प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
सही मायने में अब देश मिसाइलमैन को सही श्रद्धांजलि देने जा रहा है। देश के हाइपरसोनिक मिसाइल का नाम अब कलाम के नाम पर रखा जा रहा है। इस मिसाइल की स्पीड आवाज से पांच गुना तेज होगी यानी कि करीब 6,125 किलोमीटर प्रतिघंटा। इसको इंटरसेप्ट कर पाना भी बहुत मुश्किल है।
ऐसी मिसाइल वाली तकनीक केवल रूस, अमेरिका और चीन के पास है। ये मिसाइल भारत और रूस मिलकर तैयार कर रहे हैं जो जमीन के अंदर बने बंकर और हथियारों के ढेर को तबाह कर सकने में भी सक्षम है। ब्रहम्रोस 2(के), यहां के का मतलब कलाम से है जिन्होंने भारत के मिसाइल प्रोगाम को एक नई दिशा दी।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम का यह सपना था कि भारत खुद से एक हाइपरसोनिक मिसाइल बनाये। ये सुपरसोनिक मिसाइल चार से पांच साल बाद बनकर तैयार होगी। ब्रहोम्स के सीईओ सुधीर मिश्र कहते हैं कि ये हाइपर सोनिक मिसाइल एपीजे अब्दुल कलाम को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
फिलहाल जो ब्रहोम्स मिसाइल है उसकी स्पीड 290 किलोमीटर प्रतिघंटा है। ये सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। 1998 में रूस और भारत के बीच हुए इस मिसाइल प्रोग्राम के समझौते पर कलाम के हस्ताक्षर हैं जो उस वक्त डीआरडीओ के प्रमुख थे। इसी साल 13 जून को कलाम ब्रह्मोस के हेडक्वाटर गये थे और हाइपरसोनिक क्षमता के बारे में काफी लंबी बातचीत की थी। ब्रह्मोस के दिल्ली कैंट हेडक्वाटर में स्थित म्यूजियम कलाम के बचपन से लेकर राष्ट्रपति बनने तक के पूरे सफर का गवाह है।
ऐसी मिसाइल वाली तकनीक केवल रूस, अमेरिका और चीन के पास है। ये मिसाइल भारत और रूस मिलकर तैयार कर रहे हैं जो जमीन के अंदर बने बंकर और हथियारों के ढेर को तबाह कर सकने में भी सक्षम है। ब्रहम्रोस 2(के), यहां के का मतलब कलाम से है जिन्होंने भारत के मिसाइल प्रोगाम को एक नई दिशा दी।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम का यह सपना था कि भारत खुद से एक हाइपरसोनिक मिसाइल बनाये। ये सुपरसोनिक मिसाइल चार से पांच साल बाद बनकर तैयार होगी। ब्रहोम्स के सीईओ सुधीर मिश्र कहते हैं कि ये हाइपर सोनिक मिसाइल एपीजे अब्दुल कलाम को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
फिलहाल जो ब्रहोम्स मिसाइल है उसकी स्पीड 290 किलोमीटर प्रतिघंटा है। ये सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। 1998 में रूस और भारत के बीच हुए इस मिसाइल प्रोग्राम के समझौते पर कलाम के हस्ताक्षर हैं जो उस वक्त डीआरडीओ के प्रमुख थे। इसी साल 13 जून को कलाम ब्रह्मोस के हेडक्वाटर गये थे और हाइपरसोनिक क्षमता के बारे में काफी लंबी बातचीत की थी। ब्रह्मोस के दिल्ली कैंट हेडक्वाटर में स्थित म्यूजियम कलाम के बचपन से लेकर राष्ट्रपति बनने तक के पूरे सफर का गवाह है।
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