भारतीय सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
चीफ जस्टिस के मास्टर ऑफ रोस्टर के तहत केसों के आवंटन पर सवाल उठाने वाली पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ए के सीकरी और अशोक भूषण की बेंच शुक्रवार को फैसला सुनाएगी. इससे पहले AG के के वेणुगोपालन ने कोर्ट में कहा था सुप्रीम कोर्ट बेंच कह चुकी है कि चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर हैं. पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने मांग की है कि 5 वरिष्ठतम जज मिलकर मुकदमों का आवंटन करें. एटॉर्नी जनरल ने मांग को अव्यवहारिक बताया था. सुप्रीम कोर्ट ने AG से केस में सहयोग मांगा था कि जजों की नियुक्ति की तरह क्या संवेदनशील केसों के आवंटन के मामले में CJI का मतलब कॉलेजियम होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इसमें कोई विवाद नहीं कि CJI मास्टर ऑफ रोस्टर हैं. प्रथम दृष्टया हमें ये लगता है कि इन हाउस प्रक्रिया को दुरुस्त कर इसका हल हो सकता है, न्यायिक तरीके से नहीं. सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना है कि केसों का आवंटन कैसे हो, कौन करे. सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सैकड़ों केस आते हैं, ऐसे में कॉलेजियम के पांचों जज ये तय करेंगे तो न्यायिक कामकाज कैसे होगा. ये तरीका व्यवहारिक नहीं लगता. जजों का काम सिर्फ न्याय देना नहीं बल्कि लोकतंत्र और संविधान की सुरक्षा और कानून के शासन को बरकरार रखना है. सुप्रीम कोर्ट ने चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस पर कुछ भी सुनने या बोलने से इंकार किया, कहा इस पर कोई बात नहीं करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कौन सा केस संवेदनशील है ये कौन तय करेगा. किसी के लिए कोई संवेदनशील हो सकता है किसी के लिए कोई और.
वहीं याचिकाकर्ता की और से दुष्यंत दवे और कपिल सिब्बल ने कहा कि चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर हैं ये मानते हैं. आमतौर पर याचिकाएं सीधे रजिस्ट्री द्वारा जजों के पास चली जाती हैं. सिर्फ संवेदनशील मामलों को ही रजिस्ट्री चीफ जस्टिस के पास बेंच के लिए पूछती है. हमने याचिका में 14 केस बताएं हैं जिनमें अस्थाना का केस भी शामिल है. इसलिए ऐसे संवेदनशील मामलों में केसों के आवंटन के लिए कॉलेजियम को तय करना चाहिए. किसी एक शख्स को संवैधानिक तरीके से एकाधिकार नहीं दिया जा सकता. ये देश की सबसे बड़ी अदालत है जिसे लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करनी है. चार वरिष्ठ जज इस मुद्दे को लेकर जनता में चले गए. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में केसों का आवंटन चीफ जस्टिस अकेले नहीं बल्कि कॉलेजियम में शामिल सभी पांच जज करें. इससे पहले इसी तरह की याचिका को सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इसमें कोई विवाद नहीं कि CJI मास्टर ऑफ रोस्टर हैं. प्रथम दृष्टया हमें ये लगता है कि इन हाउस प्रक्रिया को दुरुस्त कर इसका हल हो सकता है, न्यायिक तरीके से नहीं. सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना है कि केसों का आवंटन कैसे हो, कौन करे. सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सैकड़ों केस आते हैं, ऐसे में कॉलेजियम के पांचों जज ये तय करेंगे तो न्यायिक कामकाज कैसे होगा. ये तरीका व्यवहारिक नहीं लगता. जजों का काम सिर्फ न्याय देना नहीं बल्कि लोकतंत्र और संविधान की सुरक्षा और कानून के शासन को बरकरार रखना है. सुप्रीम कोर्ट ने चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस पर कुछ भी सुनने या बोलने से इंकार किया, कहा इस पर कोई बात नहीं करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कौन सा केस संवेदनशील है ये कौन तय करेगा. किसी के लिए कोई संवेदनशील हो सकता है किसी के लिए कोई और.
वहीं याचिकाकर्ता की और से दुष्यंत दवे और कपिल सिब्बल ने कहा कि चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर हैं ये मानते हैं. आमतौर पर याचिकाएं सीधे रजिस्ट्री द्वारा जजों के पास चली जाती हैं. सिर्फ संवेदनशील मामलों को ही रजिस्ट्री चीफ जस्टिस के पास बेंच के लिए पूछती है. हमने याचिका में 14 केस बताएं हैं जिनमें अस्थाना का केस भी शामिल है. इसलिए ऐसे संवेदनशील मामलों में केसों के आवंटन के लिए कॉलेजियम को तय करना चाहिए. किसी एक शख्स को संवैधानिक तरीके से एकाधिकार नहीं दिया जा सकता. ये देश की सबसे बड़ी अदालत है जिसे लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करनी है. चार वरिष्ठ जज इस मुद्दे को लेकर जनता में चले गए. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में केसों का आवंटन चीफ जस्टिस अकेले नहीं बल्कि कॉलेजियम में शामिल सभी पांच जज करें. इससे पहले इसी तरह की याचिका को सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है.
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