वर्ष 2014 के आखिरी महीने में जब महामना मदन मोहन मालवीय को 'भारत रत्न' से सम्मानित किए जाने की घोषणा हुई तो बनारस में खुशी की लहर दौड़ गई, और इसकी एक बड़ी वजह यह थी कि बनारस देश में पहला ऐसा जिला बन गया, जहां के रहने वाले या उससे जुड़ी सात हस्तियां देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से विभूषित की जा चुकी हैं, यानि दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि बनारस 'भारत रत्नों का शहर' बन गया है। इस सम्मान को पाने वाली बनारस की ये विभूतियां कौन हैं, यदि इस पर नज़र डालें तो न सिर्फ हमें बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब की जीवन्तता पता चलती है, बल्कि घाटों के शहर कहे जाने वाले बनारस में ज्ञान-विज्ञान और संगीत की त्रिवेणी के होने का एहसास भी पुख्ता हो जाता है...
बनारस की विभूतियों को 'भारत रत्न' मिलने की शुरुआत इस सम्मान की स्थापना के साथ ही हो गई थी। पहली बार वर्ष 1954 में जिन तीन विभूतियों को इस सम्मान से नवाज़ा गया था, उनमें बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के वर्ष 1939 से 1948 तक वाइस चांसलर रहे सर्वपल्ली राधाकृष्णन भी शामिल थे, और उसके बाद से यह सिलसिला चल निकला।
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विशेष वीडियो रिपोर्ट : सात बनारस वालों को मिल चुका है 'भारत रत्न'
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वर्ष 1955 में यह सम्मान बनारस में 12 जनवरी, 1869 को साह परिवार में जन्मे भगवान दास को दिया गया, जो बड़े चिंतक, विचारक, शिक्षाविद और दार्शनिक थे। भगवान दास की लिखी दर्जनों किताबें उनके ज्ञान की गवाही देती हैं। बहुत कम लोग जानते होंगे कि भगवान दास ने एक तरफ मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की नींव रखी थी, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने काशी विद्यापीठ की स्थापना भी की। उन्होंने एनी बेसेंट के साथ थियोसॉफिकल सोसायटी की शुरुआत में भी भूमिका निभाई। उनके परपोते समीरकांत का कहना है, "दादा जी एक महान दार्शनिक थे, उन्होंने कई किताबें लिखीं, बहुत बड़े शिक्षाविद थे, उन्होंने सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल की स्थापना की, वह काशी विद्यापीठ के फाउंडर चांसलर थे, बीएचयू लाइब्रेरी में उनका एक अलग सेक्शन भी है..."
इसके बाद वर्ष 1966 में देश को 'जय जवान जय किसान' का नारा देने वाले बनारस के लालबहादुर शास्त्री को 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया। लालबहादुर शात्री का घर बनारस के रामनगर में हैं। कहते हैं कि वह बड़े अच्छे तैराक थे और पढ़ाई के दौरान अक्सर गंगा तैरकर इस पार आते थे। देश के दूसरे प्रधानमंत्री रहे लालबहादुर शात्री की सादगी और ईमानदारी का पूरा देश कायल है।
वर्ष 1966 के बाद एक काफी लंबा अंतराल गुजर गया, और प्रतीक्षा पर विराम तब लगा, जब बनारस में जन्मे और अपने सितार से पूरी दुनिया को झंकृत कर देने वाले पंडित रविशंकर को वर्ष 1999 में यह सम्मान हासिल हुआ। हालांकि पंडित रविशंकर ने अमेरिका की नागरिकता ले ली थी, लेकिन उनका बनारस से नाता बना रहा।
इसके लगभग तुरंत बाद वर्ष 2001 में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को 'भारत रत्न' से नवाज़ा गया, लेकिन वह सम्मान उनसे कहीं ज़्यादा उनकी 'जादुई फूंक' के लिए था... दरअसल, वाद्ययंत्र शहनाई दशकों तक शुभ अवसरों पर लोगों के घरों की चौखट पर बजता आ रहा था, लेकिन उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने उसमें ऐसी फूंक मारी कि वह लोगों की ड्योढ़ी से उठकर आंगन में बजने लगा, लिहाज़ा वह सम्मान उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की उस 'जादुई फूंक' को मिला था।
वर्ष 2001 के बाद अगले 'भारत रत्न' के लिए बनारस को 12 वर्ष इंतज़ार करना पड़ा, और वर्ष 2013 में प्रसिद्ध रसायनविद सीएनआर राव को सम्मानित किए जाते ही प्रतीक्षा की घड़ियां समाप्त हुईं। वैसे, सीएनआर राव बनारस में नहीं जन्मे थे, लेकिन बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी उनकी कर्मभूमि रही थी।
...और फिर अगले ही साल, यानि वर्ष 2014 में बनारस के जिस शख्स को 'भारत रत्न' से नवाज़ा गया, वह किसी उपाधि या 'रत्न' कहे जाने से बहुत बड़े हैं, क्योंकि वह तो स्वयं 'महामना' थे। खैर, देर से ही सही, लेकिन महामना मदन मोहन मालवीय को 'भारत रत्न' दिए जाने से सभी प्रसन्न हैं, हालांकि हमारा मानना है कि यह सम्मान शुरू होते ही 'महामना' को मिल जाना चाहिए था।
बहरहाल, महामना को 'भारत रत्न' दिए जाने के साथ ही बनारस देश का पहला ऐसा शहर बन गया, जिसकी सात-सात विभूतियां 'भारत रत्न' हैं। जानकारों का कहना है कि काशी की विविधताओं का फैलाव ही ऐसा है कि 'भारत रत्न' इस शहर में आए बिना नहीं रह सकता। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर गिरीश चंद्र त्रिपाठी कहते हैं, "चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या विज्ञान का, चाहे संगीत का हो या राजनीति का, समाज की पहचान सुनिश्चित करने वाले सभी आयाम प्राचीन काल से ही काशी में थे, बीच में भी रहे, और आज भी काशी में इनकी संख्या पर्याप्त है, जो इसकी संस्कृति का संरक्षण करने में सक्षम हैं..."
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