बना रही है और केजरीवाल नेता विपक्ष बनेंगे इसलिए पार्टी में एक व्यक्ति एक पद की नीति के तहत योगेंद्र यादव को राष्ट्रीय संयोजक बना देना चाहिए। इस बैठक में योगेंद्र यादव मौजूद थे।

4. जून 2014 में ही आशीष खेतान से प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस से समर्थन लेकर सरकार बनाने की कोशिश तो हम केजरीवाल को पार्टी से निकाल देंगे।

5. अगस्त 2014 में चंडीगढ़ में पत्रकारों को बुलाकर ये खबर प्लांट कराई जिसमें बताया कि कैसे पार्टी तो हरियाणा में चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन केजरीवाल ने तानाशाही तरीके से निर्णय लिया कि दिल्ली से पहले कोई चुनाव पार्टी नहीं लड़ेगी और सारे संसाधन और पैसा दिल्ली चुनाव में लगा डाले।

6. जनवरी 2015 में जब दिल्ली चुनाव चल रहे थे अखबारों में 12 आपत्तिजनक उम्मीदवारों पर दस्तावेज के साथ खबर छपवाई। खबर इस तरह से प्लांट कराई, जिससे केजरीवाल की छवि तानाशाह की बने।

कुल मिलाकर केजरीवाल समर्थक गुट ये मानता है कि योगेंद्र यादव ने प्रशांत और शांति भूषण के जरिये षड्यंत्र करके केजरीवाल को हटाकर राष्ट्रीय संयोजक बनने की कोशिश की।

लेकिन ये आरोप मीडिया के सामने आकर कोई पार्टी नेता क्यों नहीं लगाता?
क्यों नहीं बताता कि ये आरोप थे, इस तरह से जांच हुई और माना गया और इसीलिए दोनों को बाहर का रास्ता दिखाया गया।

हो सकता है ये आरोप सही हों या गलत हों लेकिन जब प्रक्रिया या तरीका पारदर्शी नहीं दिखेगा और जब पर्दा किया जाएगा, चुप्पी साधी जाएगी तो सवाल तो उठेंगे ही और सन्देश ये जाएगा ही आपने सही नहीं किया।

असल में आम आदमी पार्टी ये सन्देश देने में नाकाम रही कि उसने ऐसा फैसला क्यों किया? केवल एक पक्ष ही चर्चा में है और इसीलिए वोटिंग में योगेन्द्र-प्रशांत हारे और आम जनता, आम आदमी पार्टी वॉलंटियर्स और मीडिया के लोगों के बीच बन रही धारणा में पार्टी हार गई और रही सही कसर राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य मयंक गांधी की वॉलंटियर्स को लिखी चिट्ठी ने कर दी जिसमें सारे फसाद के जड़ केजरीवाल को बताया गया।

पत्रकारिता का पहला उसूल है कहानी कभी एक पक्ष से पूरी नहीं होती दूसरा पक्ष जानना अनिवार्य होता है और इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि आम आदमी पार्टी सामने आये और सब साफ़ बताये और अगर ऐसा नहीं होता तो बस फिर क्या धारणाएं बनती रहेंगी जो आज नहीं तो कल ज़वाब देने को मजबूर ज़रूर करेंगी। याद रहे राजनीति में धारणा बहुत बड़ी चीज़ होती है।

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