Monetization Policy : रेलवे से दो लाख करोड़ कमाना चाहती है सरकार, लेकिन क्या कहती है Ground Report

भारत सरकार की नई मॉनेटाइजेशन पॉलिसी यानी मौद्रिक नीति के तहत रेलवे से दो लाख करोड़ रुपए कमाने की योजना है. इसमें रेलवे के स्टेडियम, प्लेटफॉर्म, रेलवे की जमीन और प्राइवेट ट्रेन का PPP मॉडल से निजीकरण करना शामिल है.

Monetization Policy : रेलवे से दो लाख करोड़ कमाना चाहती है सरकार, लेकिन क्या कहती है Ground Report

रेलवे की संपत्तियों के जरिए दो लाख करोड़ कमाना चाहती है सरकार. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

नई दिल्ली:

भारत सरकार की नई मॉनेटाइजेशन पॉलिसी (Monetization Policy) यानी मौद्रिक नीति के तहत रेलवे से दो लाख करोड़ रुपए कमाने की योजना है. इसमें रेलवे के स्टेडियम, प्लेटफॉर्म, रेलवे की जमीन और प्राइवेट ट्रेन का PPP मॉडल से निजीकरण करना शामिल है. रेलवे से कैसे इतना पैसा आएगा अभी ये योजनाएं किस हाल में हैं, इसपर हम एक नजर डाल रहे हैं. दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस में स्थित रेलवे का सबसे बड़ा करनैल सिंह स्टेडियम है. पीटी ऊषा से लेकर ओलंपिक में मेडल लाने वाले बजरंग पूनिया, रवि कुमार और मीरा चानू ने इसी स्टेडियम में अभ्यास किया है, लेकिन अब कनॉट प्लेस से सटे करनैल सिंह स्टेडियम की छह एकड़ जमीन से भारत सरकार पैसा कमाने की सोच रही है. 

कनॉट प्लेस के एक मीटर जमीन की कीमत पांच से दस लाख रुपये के बीच है तो ऐसे में समझा जा सकता है कि छह एकड़ स्टेडियम की जमीन करीब दो हजार करोड़ से भी ऊपर की है, इसीलिए सरकार अब इसे Bronze Land बोल रही है यानी जितनी इसकी कीमत है उतना उससे फायदा नहीं है.

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मामले से जुड़े लोगों का क्या कहना है?

यही कारण है कि मार्च के महीने में एक पत्र वायरल हुआ, जिसमें सरकार करनैल सिंह स्टेडियम जैसे लखनऊ, गोरखपुर, सिकंदराबाद, कोलकाता, बेंगलुरु जैसे 15 स्टेडियम से पैसा कमाने की बात सामने आई थी, लेकिन अर्जुन अवॉर्डी और पूर्व ओलंपियन रोहतास कुमार जैसे लोग इस फैसले के खिलाफ हैं. वो खुद करनैल सिंह स्टेडियम में प्रैक्टिस भी कर चुके हैं और रेलवे के खेल अधिकारी रहे हैं. वो कहते हैं कि इस स्टेडियम में क्रिकेट के रणजी ट्राफी से लेकर मुक्केबाजी, कुश्ती और तमाम तरह के खेलों के राष्ट्रीय शिविर लगते हैं. इससे खेल का नुकसान होगा. 

रेलवे के पूर्व खेल अधिकारी रोहतास कुमार ने कहा कि 'ये रेलवे का स्टेडियम नंबर वन है. रहने, खीने, पीने का सब यहीं, इंतजाम होता है. रवि, बजरंग, चानू हैं, सब यहीं से तैयार हुए हैं. ये स्टेडियम हमारा हब है, यहीं सारे खिलाड़ी तैयार होते हैं, कैंप लगते है. ऐसी अच्छी जगह कहीं और नहीं हो सकती है.'

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तेजस ट्रेनों के हाल से असंतुष्टि

इसी तरह रेलवे ने 2019 मेंं प्राइवेट मॉडल पर तेजस नाम की कॉरपोरेट ट्रेन चलाई. फिलहाल दो तेजस ट्रेनें चल रही हैं,  लेकिन ब्रेक इवेन प्वाइंट 70 फीसदी है, यानी इससे कम सीटें भरी हों तो ट्रेन चलाने में नुकसान है इसलिए इसे चलाने में कई मुश्किलें हैं. अब दोबारा 150 प्राइवेट ट्रेनें चलाकर 30 हजार करोड़ निवेश की योजना है. रेल ही नहीं दिल्ली रेलवे स्टेशन में भी निजी निवेशकों के जरिए 6,200 करोड़ रुपए से इस तरह विकसित करने की प्रक्रिया तीन साल से चल रही है. 100 रेलवे स्टेशनों की पहचान की गई है लेकिन फिलहाल गांधी नगर और हबीब गंज ही विकसित हो पाए हैं. अब रेलवे यूनियन कह रही है कि ट्रेन और स्टेशन को प्राइवेट हाथों में देने की योजना फ्लॉप है.

AIRF के महासचिव शिवगोपाल मिश्रा ने कहा, 'तेजस ट्रेन खड़ी है. मंहगे टिकट होंगे तो उससे कौन चलेगा? इसी तरह 150 स्टेशनों को रिडेवलेप करने की बात 10 साल से चल रही है. उनपर मॉल होटल बनाने की बात कही गई थी. केवल चार स्टेशन बने उसमें से भी हबीबगंज फेल है.'

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सरकार को लगता है कि निजी कंपनियों को लुभाने के लिए रेलवे के पास बड़े शहरों के पॉश इलाकों में जमीन, फायदे वाले रूट और लाखों की भीड़ वाले रेलवे स्टेशन जैसी बहुत सी संपत्तियां हैं, जिसे देने से उसके आर्थिक हालात अच्छे हो सकते हैं. लेकिन हाल-फिलहाल के आर्थिक हालात और भारत के लाल फीताशाही को देखते हुए इतनी बड़ी रकम निजी भागीदारी से जुटाना आसान नहीं है.