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This Article is From Jan 22, 2022

'28 फरवरी तक 12% ब्याज समेत लौटाएं पूरी रकम', सुपरटेक ट्विन टॉवर केस में सुप्रीम कोर्ट का आदेश

मामले के एमिकस क्यूरी गौरव अग्रवाल ने जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ को बताया था कि सुपरेटक खरीदारों को रिफंड करने में TDS काट रहा है. साथ ही उन लोगों को रिफंड नहीं मिल रहा है जो सुप्रीम कोर्ट नहीं आए हैं.

31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने ट्विन टॉवर को तीन महीने में गिराने के आदेश दिए थे. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सुपरटेक एमरेल्ड कोर्ट ट्विन टॉवर मामले (Supertech Emerald Court Case) में 28 फरवरी तक सभी फ्लैट खरीदारों को पहले के फैसले के मुताबिक 12 फीसदी ब्याज समेत फुल रिफंड करने को कहा है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि रिफंड में कोई टैक्स नहीं काटा जाएगा. अदालत ने ये भी कहा कि उन खरीदारों को भी रिफंड दिया जाए, जो अवमानना की याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट नहीं आए हैं.

दरअसल, मामले के एमिकस क्यूरी गौरव अग्रवाल ने जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ को बताया था कि सुपरेटक खरीदारों को रिफंड करने में TDS काट रहा है. साथ ही उन लोगों को रिफंड नहीं मिल रहा है जो सुप्रीम कोर्ट नहीं आए हैं. इस पर पीठ ने कहा कि जो लोग अदालत नहीं आए हैं, उन्हें याचिका दाखिल करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. 

पिछली सुनवाई में टॉवरों को गिराने के लिए नोएडा अथॉरिटी द्वारा प्रस्तावित कंपनी  को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने सुपरटेक को एक सप्ताह के भीतर डिमोलिशन एजेंसी- 'एडिफिस' के साथ कॉन्ट्रेक्ट साइन करने को कहा था. साथ ही  सुपरटेक से उन घर खरीदारों के लिए रिफंड प्रक्रिया शुरू करने को कहा था जिनके फ्लैटों को तोड़ा जाएगा. 

 पिछली सुनवाई में SC ने सुपरटेक को 17 जनवरी तक घर खरीदारों को भुगतान करने का निर्देश दिया था. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सुपरटेक को चेतावनी दी थी कि अगर घर खरीदारों को रुपये नहीं लौटाए तो जेल भेज देंगे.

31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट  ने बड़ा फैसला सुनाते हुए नोएडा स्थित सुपरटेक एमेराल्ड के 40 मंजिला ट्विन टावर को तीन महीने में गिराने के आदेश दिए थे. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने यह फैसला दिया था. जस्टिस चंद्रचूड ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि ये मामला नोएडा अथॉरिटी और डेवलपर के बीच मिलीभगत का एक उदाहरण है. इस मामले में सीधे-सीधे बिल्डिंग प्लान का उल्लंघन किया गया है. नोएडा अथॉरिटी ने लोगों से प्लान शेयर भी नहीं किया, ऐसे में इलाहाबाद हाईकोर्ट का टॉवरों को गिराने का फैसला बिल्कुल सही था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि दोनों टॉवरों को गिराने की कीमत सुपरटेक से वसूली जाए. साथ ही दूसरी इमारतों की सुरक्षा को ध्यान रखते हुए टावर गिराए जाएं . 

दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2014 में हाउसिंग सोसायटी में नियमों के उल्लंघन पर दोनों टावर गिराने के आदेश दिए थे. इसके साथ ही प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई के निर्देश जारी किए थे.

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