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This Article is From Nov 05, 2014

रवीश रंजन की कलम से : दिल्ली के बड़े गांव में छोटे मसले की महा-पंचायत से दिक्कत क्यों?

रवीश रंजन की कलम से : दिल्ली के बड़े गांव में छोटे मसले की महा-पंचायत से दिक्कत क्यों?
बवाना में महापंचायत का एक दृश्य
नई दिल्ली:

दिल्ली के 360 गांवों में सबसे बड़ा बवाना गांव है। ये गांव अपने ऐतिहासिक धरोहरों, सेना और खेल के मैदानों में वीरता दिखाने वाले लोगों के लिए मशहूर रहा है। लेकिन रविवार को मुहर्रम के जुलूस का रास्ता बदलने को लेकर हुई महापंचायत ने इस गांव को मीडिया की सुर्खियों में ला खड़ा कर दिया।

दरअसल, सरकार ने 10 साल पहले इस गांव से दो किमी दूर बवाना रिसेटलमेंट जेजे कॉलोनी को बसाया था। बीते कई साल से ताजिए का जुलूस इसी गांव की मुख्य सड़क से गुजरता था, लेकिन पिछले साल जुलूस के दौरान छिटपुट झगड़ा और गाली-गलौज के चलते गांव के लोगों ने प्रशासन से लिखित मांग कर यहां से जूलूस न निकालने की गुजारिश की।

गांव वालों का कहना था कि बवाना जेजे कॉलोनी में निकलने वाले ताजिए के जुलूस में खुलेआम तलवार लहराना और डंडे भांजना आम है और जब सात से आठ हजार लोगों की इस तरह की भीड़ हो, जिसमें युवाओं का जोश ज्यादा हो और समझदारी कम, तो हिंसा होने की आशंका बढ़ जाती है।

इसी के चलते बवाना जेजे कॉलोनी के समझदार लोगों ने प्रशासन के साथ बैठक करके इस बात को मान लिया कि ताजिए का जुलूस बवाना गांव की मुख्य सड़क से नहीं निकलेगा। मंगलवार को जुलूस बवाना जेजे कॉलोनी में शांतिपूर्ण तरीके से निकला भी, लेकिन शायद प्रशासन और बवाना गांव के लोगों के बीच समय रहते संवाद नहीं हो पाया। इसका नतीजा यह रहा कि कुछ युवाओं ने जो एक खास समिति या संगठन जुड़े हैं, उन्हें जुलूस से पहले रविवार को महापंचायत करने का मौका मिल गया।

महापंचायत के तेवर पर सवाल
मंगलवार को मुहर्रम का जुलूस निकला। उससे पहले रविवार शाम धांदूराम मुख्य बाजार के धर्मशाला में लाउडस्पीकर लगाकर पंचायत बुलाई गई। महापंचायत में आसपास के एक हजार से ज्यादा लोग जुटे। पहले मीडिया के जाने पर प्रतिबंध था, बाद में अपनी सुविधा के मुताबिक कुछ युवकों ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को जाने दिया।

इसमें एक पर्चा भी बांटा गया, जिसमें हिंदुओं से एक होने की बात कही गई थी और किसी भी हालत में जुलूस को न निकलने देने की अपील की गई थी। इस महापंचायत में कांग्रेस के पार्षद, बीजेपी के पूर्व पार्षद और विधायक घुगन सिंह भी मौजूद थे। तीन घंटे तक चली इस महापंचायत के लाउडस्पीकर से कई लोगों के इतने गरम तेवर सुनने को मिले, जिसका जिक्र भी करना हमारे सामाजिक ताने-बाने के लिए उचित नहीं है।

सवाल यह उठता है कि जब दोपहर को बवाना गांव में डॉ राम निवास सहरावत जैसे लोगों के पास लिखित में पत्र आ गया था कि मुहर्रम का जुलूस यहां से नहीं निकलेगा, तो महापंचायत को रोकने की कोशिश क्यों नहीं की गई। इसके जवाब में वह कहते हैं कि कुछ युवाओं ने पांच दिन पहले से ही पंचायत बुला रखी थी, इसके चलते इसे रोका नहीं जा सका।

सवाल यह भी है कि पंचायत बुलाने वाले लोग कौन थे? ये कौन बच्चे हैं, जो लाउडस्पीकर से जान की बाजी लगाने की बात कर रहे हैं। महापंचायत के संयोजक प्रदीप माथुर गो रक्षा दल से भी जुड़े हैं। बाबा रामदेव के सहयोगी हैं और भगत सिंह क्रांति सेना के आयोजनों में इनका जाना लगा रहता है। वह कहते हैं कि पंचायत इसलिए बुलाया जाना जरूरी था, क्योंकि प्रशासन ने लिखित रूप से यह बात नहीं बताई थी।

बवाना गांव में 56 फीसदी पुरुष और 44 फीसदी महिलाएं है। इस गांव में महिलाओं की साक्षरता दर महज 40 फीसदी है। अगर सामाजिक कुरीतियों और नशेबंदी के खिलाफ इस तरह की महापंचायत कड़े फैसले लेती है, तो वह भी मीडिया की सुर्खियां बन सकती है। हमारे देश के गंगा-जमुनी तहजीब को नुकसान पहुंचाने या कानून को अपने हाथों में लेने वालों के खिलाफ भी कड़ाई से उठ खड़े होने का वक्त है, वे चाहे किसी भी जाति या मजहब का क्यों ना हो।

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