विज्ञापन
This Article is From Jul 30, 2014

सहारनपुर के दंगा पीड़ितों को पाकिस्तान याद आया

सहारनपुर के दंगा पीड़ितों को पाकिस्तान याद आया
रवीश रंजन शुक्ला सहारनपुर से लौटकर:

सहारनपुर की गंगा-जमुनी तहजीब को 26 जुलाई यानि शनिवार को बलवाइयों ने तार-तार कर दिया। दंगाइयों ने सुबह 7 बजे से जो दुकान जलाने और लूटने का सिलसिला शुरू किया वो दोपहर 12 बजे तक चलता रहा।

कुतुबशेर इलाके में महज 40 पुलिसवाले 3 हज़ार की हिंसक भीड़ से जूझते रहे, इस दौरान किसी ने कांस्टेबल की पीठ पर भी गोली मार दी। कुल तीन लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। 38 से ज्यादा लोग घायल हो गए और 100 से ज्यादा दुकानों में आग लगा दी गई।

शुरुआती जांच में पता चला है कि इस दंगे में तीन दर्जन गाड़ियां और 50 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है। बलवाइयों के हमले का सबसे पहला शिकार सहारनपुर का फायर स्टेशन हुआ। इसी के चलते शनिवार सुबह से दुकानों में लगी आग रविवार शाम तक सुलगती रही। जबकि आग बुझाने की गाड़ियां देहरादून से लेकर नोएडा तक से आई हुई थीं।

60 साल बाद जख्म फिर हरे हुए

सरकार ने आजादी के बाद पाकिस्तान से आए हजारों शरणार्थियों को सहारनपुर के नुमाइश कैंप में घर दिया। इसी इलाके का एक घर दंगों में मार दिए गए 56 साल के हरीश कोचर का भी है। परिवार में अब 12 साल की बेटी और पत्नी बची है। घर के बाहर उनके 70 साल के भाई मोहन कोचर बैठे है। मीडिया को देखते ही फफक कर रो पड़ते हैं..कहतें है हम तो पाकिस्तान से लुटे-पिटे आए थे..अच्छी जिंदगी की तलाश में.. यहां भी हमारे साथ देखो क्या सुलूक हुआ। क्या दुकाने जलवाने के लिए..गोली खाने के लिए हम यहां आए थे... यहीं से छह किलोमीटर दूर काजी स्ट्रीट की संकरी गलियों में 67 साल के उस्मान का घर है। इनके 18 साल के बेटे मो. आरिफ को भी गोली मार दी गई। दंगों की खबर सुनते ही अपनी दुकान देखने गया था। लौटते वक्त उसे गोली लगी। पिता उस्मान कहते हैं वो हार्ट के मरीज है अब किसके कंधों का सहारा लेकर इलाज कराने अस्पताल जाएंगे।

1380 ई में संत हरन शाह के नाम पर बसाए गए सहारनपुर में बीते 22 सालों में इतनी बड़ी सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई थी। इस दंगे ने लोगों की जान के साथ शहर के कारोबारी माहौल को भी खत्म कर दिया है। अकेले अंबाला रोड पर करीब 40 से 45 दुकानों को लूटने के साथ आग लगाकर खाक कर दिया गया।

कर्फ्यू में ढील के बाद जली ऑटो पार्ट्स की अपनी दुकान देखने आए श्याम बत्रा अब आग से बचे पार्ट्स को खोज रहे हैं। 62 साल की उनकी पत्नी के आंसू नहीं थम रहे हैं..कहती हैं कि अभी जल्दी ही 80 लाख रुपये का सामान दुकान में रखवाया था। सब खत्म हो गया।   

विवाद क्या है

कुतुबशेर इलाके में गुरुद्वारा के बगल में 2800 गज ज़मीन को सिंह सभा ने 2001 में खरीदा था। इसी पर गुरुद्वारा सिंहसभा के लोग एक बैक्वेट हॉल बनवा रहे थे। दरअसल, साठ साल पहले यह संपत्ति शेख मोहम्मद असकरी की थी, जो पीली और एक लाल कोठी के रूप में जानी जाती थी। इसी में असकरी परिवार 535 वर्गमीटर जमीन को अपनी मस्जिद के रूप में इस्तेमाल करते थे। चूंकि ये उनकी निजी इबादतगाह थी इसके चलते जब 1948 में उन्होंने अपनी संपत्ति का बैनामा श्रीमती मंशा देवी और राजवती को कर दिया, लेकिन 1951 में खलील अहमद नाम के शख्श ने उच्च न्यायालय में यह कहकर आपत्ति जताई कि मस्जिद का बैनामा नहीं हो सकता है, लेकिन 1964 में उच्च न्यायलय ने यह कहकर खलील अहमद की आपत्ति निरस्त की दी कि यहां कोई सार्वजनिक मस्जिद नहीं थी। धीरे-धीरे यह विवाद ठंडे बस्ते में चला गया और वक्त के साथ पीली और लाल कोठी जर्जर होकर गिर गई। बाद में इसी जमीन के टुकड़े को मंशा देवी के परिजनों से गुरुद्वारा कमेटी ने खरीद ली, लेकिन शहर काजी नदीम कहते हैं कि चूंकि यहां मस्जिद थी। इसी के चलते 535 वर्गमीटर ज़मीन को गुरुद्वारा सभा को छोड़ना चाहिए।

26 जुलाई रात को कैसे भड़की हिंसा

इसे 2001 में सिंह सभा ने खरीदा तब एक बार फिर से यह जमीन का टुकड़ा सुर्खियों में आ गया। जमीन के बैनामे पर फिर से मोहर्रम अली उर्फ पप्पू ने आपत्ति लगाई, लेकिन जिला न्यायालय ने 15 मई 2013 को फैसला सिंह सभा के पक्ष में सुनाया। तब से धीरे-धीरे इस जमीन पर निर्माण कराया जाता रहा है, लेकिन दिसंबर 2013 में मोहर्रम अली पप्पू की शिकायत पर सहारनपुर के सिटी मजिस्ट्रेट ने इस जमीन पर फिलहाल निर्माण न कराने के निर्देश दिए थे। इसी 26 जुलाई को दूसरे पक्ष के लोगों को खबर मिली की रात को इस जमीन पर निर्माण कराया जा रहा है।

यह खबर फैलते ही रात को कुतुबशेर थाने में दोनों पक्ष इकट्ठा हो गए। एक पक्ष बनवाने पर और दूसरा पक्ष गिराने पर अड़ा रहा। रात में पत्थरबाजी भी हुई, लेकिन पुलिस ने दोनों पक्ष को फौरीतौर पर शांत कराकर भेज दिया, लेकिन सुबह तक दूसरे पक्ष के हजारों लोग इकट्टा हो गए, लोकल इंटेलीजेंस यूनिट ने प्रशासन को खबर भी दी कि माहौल बिगड़ सकता है, लेकिन सुबह पांच बजे से लेकर साढ़े सात बजे तक प्रशासन पर्याप्त पुलिस फोर्स का इंतजाम ही नहीं कर पाया। नतीजा हजारों की भीड़ ने हिंसक रुख अख्तियार कर लिया।

जमीन पर निर्माण अवैध था

दरअसल, सहारनपुर में गुरु्द्वारा प्रबंधक कमेटी फिलहाल भंग है। कमेटी का चुनाव भी हाल में होना है। इसी के चलते कुछ लोग इस जमीन के टुकड़े पर जल्द से जल्द निर्माण कराकर श्रेय लेने की होड़ में है। ताकि इसके आधार पर गुरुवद्वारा सिंह सभा का चुनाव जीता जा सके। वरना सिटी मजिस्ट्रेट ने जब यहां निर्माण कराने की मनाही कर रखी थी तब रातोंरात निर्माण कराने की क्या जरूरत थी। इसकी तस्दीक सहारनपुर की डीएम संध्या तिवारी भी करती है। उनका कहना है कि इस निर्माण का नक्शा सहारनपुर विकास प्राधिकरण से नहीं पास है।

कौन है मोहर्रम अली उर्फ पप्पू

सहारनपुर के दंगों में मोहर्र्म अली पप्पू का नाम सुर्खियों में है। पुलिस ने कुतुबशेर थाने में इसके खिलाफ बवाल भड़काने से लेकर शांति भंग करने तक का मामला दर्ज किया है। सहारनपुर के एसएसपी राजेश कुमार पांडेय का कहना है कि शहर में शांति बहाल होने के बाद जल्द से जल्द इसे गिरफ्तार किया जाएगा। सहारनपुर के सांसद का आरोप है कि मोहर्ररम अली पप्पू कांग्रेसी नेता इमरान मसूद का सहयोगी है। मोहर्रम अली पप्पू पूर्व सभासद रह चुका है और पेशे से प्रापर्टी डीलर है। इनके खिलाफ पहले भी सहारनपुर के जनकपुरी, मंडी और कुतुबशेर थानों में बवाल करने से लेकर फर्जीवाड़े तक के दर्जनभर मामले दर्ज है। गुरुद्वारा सिंहसभा का भी आरोप है कि 2001 में मोहर्रम अली पप्पू ने अपने को पर्दे के पीछे रखकर अब्दुल वहाब नाम के एक मजदूर शख्श से वाद दायर करवाया। इसी के चलते यह विवाद इतना बढ़ा, लेकिन मोहर्रम अली कहते हैं कि पुलिस राजनीतिक दबाव में काम कर रही है..मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मेरे खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।

पिछले साल उत्तर प्रदेश में हुए सांप्रदायिक हिंसा के 247 मामले हुए जिनमें 77 लोगों की मौत हो गई। सहारनपुर में दंगों के बाद प्रशासन अब कहता है कि इस ज़मीन के बारे में दोनों सांप्रदाय के लोगों को बुलाया जाएगा। दोनों के दस्तावेज मंगाए जाएंगे और एक शांतिपूर्ण रास्ता कानून के मुताबिक निकाला जाएगा। लेकिन काश यही कदम महीना भर पहले उठा लिया जाता तो इस भयानक हादसे को रोका जा सकता था। कुछ दिन बाद पैरामिलिट्री फोर्स वापस चली जाएगी..मीडिया के कैमरे रोती आंखों का पीछा करना बंद कर देंगे। तब वह भरोसा सहारनपुरवासियों को एक-दूसरे में जरूर खोजना पड़ेगा..जिसकी बुनियाद पर शहर धड़कता है, कारोबार चलता है।

राहत इंदौरी का शेर है..

जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते
सजा ना देकर अदालतें बिगाड़ देती हैं
मिलाना चाहा है इंसा को जब भी इंसा से
तो सारे काम सियासत बिगाड़ देती है

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
सहारनपुर हिंसा, रवीश रंजन शुक्ला, सहारनपुर झड़प, कर्फ्यू में ढील, सहारनपुर तनाव, Saharanpur Violence, Saharanpur Clashes, Saharanpur Tension
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com