राष्ट्रपति पद को संभालने वाला कोई शख्स लोगों खासकर बच्चों के बीच इतना लोकप्रिय हो सकता है, यह देश ने एपीजे अब्दुल कलाम के इस सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बाद ही जाना। डॉ. कलाम ने वर्ष 2002 से 2007 तक राष्ट्रपति पद संभालते हुए नए आयाम स्थापित किए। स्वभाव से वे इतने सरल थे कि 'महामहिम' के बजाय 'मिसाइल मैन' अथवा 'कलाम सर' के नाम से ही संबोधित किए जाने पर ज्यादा खुशी महसूस करते थे। बच्चों के बीच डॉ. कलाम बेहद लोकप्रिय थे।
देश के परमाणु कार्यक्रम के पुरोधा और दिग्गज वैज्ञानिक कलाम साहब को बच्चों से खास लगाव था। यही नहीं, बच्चों को लेकर उनके दिमाग में एक विजन भी था। जब भी वे किसी स्कूल या ऐसे कार्यक्रम में पहुंचते जहां बच्चों की तादाद ज्यादा होती थी, तो राष्ट्रपति के बजाय टीचर के रोल में आ जाते। बच्चों की मामूली से मामूली जिज्ञासा का भी वे इस तरह समाधान सुझाते कि नन्हे-मुन्ने उनके जैसा बनने की चाहत दिल में संजोने लगते। बच्चों को उनका संदेश बेहद साफ होता था, 'बड़े सपने देखो। बड़े सपने देखने से कभी मत कतराओ, लेकिन ऐसे सपने देखने के बाद पूरी शिद्दत से इन्हें पूरा करने में जुट जाओ।' एक व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए डॉ. कलाम।
ताउम्र कुंवारे रहे कलाम साहब राजनीतिक व्यक्ति नहीं थे, इसलिए जब अटलजी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए चुना और जब वे इस पद के लिए निर्वाचित हुए, तो हर किसी के मन में उनके राजनीतिक कौशल, देश के सर्वोच्च पद पर रहते हुए इसकी खासी जरूरत होती है, को लेकर संशय था। लेकिन रामेश्वरम के एक सामान्य परिवार के इस बेटे ने हर किसी को गलत साबित किया। राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए जो बाद में नजीर बने। पक्ष और विपक्ष, दोनों का उन्हें बराबरी से सम्मान हासिल हुआ।
भारत रत्न डॉ. कलाम बेहद सामान्य-सरल परिवार में जन्मे थे और राष्ट्रपति पद संभालने के बाद भी यही उनकी पहचान बनी। आम लोगों से भी वे इस तरह घुल-मिल जाते थे, मानो पहले से जानते हों। 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के एक मुस्लिम परिवार में उनका जन्म हुआ था। पिता जैनुलाब्दीन खुद ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन अपने प्रतिभावान बेटे को शिक्षित और संस्कारवान बनाने में उनका अहम योगदान रहा। जैनुलाब्दीन ने अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए बेहद संघर्ष किया।
परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि नन्हे कलाम को अख़बार बांटने का काम भी करना पड़ा, लेकिन हौसले ऊंचे हो तो कोई आपकी राह नहीं रोक सकता, कलाम ने इसे साबित किया। 1958 में उन्होंने अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में आए। यहीं से उन्हें 'मिसाइलमैन' का नाम मिला। देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को जो ऊंचाई मिली वह बहुत कुछ कलाम साहब की ही देन है, हालांकि उन्होंने कभी इसका श्रेय नहीं लिया। विक्रम साराभाई जैसे वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने युवा कलाम के मन में गहरा असर डाला। भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार रह चुके कलाम की ही देखरेख में भारत ने 1998 में पोखरण में अपना सफल परमाणु परीक्षण किया। देश को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने में कलाम साहब के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
वैज्ञानिक के रूप में लंबी पारी खेलने के बाद कलाम साहब देश के 11वें राष्ट्रपति बने। अनुशासनप्रिय कलाम ने कई पुस्तकें भी लिखी थीं और ये देश ही नहीं, विदेशों के युवाओं को भी प्रेरित करती हैं। वे ऐसे बिरले वैज्ञानिक थे जो मिसाइल कार्यक्रम में योगदान देने के साथ-साथ कविताएं लिखने और वीणा बजाने में भी आनंद का अनुभव करते थे। देश के राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 2007 में खत्म हुआ। पूरा देश उन्हें बतौर राष्ट्रपति दूसरा कार्यकाल दिए जाने के पक्ष में था, लेकिन सियासी दलों के मतभेदों के चलते ऐसा नहीं हो सका। स्वाभाविक रूप से कलाम को राष्ट्रपति के रूप में दूसरा कार्यकाल नहीं मिलने पर उन लोगों को बेहद निराशा हुई जो उन्हें अपने आदर्श, गाइड और संरक्षक के तौर पर देखते थे।
राष्ट्रपति कार्यालय छोड़ने के बाद कलाम फिर टीचिंग के प्रति समर्पित हो गए। देश की बड़ी यूनिवर्सिटीज में उन्होंने लेक्चर दिए। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद भविष्यदर्शी कलाम साहब की सेवाएं लंबे समय तक नहीं मिल पाईं। 27 जुलाई 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिलांग में वे व्याख्यान दे रहे थे कि इसी दौरान गिर पड़े। बेहोशी की हालत में आईसीयू ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। यह उल्लेखनीय है कि कर्मयोगी डॉ.कलाम की मौत भी उनके पसंदीदा काम व्याख्यान (टीचिंग) देते हुए हुई। देश के लोगों और बच्चों के लिए तो यह बहुत बड़ा आघात था। कलाम साहब, आप जैसा न कोई दूसरा था और शायद न कोई होगा...। सेंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक ने डॉ. कलाम को इस अंदाज में श्रद्धांजलि दी। (फोटो सुदर्शन पटनायक के ट्विटर पेज से साभार )
देश के परमाणु कार्यक्रम के पुरोधा और दिग्गज वैज्ञानिक कलाम साहब को बच्चों से खास लगाव था। यही नहीं, बच्चों को लेकर उनके दिमाग में एक विजन भी था। जब भी वे किसी स्कूल या ऐसे कार्यक्रम में पहुंचते जहां बच्चों की तादाद ज्यादा होती थी, तो राष्ट्रपति के बजाय टीचर के रोल में आ जाते। बच्चों की मामूली से मामूली जिज्ञासा का भी वे इस तरह समाधान सुझाते कि नन्हे-मुन्ने उनके जैसा बनने की चाहत दिल में संजोने लगते। बच्चों को उनका संदेश बेहद साफ होता था, 'बड़े सपने देखो। बड़े सपने देखने से कभी मत कतराओ, लेकिन ऐसे सपने देखने के बाद पूरी शिद्दत से इन्हें पूरा करने में जुट जाओ।'
ताउम्र कुंवारे रहे कलाम साहब राजनीतिक व्यक्ति नहीं थे, इसलिए जब अटलजी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए चुना और जब वे इस पद के लिए निर्वाचित हुए, तो हर किसी के मन में उनके राजनीतिक कौशल, देश के सर्वोच्च पद पर रहते हुए इसकी खासी जरूरत होती है, को लेकर संशय था। लेकिन रामेश्वरम के एक सामान्य परिवार के इस बेटे ने हर किसी को गलत साबित किया। राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए जो बाद में नजीर बने। पक्ष और विपक्ष, दोनों का उन्हें बराबरी से सम्मान हासिल हुआ।
भारत रत्न डॉ. कलाम बेहद सामान्य-सरल परिवार में जन्मे थे और राष्ट्रपति पद संभालने के बाद भी यही उनकी पहचान बनी। आम लोगों से भी वे इस तरह घुल-मिल जाते थे, मानो पहले से जानते हों। 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के एक मुस्लिम परिवार में उनका जन्म हुआ था। पिता जैनुलाब्दीन खुद ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन अपने प्रतिभावान बेटे को शिक्षित और संस्कारवान बनाने में उनका अहम योगदान रहा। जैनुलाब्दीन ने अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए बेहद संघर्ष किया।
परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि नन्हे कलाम को अख़बार बांटने का काम भी करना पड़ा, लेकिन हौसले ऊंचे हो तो कोई आपकी राह नहीं रोक सकता, कलाम ने इसे साबित किया। 1958 में उन्होंने अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में आए। यहीं से उन्हें 'मिसाइलमैन' का नाम मिला। देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को जो ऊंचाई मिली वह बहुत कुछ कलाम साहब की ही देन है, हालांकि उन्होंने कभी इसका श्रेय नहीं लिया। विक्रम साराभाई जैसे वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने युवा कलाम के मन में गहरा असर डाला। भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार रह चुके कलाम की ही देखरेख में भारत ने 1998 में पोखरण में अपना सफल परमाणु परीक्षण किया।
वैज्ञानिक के रूप में लंबी पारी खेलने के बाद कलाम साहब देश के 11वें राष्ट्रपति बने। अनुशासनप्रिय कलाम ने कई पुस्तकें भी लिखी थीं और ये देश ही नहीं, विदेशों के युवाओं को भी प्रेरित करती हैं। वे ऐसे बिरले वैज्ञानिक थे जो मिसाइल कार्यक्रम में योगदान देने के साथ-साथ कविताएं लिखने और वीणा बजाने में भी आनंद का अनुभव करते थे। देश के राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 2007 में खत्म हुआ। पूरा देश उन्हें बतौर राष्ट्रपति दूसरा कार्यकाल दिए जाने के पक्ष में था, लेकिन सियासी दलों के मतभेदों के चलते ऐसा नहीं हो सका। स्वाभाविक रूप से कलाम को राष्ट्रपति के रूप में दूसरा कार्यकाल नहीं मिलने पर उन लोगों को बेहद निराशा हुई जो उन्हें अपने आदर्श, गाइड और संरक्षक के तौर पर देखते थे।
राष्ट्रपति कार्यालय छोड़ने के बाद कलाम फिर टीचिंग के प्रति समर्पित हो गए। देश की बड़ी यूनिवर्सिटीज में उन्होंने लेक्चर दिए। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद भविष्यदर्शी कलाम साहब की सेवाएं लंबे समय तक नहीं मिल पाईं। 27 जुलाई 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिलांग में वे व्याख्यान दे रहे थे कि इसी दौरान गिर पड़े। बेहोशी की हालत में आईसीयू ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। यह उल्लेखनीय है कि कर्मयोगी डॉ.कलाम की मौत भी उनके पसंदीदा काम व्याख्यान (टीचिंग) देते हुए हुई। देश के लोगों और बच्चों के लिए तो यह बहुत बड़ा आघात था। कलाम साहब, आप जैसा न कोई दूसरा था और शायद न कोई होगा...।
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