सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
केरल के सबरीमला मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश का मामला संविधान पीठ के पास भेजा जाए या नहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट फैसला लेगा। मामले की सुनवाई सात नवंबर को होगी।
केरल सरकार और मंदिर ट्रस्ट ने जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच में कहा कि ये मामला संविधान पीठ को सौंपा जाना चाहिए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं पर ये बैन कैसे लगाया जा सकता है जबकि महिला और पुरुष के बीच ऐसा कोई भेदभाव वेद, उपनिषद या किसी शास्त्र में नहीं है।
मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मंदिर बोर्ड और सरकार से पूछा है कि सबरीमाला मे महिलाओं का प्रवेश कब बंद हुआ? इसके पीछे क्या इतिहास है? कोर्ट इस मामले में ये देखना चाहता है कि समानता के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के होते हुए यह रोक कहां तक उचित है। कोर्ट दोनों अधिकारों के बीच संतुलन बनाना चाहता है।
सुप्रीम कोर्ट ने जवाब के लिए 6 हफ्ते का वक्त दिया था और वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन और के रामामूर्ति को कोर्ट का सहायक नियुक्त किया था। हालांकि मंदिर बोर्ड ने कहा था कि ये प्रथा एक हजार साल से चल रही है। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले को क्यों उठा रहा है? सिर्फ सबरीमाला ही नहीं बल्कि पूरे सबरीमाला पर्वत पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।
केरल सरकार और मंदिर ट्रस्ट ने जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच में कहा कि ये मामला संविधान पीठ को सौंपा जाना चाहिए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं पर ये बैन कैसे लगाया जा सकता है जबकि महिला और पुरुष के बीच ऐसा कोई भेदभाव वेद, उपनिषद या किसी शास्त्र में नहीं है।
मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मंदिर बोर्ड और सरकार से पूछा है कि सबरीमाला मे महिलाओं का प्रवेश कब बंद हुआ? इसके पीछे क्या इतिहास है? कोर्ट इस मामले में ये देखना चाहता है कि समानता के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के होते हुए यह रोक कहां तक उचित है। कोर्ट दोनों अधिकारों के बीच संतुलन बनाना चाहता है।
सुप्रीम कोर्ट ने जवाब के लिए 6 हफ्ते का वक्त दिया था और वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन और के रामामूर्ति को कोर्ट का सहायक नियुक्त किया था। हालांकि मंदिर बोर्ड ने कहा था कि ये प्रथा एक हजार साल से चल रही है। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले को क्यों उठा रहा है? सिर्फ सबरीमाला ही नहीं बल्कि पूरे सबरीमाला पर्वत पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।
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