
फाइल फोटो
अहमदाबाद:
नोटबंदी के 20 दिन बाद भी लोग अब भी बैंकों के बाहर लाइनें लगाए खड़े दिखते हैं. पुराने नोट की बदली बंद हो गई है फिर भी लोग अपने खातों में जमा पैसे निकालने को तरस रहे हैं.
सावित्री का पति रंग पोतने का काम करता है, उसके लिए दिन का काम बंद करना मुश्किल है इसलिए सावित्री अपने दो बच्चों को घर पर छोड़कर सुबह 6 बजे बैंक की कतार में खड़ी हो जाती है. मंगलवार को दूसरे दिन भी उसे पैसा नहीं मिला है. कहती हैं कि बच्चों को खिलाने तक के पैसे नहीं हैं.
आरबीआई ने सोमवार शाम को साप्ताहिक 24,000 से ज्यादा भी उठाने की घोषणा कर दी थी. लेकिन लोग कहते हैं कि नए नोट क्यों जमा कराएं, आखिर लोगों को बैंक पहले 24,000 तो दिलायें फिर सीमा बढाएं. सिर्फ बड़े स्तर पर बातें ही हो रही हैं, धरातल पर पहले दिन जैसे ही हालात हैं. ज्यादातर बैंकों में 4000 से 10,000 तक की सीमा में ही पैसे मिल रहे हैं.
निशानदेही के भी अजीब तरीके निकाले जा रहे हैं. अहमदाबाद के औद्योगिक इलाके नरोडा में लाइन में खड़े सभी लोगों के हथेली पर एक नंबर लिखा है. जो पेन से बैंक अफसरों ने सुबह उनकी लाईन में नंबर के मुताबिक लिख दिया था. अगर सुबह मुंह अंधेरे आ गए तो नंबर मिल जायेगा, पैसा मिले या नहीं. पसीने से नंबर मिट गया तो फिर गए. हर थोड़ी थोडी देर में कतार में खड़े लोगों का गुस्सा फूट पड़ता है.
लोग कहते हैं कि नौकरी में छुट्टियां रखकर लाइन में लगकर पैसा लेने आते हैं फिर भी नहीं मिल रहे हैं. आखिर छुट्टी भी कितने दिन रखी जा सकती है, तनख्वाह तो कट ही जाती है. पूरी व्यवस्था के अमल में नाकामी साफ झलकती है.
सावित्री का पति रंग पोतने का काम करता है, उसके लिए दिन का काम बंद करना मुश्किल है इसलिए सावित्री अपने दो बच्चों को घर पर छोड़कर सुबह 6 बजे बैंक की कतार में खड़ी हो जाती है. मंगलवार को दूसरे दिन भी उसे पैसा नहीं मिला है. कहती हैं कि बच्चों को खिलाने तक के पैसे नहीं हैं.
आरबीआई ने सोमवार शाम को साप्ताहिक 24,000 से ज्यादा भी उठाने की घोषणा कर दी थी. लेकिन लोग कहते हैं कि नए नोट क्यों जमा कराएं, आखिर लोगों को बैंक पहले 24,000 तो दिलायें फिर सीमा बढाएं. सिर्फ बड़े स्तर पर बातें ही हो रही हैं, धरातल पर पहले दिन जैसे ही हालात हैं. ज्यादातर बैंकों में 4000 से 10,000 तक की सीमा में ही पैसे मिल रहे हैं.
निशानदेही के भी अजीब तरीके निकाले जा रहे हैं. अहमदाबाद के औद्योगिक इलाके नरोडा में लाइन में खड़े सभी लोगों के हथेली पर एक नंबर लिखा है. जो पेन से बैंक अफसरों ने सुबह उनकी लाईन में नंबर के मुताबिक लिख दिया था. अगर सुबह मुंह अंधेरे आ गए तो नंबर मिल जायेगा, पैसा मिले या नहीं. पसीने से नंबर मिट गया तो फिर गए. हर थोड़ी थोडी देर में कतार में खड़े लोगों का गुस्सा फूट पड़ता है.
लोग कहते हैं कि नौकरी में छुट्टियां रखकर लाइन में लगकर पैसा लेने आते हैं फिर भी नहीं मिल रहे हैं. आखिर छुट्टी भी कितने दिन रखी जा सकती है, तनख्वाह तो कट ही जाती है. पूरी व्यवस्था के अमल में नाकामी साफ झलकती है.
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