
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गंगा और यमुना को एक जीवित मानव की तरह का कानूनी दर्जा दिया.
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उत्तराखंड के मुख्य सचिव, महाधिवक्ता होंगे गंगा-यमुना के अभिभावक
नमामि गंगे मिशन के निदेशक होंगे गंगा-यमुना के अभिभावक
आठ सप्ताह के अंदर गंगा प्रबंधन बोर्ड गठित करने के भी निर्देश दिये
हरिद्वार निवासी मोहम्मद सलीम की ओर से दायर की गयी एक जनहित याचिका पर दिये इस आदेश में अदालत ने देहरादून के जिलाधिकारी को ढकरानी में गंगा की शक्ति नहर से अगले 72 घंटों में अतिक्रमण हटाने के भी आदेश दिये हैं और कहा है कि इसका अनुपालन न होने की स्थिति में उन्हें निलंबित कर दिया जायेगा.
याचिका में दलील दी गयी थी कि इन पवित्र नदियों से उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश दोनों राज्य जुड़े हुए हैं लेकिन फिर भी इनकी सहायक नदियों की संपत्ति का प्रभावी वितरण नहीं हो पाया है.
अदालत ने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच उत्तराखंड के अलग प्रदेश बनने के बाद से लंबित विभिन्न संपत्तियों के बंटवारे को भी सुलझाने के आदेश दिये. उच्च न्यायालय ने सरकार को अदालत की ओर से पिछले साल दिसंबर में दिये गये आदेश के अनुसार अगले आठ सप्ताह के अंदर गंगा प्रबंधन बोर्ड गठित करने के भी निर्देश दिये.
गंगा और यमुना को एक जीवित मानव की तरह का कानूनी दर्जा देते हुए अदालत ने नमामि गंगे मिशन के निदेशक, उत्तराखंड के मुख्य सचिव और उत्तराखंड के महाधिवक्ता को नदियों के कानूनी अभिभावक होने के निर्देश दिये हैं और उन्हे गंगा, यमुना और उनकी सहायक नदियों की सुरक्षा करने और उनके संरक्षण के लिये एक मानवीय चेहरे की तरह कार्य करने को कहा है.
ये अधिकारी गंगा और यमुना के जीवित मानव का दर्जे को बरकरार रखने तथा इन नदियों के स्वास्थ्य और कुशलता को बढ़ावा देने के लिये बाध्य होंगे.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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