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This Article is From Jan 29, 2014

रवीश उवाच : भारतीय राजनीति में वंशवाद

नई दिल्ली:

नमस्कार, मैं रवीश कुमार। वंशवाद भारतीय राजनीति का एक ऐसा विषय है, जिसका अध्ययन और आलोचना करते करते कई राजनेता और कई दल इसी की चपेट में आ गए। अक्सर यह बहस सिर्फ गांधी परिवार के संदर्भ में उभरती है और बाकी परिवारों को छोड़ते हुए तू-तू मैं-मैं में बदल कर कोई ठोस राजनीतिक विमर्श में नहीं बदल पाता है।

विवाद किससे है, एक व्यक्ति के वंशवाद से, डायनेस्टी से या राजनीति में डायनेस्टी यानि वंशवाद की समस्याओं को लेकर। कभी भी हमारी राजनीति इस पर ईमानदार बहस नहीं करती है। सिर्फ पत्थर फेंक कर भाग जाती है। तो आज भी संदर्भ राहुल गांधी ही हैं।

टाइम्स नाऊ के अर्णब गोस्वामी जब सवाल करते हैं कि आप बार-बार अपने परिवार का नाम क्यों लेते हैं। तो राहुल कहते हैं कि मैं नाम नहीं लेता हूं, एक या दो बार ही लिया होगा। असली मुद्दा यह है कि इस परिवार में मैं पैदा हुआ यह मेरा चयन नहीं था। मैंने दस्तखत नहीं किए थे कि मैं इस परिवार में पैदा होना चाहूंगा। मैं वंशवाद की अवधारणा के खिलाफ हूं।

बीजेपी डीएमके और एसपी में भी वंशवाद है, कांग्रेस में भी है। इसे दूर करने में वक्त लगेगा। क्या आपको सचमुच लगता है कि राजनीति से खानदान या वंशवाद कभी दूर होगा। इसकी जड़ें क्या रातों रात गहरी हुईं हैं। इसीलिए मेरा आज सवाल है कि यह मुद्दा किसलिए हैं। राहुल गांधी को टारगेट करने के लिए या भारतीय राजनीति को वंशवाद से दूर करने के लिए।

क्या राहुल गांधी का मामला इसलिए संगीन है क्योंकि वे आए और आते ही परिवार के नाम पर प्रधानमंत्री के दावेदार बन गए या इसलिए है कि वंशवाद हमारी राजनीति को खाए जा रहा है। प्रधानमंत्री पद के लिए गंभीर है या मुख्यमंत्री या संसदीय सीटों पर परिवारों के कब्जे का मसला भी उतना ही गंभीर है।

फिर क्यों जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार है जिससे कांग्रेस और बीजेपी दोनों हाथ मिलाते रहे हैं। फिर क्यों पंजाब में बादल परिवार है, जो बीजेपी की सहयोगी है, फिर क्यों यूपी में यादव परिवार हैं जिससे कांग्रेस हाथ मिलाती है, फिर क्यों बिहार में यादव और पासवान परिवार है जिससे कांग्रेस गठबंधन करती है। फिर क्यों महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार है, जिससे बीजेपी हाथ मिलाती है। फिर क्यों मध्यप्रदेश और राजस्थान में सिंधिया परिवार है, जो कांग्रेस में भी है, बीजेपी में है।

कुछ परिवार तो बढ़ते ही जा रहे हैं। जैसे मुलायम सिंह यादव का परिवार। लालू प्रसाद यादव का परिवार, रामविलास पासवान का परिवार।

बड़े परिवारों में जैसे खेत−मकान बंटा करते हैं भाइयों के बीच उसी तरह अब राजनीतिक दल भी बंट रहे हैं। शिवसेना के अलावा इन दिनों आप तमिलनाडु की महत्वपूर्ण पार्टी डीएमके के बारे में खबरें पढ़ रहे होंगे। पिता करुणानिधि ने अपने बेटे अलागिरी को निकाल दिया है क्योंकि उन्होंने अपने भाई स्टालिन के मरने की आशंका पिता से ज़ाहिर कर दी थी। इस झगड़े में नाती दयानिधि मारन और बेटी कनिमोई का भी नाम आता ही रहता है।

पंजाब में बादल परिवार के संबंध में जब मैंने पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशुतोष से बात की तो उन्होंने कहा कि जैसे मुगल बादशाह अपनी सत्ता के विस्तार के लिए राजपूत राजाओं से शादियां किया करते थे, वैसे ही पंजाब में कांग्रेस और अकाली भले ही अलग दल हैं, मगर इनके बड़े नेता आपस में सास, बहू, बेटा, दामाद, बेटी और साला और साढ़ू लगते हैं।

आशुतोष ने पंजाब यूनिवर्सिटी की छात्रा गुनरीत कौर के एमए में लिखे पर्चे का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रकाश सिंह बादल के कैबिनेट मंत्री आदेश प्रताप सिंह उनके दामाद हैं। आदेश पंजाब में दस साल तक कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे प्रताप सिंह कैरों के बेटे हैं।

कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी सिमरनजीत सिंह मान की पत्नी और बेअंत सिंह के बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री हरचरण सिंह बरार की बहू आपस में बहनें हैं।

उसी तरह मजीठिया परिवार कांग्रेसी माना गया, लेकिन सुरजीत सिंह मजीठिया के बेटे विक्रम सिंह मजीठिया अब अकाली में है। उनकी बहन की शादी डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल से हुई है। विक्रम खुद भी अकाली से विधायक और कैबिनेट मंत्री हैं।

इन शादियों के ज़रिये भी बादल साहब ने मालवा और माझा इलाके में अपनी पकड़ मजबूत की है। भारतीय राजनीति में परिवारवाद को लेकर पैट्रिक फ्रेंच ने एक गंभीर अध्ययन किया है। पैट्रिक ने 15वीं लोकसभा के 545 सांसदों की पारिवारिक पृष्ठभूमि का अध्ययन किया तो 255 सांसदों की पारिवारिक पृष्ठभूमि कुछ खास नहीं लगी, लेकिन 156 सांसद पारिवारिक पृष्ठभूमि से तालुल्क रखते हैं। करीब 29 प्रतिशत सांसदों का फैमिली कनेक्शन है।

पैट्रिक फ्रेंच पार्टियों में खानदानी प्रतिशत भी निकालने का अजूबा काम करते हैं तो पाते हैं कि राष्ट्रीय लोकदल एक ऐसी पाटी है जो सौ परसेंट खानदानी है। इसके पांचों सांसद खानदानी हैं। आज के दैनिक हिन्दुस्तान में इनका एक विज्ञापन भी छपा है आगरा में संकल्प रैली का। वो भी राजनीति को स्वच्छ करने के लिए। इस विज्ञापन में तीन ही चेहरे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी।
पैट्रिक फ्रेंच के अनुसार पार्टियों में वंशवाद कुछ इस प्रकार है-
एनसीपी − 77.8 प्रतिसत 9 में से 7
बीजेडी − 42.9  प्रतिशत 14 में से 6
कांग्रेस − 37.5 प्रतिशत 208 में से 78
सपा − 27.3 प्रतिशत 22 में से 6
बीजेपी − 19 प्रतिशत 116 में से 22

यह अजीब नहीं है कि कोई वंशवाद पर हमला करते हुए खुद अपने परिवार का ज़िक्र करता है। चाय वाला, दूध वाला या गरीब परिवार वाला। कोई इसका ज़िक्र कैसे न करें। वंशवाद को लेकर राहुल गांधी को घेरा जाता है और उनसे उनके पिता के बयान का हिसाब पूछा जाता है। क्या यह अजीब नहीं है। बाप का हिसाब बेटे से। लेकिन क्या यह अजीब नहीं है कि वही बेटा मोदी से डरने के सवाल पर कहता है कि मैंने अपने परिवार में पिता की मौत देखी है, दादी की मौत देखी है, मैं किसी ने नहीं डरता। वंशवाद मुद्दा है या मसाला। क्या सचमुच हमारे दल इसके खिलाफ गंभीरता से आवाज़ उठा रहे हैं। आइए देखें रवीश उवाच...

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