मुंबई:
पुणे में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों की जांच कर रही महाराष्ट्र एटीएस और पुणे क्राइम ब्रांच के हाथ कुछ नए सुराग लगे हैं। जांच के लिए बनी एक संयुक्त टीम के अनुसार पुणे में हुए इस बम धमाके के पीछे इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी मोहिसीन चौधरी का हाथ हो सकता है।
जाँच से जुड़े एक अधिकारी ने दावा किया की चौधरी ने इस धमाके को अंजाम देने के लिए गुजरात और महाराष्ट्र के स्लीपर सेल आतंकियों का इस्तेमाल किया है। सूत्र दावा कर रहे हैं कि, "धमाकों के लिए इस्तेमाल साईकिल को खरीदने के लिए जो लोग आये थे उनके बोल-चाल की शैली में गुजराती भाषा का समावेश था।"
जाँच से जुड़े अधिकारी शक जता रहे हैं कि ये लोग गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा के पास रहने वाले इंडियन मुजाहीदीन के स्लीपर सेल के लोग हो सकते हैं जिन्हें धमाकों में मदद के लिए एक्टिव किया गया हो। मामले की जांच के लिए एटीस की दो टीमें गुजरात के इलाकों में गई हैं और एक टीम कर्नाटक के तटवर्ती इलाकों में सबूतों की तलाश में गई है।
मौका-ए-वारदात से बरामद किए गए बम की जाँच के बाद पता चला कि बम में पेट्रोलियम जेली का इस्तेमाल किया गया था ताकि बम जोरदार धमाके करने में कामयाब रहें।
एफसएल से जुड़े अधिकारी बता रहे हैं कि "लेकिन इसी पेट्रोलियम जेली के चलते बमों में नमी आ गई और धमाके नहीं हो पाए।" इसके पहले भी इंडियन मुजाहीदीन ने गुजरात के सूरत इलाके में डिजिटल टाईमर का इस्तेमाल किया था जिसके चलते वो बमों को 48 से 72 घंटो तक का वक़्त देकर उसमें विस्फोट करा सकते थे
लेकिन डिजीटल टाईमर में तकनीकी गड़बड़ियों के चलते बम में विस्फोट नहीं हो पाया और समय रहते गुजरात पुलिस ने बमों को निष्क्रिय कर दिया था।
धमाकों की जांच में जिस मोहिसीन चौधरी का नाम सामने आ रहा है वह आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापकों में से एक है। चौधरी ने ही पुणे के जर्मन बेकरी बम धमकों को अंजाम दिया था। मामले में एटीस ने भले ही एक आतंकी को गिरफ्तार किया हो लेकिन चौधरी पुलिस को चकमा दे कर फरार होने में कामयाब रहा था। मोहिसीन चौधरी पुणे के ही कोंडावा इलाके में रहा करता था और वह पुणे के चप्पे-चप्पे से मुखातिब है।
सूत्र दावा कर रहे हैं कि इंडियन मुजाहिदीन के स्लीपर सेल की मदद से वह किसी भी धमाके को अंजाम देने की काबीलियत रखता है।
जाँच से जुड़े एक अधिकारी ने दावा किया की चौधरी ने इस धमाके को अंजाम देने के लिए गुजरात और महाराष्ट्र के स्लीपर सेल आतंकियों का इस्तेमाल किया है। सूत्र दावा कर रहे हैं कि, "धमाकों के लिए इस्तेमाल साईकिल को खरीदने के लिए जो लोग आये थे उनके बोल-चाल की शैली में गुजराती भाषा का समावेश था।"
जाँच से जुड़े अधिकारी शक जता रहे हैं कि ये लोग गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा के पास रहने वाले इंडियन मुजाहीदीन के स्लीपर सेल के लोग हो सकते हैं जिन्हें धमाकों में मदद के लिए एक्टिव किया गया हो। मामले की जांच के लिए एटीस की दो टीमें गुजरात के इलाकों में गई हैं और एक टीम कर्नाटक के तटवर्ती इलाकों में सबूतों की तलाश में गई है।
मौका-ए-वारदात से बरामद किए गए बम की जाँच के बाद पता चला कि बम में पेट्रोलियम जेली का इस्तेमाल किया गया था ताकि बम जोरदार धमाके करने में कामयाब रहें।
एफसएल से जुड़े अधिकारी बता रहे हैं कि "लेकिन इसी पेट्रोलियम जेली के चलते बमों में नमी आ गई और धमाके नहीं हो पाए।" इसके पहले भी इंडियन मुजाहीदीन ने गुजरात के सूरत इलाके में डिजिटल टाईमर का इस्तेमाल किया था जिसके चलते वो बमों को 48 से 72 घंटो तक का वक़्त देकर उसमें विस्फोट करा सकते थे
लेकिन डिजीटल टाईमर में तकनीकी गड़बड़ियों के चलते बम में विस्फोट नहीं हो पाया और समय रहते गुजरात पुलिस ने बमों को निष्क्रिय कर दिया था।
धमाकों की जांच में जिस मोहिसीन चौधरी का नाम सामने आ रहा है वह आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापकों में से एक है। चौधरी ने ही पुणे के जर्मन बेकरी बम धमकों को अंजाम दिया था। मामले में एटीस ने भले ही एक आतंकी को गिरफ्तार किया हो लेकिन चौधरी पुलिस को चकमा दे कर फरार होने में कामयाब रहा था। मोहिसीन चौधरी पुणे के ही कोंडावा इलाके में रहा करता था और वह पुणे के चप्पे-चप्पे से मुखातिब है।
सूत्र दावा कर रहे हैं कि इंडियन मुजाहिदीन के स्लीपर सेल की मदद से वह किसी भी धमाके को अंजाम देने की काबीलियत रखता है।
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