नई दिल्ली:
नए सहयोगियों को जोड़ने के लिए बीजेपी को धर्मनिरपेक्षता के लिए अपनी वचनबद्धता को फिर से पेश करने के लाल कृष्ण आडवाणी के सुझाव पर हंगामा हो गया है। आरएसएस के वरिष्ठ नेता एमजी वैद्य का कहना है कि उन्हें समझ में नहीं आता कि आडवाणी ऐसा क्यों कह रहे हैं। जबकि कांग्रेस को लगता है कि आडवाणी ने नरेंद्र मोदी को आगे बढ़ने से रोकने के लिए ही यह बयान दिया है ताकि नीतीश जैसे सहयोगी मोदी के बजाय उनके नाम पर तैयार हो जाएं।
आडवाणी का कहना है कि एनडीए का कुनबा बढ़ाने के लिए ज़रूरी है कि बीजेपी धर्मनिरपेक्षता को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को फिर से लोगों के सामने रखे।
इससे पहले, नीतीश ने कहा था कि एनडीए का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार सेक्यूलर छवि का होना चाहिए। बहस इसलिए भी बड़ी हो जाती है क्योंकि राम मंदिर आंदोलन के उफान के वक्त आडवाणी ने छद्म धर्मनिरपेक्षता का नारा उछाला था। हालांकि पाकिस्तान यात्रा में आडवाणी ने जिन्ना को सेक्युलर बताकर छवि बदलने की कोशिश की जिससे संघ परिवार में उबाल आ गया था और अब एक बार फिर आरएसएस से जुड़े लोगों के तेवर तीखे हो गए हैं।
वैसे, बीजेपी के बड़े नेता मानते हैं कि आडवाणी ने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे मोदी के रास्ते में रुकावट आए क्योंकि नरेंद्र मोदी भी पिछले एक साल से अपनी कट्टर छवि को बदलने की वैसी ही कवायद में जुटे हैं जैसी कोशिश आडवाणी ने की थी।
इसकी शुरुआत मोदी ने सद्भावना मिशन से की और पिछली बार की तरह इस बार उनके चुनावी भाषण मुसलमानों के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या अल्पसंख्यकों के नाम पर राजनीति करने वाले ममता बनर्जी, नवीन पटनायक और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता मोदी का साथ दे सकते हैं। शायद इसीलिए सवाल उठा है कि क्या आडवाणी ने प्रधानमंत्री बनने की इच्छा पूरी करने के लिए यह दांव चला है।
आडवाणी का कहना है कि एनडीए का कुनबा बढ़ाने के लिए ज़रूरी है कि बीजेपी धर्मनिरपेक्षता को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को फिर से लोगों के सामने रखे।
इससे पहले, नीतीश ने कहा था कि एनडीए का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार सेक्यूलर छवि का होना चाहिए। बहस इसलिए भी बड़ी हो जाती है क्योंकि राम मंदिर आंदोलन के उफान के वक्त आडवाणी ने छद्म धर्मनिरपेक्षता का नारा उछाला था। हालांकि पाकिस्तान यात्रा में आडवाणी ने जिन्ना को सेक्युलर बताकर छवि बदलने की कोशिश की जिससे संघ परिवार में उबाल आ गया था और अब एक बार फिर आरएसएस से जुड़े लोगों के तेवर तीखे हो गए हैं।
वैसे, बीजेपी के बड़े नेता मानते हैं कि आडवाणी ने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे मोदी के रास्ते में रुकावट आए क्योंकि नरेंद्र मोदी भी पिछले एक साल से अपनी कट्टर छवि को बदलने की वैसी ही कवायद में जुटे हैं जैसी कोशिश आडवाणी ने की थी।
इसकी शुरुआत मोदी ने सद्भावना मिशन से की और पिछली बार की तरह इस बार उनके चुनावी भाषण मुसलमानों के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या अल्पसंख्यकों के नाम पर राजनीति करने वाले ममता बनर्जी, नवीन पटनायक और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता मोदी का साथ दे सकते हैं। शायद इसीलिए सवाल उठा है कि क्या आडवाणी ने प्रधानमंत्री बनने की इच्छा पूरी करने के लिए यह दांव चला है।
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