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This Article is From Sep 22, 2020

MP के विधानसभा अध्‍यक्ष अगले हफ्ते बताएं, कांग्रेस के बागी MLA को अयोग्‍य ठहराने पर फैसला कब लेंगे: SC

17 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के बागी 22 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की याचिका पर विचार न करने के मामले में मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष सहित अन्य को नोटिस जारी किया था.

MP के विधानसभा अध्‍यक्ष अगले हफ्ते बताएं, कांग्रेस के बागी MLA को अयोग्‍य ठहराने पर फैसला कब लेंगे: SC
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में 17 अगस्‍त को एमपी के विधानसभा अध्‍यक्ष को नोटिस जारी किया था
नई दिल्ली:

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में कांग्रेस के बागी 22 विधायकों (Rebel 22 Congress MLA) को अयोग्य घोषित करने के लिए याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है. याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने विधानसभा अध्यक्ष (Assembly Speaker) को अगले हफ्ते यह बताने को कहा है कि वह कांग्रेस के उन विधायकों के खिलाफ अयोग्य ठहराए जाने का फैसला कब करेंगे जो बीजेपी में शामिल हो गए थे. SC ने कहा कि जब तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष आदेश पारित करने के लिए सहमत हो गए तो एमपी विधानसभा अध्यक्ष भी सहमत क्यों नहींहै. शीर्ष अदालत ने कहा कि हम स्पीकर को बयान देने के लिए अगले हफ्ते केस रखेंगे.विधानसभा सचिव तीन सप्ताह का समय चाहते थे. इस पर CJI एसए बोबडे ने कहा कि तीन हफ्ते क्यों? TN विधानसभा अध्यक्ष ने सहमति व्यक्त की कि वे लंबित अयोग्यता पर एक आदेश पारित करेंगे फिर आपको क्या समस्या है?

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गौरतलब है कि 17 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के बागी 22 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की याचिका पर विचार न करने के मामले में मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष सहित अन्य को नोटिस जारी किया था. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना व जस्टिस वी रामासुब्रमनयम की बेंच ने 21 सितंबर तक जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था. बेंच जबलपुर से कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.विधायक सक्सेना की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तनखा ने कोर्ट को अवगत कराया था कि मार्च 2020 में कांग्रेस के 22 विधायकों को भाजपा की मिलीभगत से बेंगलुरु ले जाकर रखा गया.10 मार्च को इन विधायकों के त्यागपत्र भी विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष पेश किए गए थे. 13 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष कांग्रेस की ओर से इन विधायकों को अयोग्य करने के लिए याचिका दायर की गई. बाद में विधायकों के त्यागपत्र तो मंजूर कर लिए गए लेकिन इन्हें अयोग्य घोषित करने के लिए दायर याचिका पर विचार नहीं किया गया जबकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन माह का समय तय किया है.

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वरिष्ठ अधिवक्ता तनखा ने तर्क दिया कि संविधान के तहत जो विधायक इस तरह एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में चले जाते हैं और साथ में त्यागपत्र भी दे देते हैं, वे अपने इस आचरण के चलते उस कार्यकाल के दौरान मंत्री नहीं बन सकते जब तक दोबारा चुनाव जीत कर विधायक न बन जाएं. यदि विधानसभा अध्यक्ष इन्हें अयोग्य घोषित कर देते तो ये मंत्री नहीं बन पाते लेकिन इनमें से कुछ विधायकों को नई भाजपा सरकार में मंत्री बना दिया गया. इसे गैरकानूनी बताते हुए उक्त विधायकों के मंत्री पद वापस लेने का आग्रह किया गया है.

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