रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार : रवीश कुमार ने कहा- पीएम मोदी का बधाई न देना भी बधाई है, कोई बात नहीं

रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार ग्रहण करने के लिए मनीला पहुंचे NDTV के रवीश कुमार से जब एक सवाल पूछा गया कि उनको पीएम मोदी ने अभी तक बधाई नहीं दी है तो इस पर उन्होंने कहा, कोई बात नहीं पीएम मोदी ने बधाई नहीं दी.

रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार : रवीश कुमार ने कहा- पीएम मोदी का बधाई न देना भी बधाई है, कोई बात नहीं

रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार ग्रहण करने के लिए मनीला पहुंचे रवीश कुमार

खास बातें

  • रवीश कुमार ने कहा, पीएम का बधाई न देना भी बधाई है
  • रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार ग्रहण करने मनीला पहुंचे हैं रवीश कुमार
  • 9 सितंबर को उन्हें मिलेगा रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार
नई दिल्ली:

रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार ग्रहण करने के लिए मनीला पहुंचे NDTV के रवीश कुमार से जब एक सवाल पूछा गया कि उनको पीएम मोदी ने अभी तक बधाई नहीं दी है तो इस पर उन्होंने कहा, कोई बात नहीं पीएम मोदी ने बधाई नहीं दी. उनका बधाई नहीं देना भी बधाई है.' आपको बता दें कि रवीश कुमार को 9 सितंबर को रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. इस सम्मान को पाने वाले रवीश कुमार हिंदी मीडिया के पहले पत्रकार हैं. रवीश कुमार इस सम्मान के लिए फिलीपींस के मनीला से पहुंच गए हैं. रैमॉन मैगसेसे के मंच से उन्होंने भाषण भी दिया.   रवीश कुमार ने अपनी स्पीच में कहा, "नागरिकता के लिए ज़रूरी है कि सूचनाओं की स्वतंत्रता और प्रामाणिकता हो. आज स्टेट का मीडिया और उसके बिज़नेस पर पूरा कंट्रोल हो चुका है. मीडिया पर कंट्रोल का मतलब है, आपकी नागरिकता का दायरा छोटा हो जाना. मीडिया अब सर्वेलान्स स्टेट का पार्ट है. वह अब फोर्थ एस्टेट नहीं है, बल्कि फर्स्ट एस्टेट है. प्राइवेट मीडिया और गर्वनमेंट मीडिया का अंतर मिट गया है. इसका काम ओपिनियन को डायवर्सिफाई नहीं करना है, बल्कि कंट्रोल करना है. ऐसा भारत सहित दुनिया के कई देशों में हो रहा है.

उन्होंने कहा, "यह वही मीडिया है, जिसने अपने खर्चे में कटौती के लिए 'सिटिज़न जर्नलिज़्म' को गढ़ना शुरू किया था. इसके ज़रिये मीडिया ने अपने रिस्क को आउटसोर्स कर दिया. मेनस्ट्रीम मीडिया के भीतर सिटिज़न जर्नलिज़्म और मेनस्ट्रीम मीडिया के बाहर के सिटिज़न जर्नलिज़्म दोनों अलग चीज़ें हैं, लेकिन जब सोशल मीडिया के शुरुआती दौर में लोग सवाल करने लगे, तो यही मीडिया सोशल मीडिया के खिलाफ हो गया. न्यूज़रूम के भीतर ब्लॉग और वेबसाइट बंद किए जाने लगे. आज भी कई सारे न्यूज़रूम में पत्रकारों को पर्सनल ओपिनियन लिखने की अनुमति नहीं है."

जब 'कश्मीर टाइम्स' की अनुराधा भसीन भारत के सुप्रीम कोर्ट जाती हैं, तो उनके खिलाफ प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया कोर्ट चला जाता है. यह कहने कि कश्मीर घाटी में मीडिया पर लगे बैन का वह समर्थन करता है. मेरी राय में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और पाकिस्तान के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी का दफ्तर एक ही बिल्डिंग में होना चाहिए. 

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