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This Article is From Aug 03, 2013

रचनात्मक मानसून सत्र के लिए प्रधानमंत्री ने मांगा समर्थन

रचनात्मक मानसून सत्र के लिए प्रधानमंत्री ने मांगा समर्थन
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मानसून सत्र 'रचनात्मक और फलदायी' होने की उम्मीद जताते हुए पांच अगस्त से शुरू हो रहे सत्र के लिए सभी पार्टियों से इसके लिए समर्थन मांगा है।

इस बीच, विपक्ष के इस उल्लेख का कि 30 अगस्त तक चलने वाले सत्र के व्यवहार में 12 कार्यदिवस होंगे, जबकि 44 सूचिबद्ध विधेयकों को देखते हुए 16 कार्यदिवस रहने की उम्मीद थी, पर संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो सत्र का विस्तार किया जा सकता है।

लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक के बाद मनमोहन सिंह ने संवाददाताओं से कहा, "हमें रचनात्मक और फलदायी सत्र की उम्मीद है। मुझे पूरी उम्मीद है कि सदन के सभी घटक इसे फलदायी और रचनात्मक सत्र बनाने में सहयोग करेंगे।" उन्होंने कहा, "पिछले दो-तीन सत्रों में काफी अधिक समय बर्बाद हुआ और संसद के सामने काफी अधिक विधायी कार्य बाकी है।"

प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार उन सभी मुद्दों पर चर्चा करने को तैयार है, जिन्हें विपक्ष चाहता है। इसके साथ ही उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से लंबित विधेयकों को पारित करने में योगदान की अपील की। उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा विधेयक सबसे आवश्यक विधेयक है और इसे पारित होना चाहिए। उन्होंने कहा, "संसद के सामने जो पांच या छह अध्यादेश हैं, उनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण खाद्य सुरक्षा अध्यादेश है। मैं आशा करता हूं कि संसद इसे फलदायी, और जायज समझेगा, और पारित करेगा, ताकि यह अध्यादेश एक सक्रिय संसद में एक विधेयक में बदल जाए।"

संसद के मानसून सत्र में 44 विधेयक सूचीबद्ध हैं। और केवल 16 कार्य दिवस हैं। सरकार के लंबित विधेयकों की संख्या 100 को पार कर गई है।

उधर, कमलनाथ ने जरूरी होने पर सत्र की अवधि विस्तार का संकेत देते हुए इस संभावना को खारिज कर दिया कि यह अंतिम सत्र हो सकता है और आम चुनाव समय से पूर्व कराए जा सकते हैं। उन्होंने कहा, "अभी भी तीन सत्र शेष हैं। मानसून सत्र, शीतकालीन सत्र और लेखा अनुदान के लिए बजट सत्र होने हैं।" वे समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद शैलेंद्र कुमार द्वारा व्यक्त की गई आशंका के जवाब में यह बयान दिया।

शैलेंद्र कुमार ने खाद्य सुरक्षा अध्यादेश और आंध्र प्रदेश से तेलंगाना को पृथक करने के फैसले की ओर इशारा करते हुए कहा, "जिस तरह के विधेयक सरकार लाने जा रही है उससे यह सत्र चुनावी सत्र के जैसा दिख रहा है। ऐसा जान पड़ता है कि सरकार इन उपायों से लाभ मिलने की उम्मीद पाले हुई है।"

सपा सांसद ने यह भी संकेत दिया कि उनकी पार्टी का खाद्य सुरक्षा अध्यादेश को समर्थन शायद ही हासिल हो पाए। उन्होंने कहा, "हमने किसानों के अधिकार का सवाल उठाया है और यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके हितों की उपेक्षा नहीं हो और राज्यों के अधिकार का उल्लंघन नहीं होने पाए। हमारे नेतृत्व ने साफ किया है कि चर्चा के बगैर विधेयक पारित नहीं होना चाहिए।"

इसके जवाब में कमलनाथ ने दावा किया कि खाद्य सुरक्षा अध्यादेश पर आमराय कायम है। उन्होंने कहा, "राजनीतिक पार्टियों ने कुछ बिंदु सुझाए हैं लेकिन बड़े पैमाने पर सहमति है।"

तेलंगाना के गठन के बारे में कमलनाथ ने कहा कि यह कोई नया मुद्दा नहीं है और इस पर लंबी चर्चा हो चुकी है।

उधर, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने संसद के इसी सत्र में तेलंगाना पर विधेयक लाने की मांग की है।

कमलनाथ ने कहा कि उत्तराखंड में आपदा और अर्थव्यवस्था की हालत पर चर्चा होगी।

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