सुप्रीम कोर्ट ने कहा - असहमति लोकतंत्र का 'सेफ्टी वॉल्व है, अगर इसे प्रेशर कूकर की तरह दबाएंगे तो...

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि डिसेन्ट या असहमति होना लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है. अगर आप इसे प्रेशर कूकर की तरह दाबाएंगें तो ये फट जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा - असहमति लोकतंत्र का 'सेफ्टी वॉल्व है, अगर इसे प्रेशर कूकर की तरह दबाएंगे तो...

सुप्रीम कोर्ट में 6 सितंबर को मामले की अगली सुनवाई होगी.

खास बातें

  • भीमा-कोरेगांव हिंसा का मामला
  • घर में ही नज़रबंद रखें: SC
  • महाराष्ट्र, केन्द्र को SC का नोटिस
नई दिल्ली:

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार किए गए 5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओ को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. आज सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि डिसेन्ट या असहमति होना लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है. अगर आप इसे प्रेशर कूकर की तरह दाबाएंगें तो ये फट जाएगा. तमाम दलीले सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपियो को उनके घर में ही हाउस अरेस्ट रखा जाए. साथ ही महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करके इस मामले में 5 सितंबर तक जवाब मांगा है. इस मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी. सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद पुणे कोर्ट में दोबारा सुनवाई हुई और उसने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक आरोपियों को उनके घर पहुंचाने को कहा है.

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महाराष्ट्र पुलिस ने इन सभी को पिछले साल 31 दिसंबर को आयोजित एल्गार परिषद कार्यक्रम के बाद पुणे के पास कोरेगांव-भीमा गांव में भड़की हिंसा के मामले में दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में गिरफ्तार किया था. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने भीमा-कोरेगांव घटना के करीब 9 महीने बाद इन व्यक्तियों को गिरफ्तार करने पर महाराष्ट्र पुलिस से सवाल किए. 

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पीठ ने खचाखच भरे अदालतीकक्ष में कहा, 'असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है और अगर आप इन सेफ्टी वॉल्व की इजाजत नहीं देंगे तो यह फट जाएगा.' राज्य सरकार की दलीलों पर कड़ा संज्ञान लेते हुए पीठ ने कहा, 'यह (गिरफ्तारी) वृहद मुद्दा है. उनकी (याचिकाकर्ताओं की) समस्या असहमति को दबाना है.' पीठ ने सवाल किया, 'भीमा-कोरेगांव के नौ महीने बाद, आप गए और इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया.'

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पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की इस दलील पर गंभीर रूप से संज्ञान लिया कि उनकी गिरफ्तारी प्राथमिकी के अनुरूप हुई. शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र सरकार और राज्य पुलिस को नोटिस जारी करके याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की इस दलील पर विचार किया कि गिरफ्तार कार्यकर्ताओं को नजरबंद रखा जाए. सिंघवी ने कहा कि दो उच्च न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों के बाद दो गिरफ्तार व्यक्ति सुधा और गौतम फिलहाल नजरबंद हैं, जबकि तीन अन्य ट्रांजिट रिमांड पर हैं. उन्होंने कहा कि अंतरिम उपाय के तहत, पांचों को 'अपने अपने घर में नजरबंद' रखा जाए. पीठ ने उनका यह अनुरोध मान लिया.

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सिंघवी ने कहा कि इन पांच में से किसी भी व्यक्ति को भीमा-कोरेगांव हिंसा के संबंध में दर्ज प्राथमिकी में आरोपी नहीं बनाया गया है. उन्होंने कहा कि अगर नागरिकों को इस तरह से गिरफ्तार किया जाएगा तो यह 'लोकतंत्र का अंत' होगा. सिंघवी के अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन, इंदिरा जयसिंह, दुष्यंत दवे, प्रशांत भूषण और वृंदा ग्रोवर ने इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस की कार्रवाई का कड़ा विरोध किया. याचिकाकर्ताओं में प्रभात पटनायक और देविका जैन भी शामिल हैं. महाराष्ट्र सरकार के वकील ने इस याचिका की विचारणीयता पर सवाल उठाते हुए कहा कि मामले से सरोकार नहीं रखने वाले, उन कार्यकर्ताओं के लिए राहत नहीं मांग सकते जो पहले ही उच्च न्यायालयों में याचिका दायर कर चुके हैं.

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महाराष्ट्र पुलिस ने कल देशव्यापी कार्रवाई करके हैदराबाद से तेलुगू कवि वरवर राव को गिरफ्तार किया था, जबकि वेरनन गोंसाल्विज और अरुण फरेरा को मुंबई से गिरफ्तार किया गया था. इसी तरह पुलिस ने ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को हरियाणा के फरीदाबाद और सिविल लिबर्टी कार्यकर्ता गौतम नवलखा को नयी दिल्ली से गिरफ्तार किया था. 

(इनपुट: भाषा)


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