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राष्ट्रपति चुनाव को लेकर गठबंधन सहयोगियों के परस्पर विरोधी रुख के चलते भाजपा जैसे सन्न रह गई है।
भाजपा नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में एक प्रमुख घटक, शिवसेना पहले ही सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को बिना शर्त समर्थन की घोषणा कर चुकी है।
सोमवार को भाजपा की कोर समिति की बैठक के बाद तय किया गया था कि चुनाव लड़ना आवश्यक है। लेकिन शिव सेना के इस कदम से भाजपा मुश्किल में फंस गई है, जिसने न केवल मुखर्जी का समर्थन किया है, बल्कि राजनीतिक दलों से उनका समर्थन करने के लिए आग्रह भी किया है।
यह दूसरा मौका है जब शिव सेना ने भाजपा से अलग होकर राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए उम्मीदवार को समर्थन दिया है। इसके पहले उसने यूपीए उम्मीदवार प्रतिभा पाटील को समर्थन दिया था।
एक अन्य प्रमुख सहयोगी जनता दल (युनाइटेड) भी सम्भवत: मुखर्जी के खिलाफ उम्मीदवार न उतारने के पक्ष में है।
भाजपा को एक अन्य झटका कर्नाटक से मिल रहा है। सूत्रों ने कहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने मुखर्जी को समर्थन देने की बात कही है। हालांकि येदियुरप्पा की ओर से इस बारे में आधिकारिक बयान आना अभी बाकी है।
भाजपा अपने इस रुख पर कायम है कि वह मुखर्जी को निर्विरोध चुनाव नहीं जीतने देगी। लेकिन अभी वह अपना उम्मीदवार नहीं तय कर पाई है।
भाजपा के एक नेता ने नाम न जाहिर करने के अनुरोध के साथ कहा, "सामान्य भावना यह है कि हमें मुखर्जी के खिलाफ उम्मीदवार उतारना चाहिए, भले ही वह प्रतीकात्मक ही क्यों न हो। अन्यथा हम एक कमजोर विपक्ष साबित होंगे।"
भाजपा नेता ने हालांकि इस सम्भावना पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि भाजपा अपने सहयोगियों के खिलाफ अकेले मैदान में उतरने जा रही है।
भाजपा ने सोमवार को कोर समिति की बैठक के बाद मीडिया से बात करने से इनकार कर दिया था। पार्टी ने सिर्फ इतना कहा था कि कोई अंतिम निर्णय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेताओं की एक बैठक के बाद लिया जाएगा। लेकिन इस बैठक की तारीख अभी तय नहीं है।
भाजपा सूत्रों ने कहा है कि राजग की बैठक इस सप्ताह होगी और उसके बाद पार्टी की कोर समिति की एक और बैठक होगी।
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