यह ख़बर 25 फ़रवरी, 2014 को प्रकाशित हुई थी

गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के नाम रवीश कुमार की खुली चिट्ठी

आदरणीय भारत वर्ष के गृहमंत्री शिंदे जी

प्रणाम
आपने खंडन करने से पूर्व अपने एक बयान में कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बैठे−बिठाए बड़े पैमाने पर खुराफाती काम होते हैं। चूंकि मेरे पास खुफिया विभाग है यह काम कहां से करवाए जा रहे हैं मैं जानता हूं क्योंकि मैं सब कुछ देख रहा हूं उन पर चुपचाप नकेल लगवाने का काम मैं करवा रहा हूं। हाल के तीन−चार महीनों में इनही में से कुछ लोगों ने मानो एक मुहिम ही छेड़ रखी थी। ऐसी दुष्प्रचारक प्रवृत्तियों को उखाड़ निकालने का काम हम कर रहे हैं।

इस बयान का सुधार आपने इस तरह से किया कि आपने सोशल मीडिया के बारे में यह बात कही है। सरल हिन्दी में मैट्रिक पास कोई भी विद्यार्थी इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में प्रयुक्त वर्णाक्षरों का भेद समझ सकता है। अगर आपने सोशल मीडिया के बारे में भी यह कहा है तो सच बोलने के लिए बधाई। आपके ही सूचना−प्रसारण मंत्री इन दिनों विज्ञापन दे रहे हैं कि उन्होंने सूचनाओं को आजाद करने के लिए क्या−क्या कदम उठाए हैं। शायद आपसे बात कर विज्ञापन देते तो खुफिया विभाग के इस शानदार काम का जिक्र भी उसी विज्ञापन में आ जाता। ऐसी उपलब्धि आपको मुबारक।

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पत्रकारों का पीछा इन दिनों तमाम दल कर रहे हैं। पहले भी करते रहे हैं। सबके पास खुफिया विभाग तो नहीं है लिहाजा आप से अपील करता हूं कि बता दें कि यह काम आप ही अकेले कर रहे हैं या और भी कई दल कर रहे हैं। इस तरह के बयानों से ऐसा प्रतीत होता है कि आप मीडिया को डरा रहे हैं। सोशल मीडिया को डरा रहे हैं। यह आपके भीतर का डर बोल रहा है। आपको गृहमंत्री की जिम्मेदारी दी गई है आप पत्रकारों के घर टेलीफोन की चिंता छोड़ दीजिए। एक नागरिक के नाते गुजारिश तो कर ही सकता हूं, क्योंकि मेरे पास आप पर नजर रखने के लिए कोई खुफिया विभाग नहीं हैं।
 
आप बड़े हैं इसलिए फिर से प्रणाम सर,
रवीश कुमार
एंकर, इलेक्ट्रानिक मीडिया