नई दिल्ली:
चीन की ओर से जारी किए जाने वाले नए ई-पासपोर्ट में अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीन के हिस्से के रूप में दिखाए जाने से नाराज भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए ऐसे वीजा जारी किए हैं, जिनमें भारत का मानचित्र है और जिसमें इन क्षेत्रों को अपने क्षेत्र के रूप में दिखाया गया है।
यह जवाबी कार्रवाई ऐसे समय सामने आई है, जब चीन सरकार ने ऐसे ई-पासपोर्ट जारी करना शुरू कर दिया है, जिसके पृष्ठों पर वॉटर मार्क में चीन के ऐसे मानचित्र छपे थे, जिनमें अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीन के हिस्से के रूप में दिखाया गया है।
भारत ने कुछ सप्ताह पहले इस पर गौर करते हुए बीजिंग स्थित अपने दूतावास के जरिये चीन के नागरिकों को भारत के मानचित्र वाले वीजा जारी करना शुरू कर दिया, जिसमें इन क्षेत्रों को भारतीय क्षेत्र के रूप में दिखाया गया है।
इससे पहले चीन द्वारा जम्मू-कश्मीर को 'विवादित क्षेत्र' करार देते हुए उसके निवासियों को नत्थी किया हुआ वीजा जारी करने और अरुणाचल प्रदेश के निवासियों को वीजा देने से इनकार किए जाने से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक गतिरोध शुरू हो गया था। इससे नाराज भारत ने चीन के समक्ष कड़ा विरोध जताया, जिसके बाद उसने फिर से जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को सामान्य वीजा जारी करना शुरू कर दिया, लेकिन आधिकारिक रूप से यह स्वीकार नहीं किया कि वह ऐसा कर रहा था।
चीन अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है, जो कोई नया नहीं है। भारत की चीन के साथ 1030 किलोमीटर लंबी सीमा है। वर्ष 1962 में चीन ने अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के लिए भारत के साथ एक युद्ध भी लड़ा था, लेकिन वर्ष 1993 और वर्ष 1996 में दोनों देशों ने शांति बनाए रखने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करने संबंधी समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
गौरतलब है कि यह घटनाक्रम इसके बावजूद हुआ है कि चीन के राजनयिकों के एक उच्चस्तरीय दल ने पहली बार वाणिज्य दूतावास संबंधी मुद्दों को लेकर सिक्किम की यात्रा की थी। चीन के इस कदम को राज्य को भारत के हिस्से के रूप में स्वीकार करने की पुष्टि के रूप में देखा गया था।
यह घटनाक्रम इसके बावजूद सामने आया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कंबोडिया में आसियान सम्मेलन के इतर चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ से मुलाकात की थी। इसके साथ ही दोनों नेताओं ने सीमा विवाद मुद्दे पर आगे बढ़ने के तरीकों पर चर्चा की थी। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन के जल्द बीजिंग यात्रा पर जाने की संभावना है, ताकि वह अपने चीनी समकक्ष दाई बिंगगुओ के साथ सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधि स्तर की अगली दौर की बातचीत कर सकें।
यह जवाबी कार्रवाई ऐसे समय सामने आई है, जब चीन सरकार ने ऐसे ई-पासपोर्ट जारी करना शुरू कर दिया है, जिसके पृष्ठों पर वॉटर मार्क में चीन के ऐसे मानचित्र छपे थे, जिनमें अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीन के हिस्से के रूप में दिखाया गया है।
भारत ने कुछ सप्ताह पहले इस पर गौर करते हुए बीजिंग स्थित अपने दूतावास के जरिये चीन के नागरिकों को भारत के मानचित्र वाले वीजा जारी करना शुरू कर दिया, जिसमें इन क्षेत्रों को भारतीय क्षेत्र के रूप में दिखाया गया है।
इससे पहले चीन द्वारा जम्मू-कश्मीर को 'विवादित क्षेत्र' करार देते हुए उसके निवासियों को नत्थी किया हुआ वीजा जारी करने और अरुणाचल प्रदेश के निवासियों को वीजा देने से इनकार किए जाने से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक गतिरोध शुरू हो गया था। इससे नाराज भारत ने चीन के समक्ष कड़ा विरोध जताया, जिसके बाद उसने फिर से जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को सामान्य वीजा जारी करना शुरू कर दिया, लेकिन आधिकारिक रूप से यह स्वीकार नहीं किया कि वह ऐसा कर रहा था।
चीन अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है, जो कोई नया नहीं है। भारत की चीन के साथ 1030 किलोमीटर लंबी सीमा है। वर्ष 1962 में चीन ने अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के लिए भारत के साथ एक युद्ध भी लड़ा था, लेकिन वर्ष 1993 और वर्ष 1996 में दोनों देशों ने शांति बनाए रखने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करने संबंधी समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
गौरतलब है कि यह घटनाक्रम इसके बावजूद हुआ है कि चीन के राजनयिकों के एक उच्चस्तरीय दल ने पहली बार वाणिज्य दूतावास संबंधी मुद्दों को लेकर सिक्किम की यात्रा की थी। चीन के इस कदम को राज्य को भारत के हिस्से के रूप में स्वीकार करने की पुष्टि के रूप में देखा गया था।
यह घटनाक्रम इसके बावजूद सामने आया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कंबोडिया में आसियान सम्मेलन के इतर चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ से मुलाकात की थी। इसके साथ ही दोनों नेताओं ने सीमा विवाद मुद्दे पर आगे बढ़ने के तरीकों पर चर्चा की थी। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन के जल्द बीजिंग यात्रा पर जाने की संभावना है, ताकि वह अपने चीनी समकक्ष दाई बिंगगुओ के साथ सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधि स्तर की अगली दौर की बातचीत कर सकें।
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