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This Article is From Jan 01, 2021

महात्मा गांधी को ' सबसे बड़ा हिन्दू देशभक्त' बताने वाली पुस्तक का संघ प्रमुख भागवत ने किया विमोचन

इस किताब (The Making of a True Patriot: Background of Gandhiji’s Hind Swaraj) में लिखा  है कि ‘ महात्मा गांधी हमारे समय के सबसे बड़े हिन्दू देशभक्त थे’, एक हजार पन्नों की यह किताब मुख्यतया गांधी जी के 1891 से 1909 के बीच लिखे लेखों पर आधारित है.

महात्मा गांधी को ' सबसे बड़ा हिन्दू देशभक्त' बताने वाली पुस्तक का संघ प्रमुख भागवत ने किया विमोचन
संघ प्रमुख ने नई दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में पुस्तक का विमोचन किया (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) ने शुक्रवार को नई दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में एक पुस्तक का विमोचन किया. इस किताब में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को 'हिन्दू देशभक्त' बताया गया है. भागवत के अनुसार, महात्मा गांधी ने कहा था कि मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है. एक बात साफ है कि हिंदू है तो उसके मूल में देशभक्त होना ही पड़ेगा. देशद्रोही कोई नहीं है यहां पर.

भागवत ने कहा कि यह एक प्रामाणिक शोधग्रंथ है. परिश्रमपूर्वक खोजबीन करके लिखी गयी है. भागवत ने कहा कि गांधी जीने कहा था, 'मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है. एक बात साफ है कि हिन्दू है तो उसके मूल में देशभक्त होना ही पड़ेगा. स्वराज्य तब तक आप नहीं समझ सकते जब तक आप स्वधर्म को नहीं समझते. गांधी जी कहते है कि मेरा धर्म पंथ धर्म नहीं बल्कि मेरा धर्म तो सर्व धर्म का धर्म है.' संघ प्रमुख ने कहा, मतभेदों का अर्थ अलगाववाद नहीं होता है. एकता में अनेकता, अनेकता में एकता यहीं भारत की मूल सोच है.

इस किताब (The Making of a True Patriot: Background of Gandhiji's Hind Swaraj) में लिखा  है कि ‘ महात्मा गांधी हमारे समय के सबसे बड़े हिन्दू देशभक्त थे', एक हजार पन्नों की यह किताब मुख्यतया गांधी जी के 1891 से 1909 के बीच लिखे लेखों पर आधारित है. इसमें गुजराती में लिखी उनकी हस्तलिपि भी शामिल है. यह किताब सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज के संस्थापक-निदेशक जेके बजाय और संस्थापक-चेयरमैन एमडी श्रीनिवास ने लिखी है.

यह पुस्तक गांधी जी के ‘हिन्दू देशभक्त' के तौर पर उभरने की कहानी बताती है. इसमें शुरुआती दिनों में उनकी द. अफ्रीका और इंग्लैंड की उनकी यात्रा औऱ 1915 में उनकी वापसी से शुरू होती है. इसमें ईसाई मिशनरियों के प्रति उनकी नापसंदगी और हिन्दू-मुस्लिम एकता कायम करने में उनकी कठिनाई का उल्लेख है. साथ ही सत्याग्रह को धर्म की तरह इस्तेमाल करने, पश्चिमी सभ्यता से उनका मन उचाट होना और शिक्षा को पाश्चात्य शिक्षा से जोड़ने को बड़ी भूल बताने जैसी बातों का उल्लेख है.

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