राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
उच्च स्तरीय संवाद को कायम रखते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी मंगलवार को चार दिनों की यात्रा पर चीन रवाना हो रहे हैं। इस यात्रा का मकसद एशिया की दो प्रमुख आर्थिक शक्तियों के बीच संबंधों को और व्यापक बनाना है और इस दौरान वह चीनी नेतृत्व के साथ विवादित मुद्दों सहित विभिन्न प्रमुख विषयों पर बातचीत करेंगे।
अपनी यात्रा के दौरान मुखर्जी के जेईएम प्रमुख मसूद अजहर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध के लिए भारत के प्रयास को चीन द्वारा बाधित किए जाने का मुद्दा उठाने की भी संभावना है। इसके साथ ही चीन के इस रूख को भी उठाए जाने की संभावना है कि प्रतिष्ठित परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता हासिल करने के लिए भारत परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करे। वार्ता में लंबित सीमा मुद्दा के भी उठने की संभावना है।
राष्ट्रपति अपने चीनी समकक्ष शी चिनफिंग, प्रधानमंत्री ली क्विंग और अन्य प्रमुख नेताओं से मुलाकात करेंगे।
राष्ट्रपति के रूप में मुखर्जी की यह पहली चीन यात्रा है। हालांकि विभिन्न पदों पर रहते हुए वह कई बार चीन की यात्रा कर चुके हैं। इसके पहले 2010 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल चीन की यात्रा पर गयी थीं।
सितंबर 2014 में शी की ऐतिहासिक भारत यात्रा के बाद दोनों देशों के संबंधों में प्रगाढ़ता आयी है। उस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे और चीन ने भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र में 20 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले साल चीन की यात्रा पर गए थे और उस दौरान दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपने संबंध और प्रगाढ़ बनाने का संकल्प लिया था। हालांकि हाल ही में संबंधों में परेशानी उस समय पैदा हुई जब चीन ने अजहर पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध के लिए भारत के प्रयास को रोक दिया था। इसके साथ ही उसने भारत को एनएसजी की सदस्यता दिए जाने का विरोध करते हुए कहा था कि उस समूह में शामिल होने के लिए भारत को एनपीटी पर हस्ताक्षर करना चाहिए।
अपनी यात्रा के पहले मुखर्जी ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ जंग में चीन के भारत के साथ हाथ मिलाने से ‘‘इसका अलग असर’’ होगा। उन्होंने संकेत दिया कि चुनौती से निपटने के लिए दोनों देशों को साथ आना चाहिए।
यह टिप्पणी अजहर को आतंकवादियों की संयुक्त राष्ट्र सूची में डालने के लिए भारत के प्रयास को बीजिंग द्वारा रोके जाने की पृष्ठभूमि में आयी है।
मुखर्जी की यात्रा की शुरुआत मंगलवार को औद्योगिक शहर गुआंग्झाउ से होगी। वह इस शहर का दौरा करने वाले पहले भारतीय नेता होंगे। बौद्ध धर्म के चान पंथ की शुरुआत यहीं से हुई थी और बाद में यह जापान तथा कोरिया तक फैला।
भारतीय समुदायों के साथ संवाद के बाद मुखर्जी इंडिया-चाइना बिजनेस फोरम को भी संबोधित करेंगे ताकि भारत में निवेश की संभावनाओं को रेखांकित किया जा सके। वहां भारतीय समुदाय के तीन हजार से ज्यादा कारोबारी हैं।
राष्ट्रपति वहां गवर्नर से भी मिलेंगे जो पार्टी के सचिव भी हैं। वहां उनके सम्मान में दोपहर का भोज दिया जाएगा। अपनी यात्रा के दूसरे चरण में मुखर्जी बीजिंग जाएंगे जहां चीनी नेतृत्व के साथ प्रमुख द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर व्यापक चर्चा करेंगे।
उनकी यात्रा का एक प्रमुख कार्यक्रम चीनी और भारतीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के एक गोलमेज सम्मेलन में शामिल होना भी है। दोनों देशों के शिक्षण संस्थानों के बीच कई एमओयू पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। बीजिंग में, वह पेकिंग विश्वविद्यालय के छात्रों से भी बातचीत करेंगे।
उनके साथ शिक्षाविदों का एक प्रतिनिधिमंडल भी जाएगा जिसमें दो केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपति, आईआईटी दिल्ली और भुवनेश्वर, आईआईएम अहमदाबाद तथा एनआईटी नागपुर और अगरतला के प्रमुख भी होंगे। राष्ट्रपति के साथ केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार और चार सांसद भी जाएंगे।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
अपनी यात्रा के दौरान मुखर्जी के जेईएम प्रमुख मसूद अजहर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध के लिए भारत के प्रयास को चीन द्वारा बाधित किए जाने का मुद्दा उठाने की भी संभावना है। इसके साथ ही चीन के इस रूख को भी उठाए जाने की संभावना है कि प्रतिष्ठित परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता हासिल करने के लिए भारत परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करे। वार्ता में लंबित सीमा मुद्दा के भी उठने की संभावना है।
राष्ट्रपति अपने चीनी समकक्ष शी चिनफिंग, प्रधानमंत्री ली क्विंग और अन्य प्रमुख नेताओं से मुलाकात करेंगे।
राष्ट्रपति के रूप में मुखर्जी की यह पहली चीन यात्रा है। हालांकि विभिन्न पदों पर रहते हुए वह कई बार चीन की यात्रा कर चुके हैं। इसके पहले 2010 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल चीन की यात्रा पर गयी थीं।
सितंबर 2014 में शी की ऐतिहासिक भारत यात्रा के बाद दोनों देशों के संबंधों में प्रगाढ़ता आयी है। उस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे और चीन ने भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र में 20 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले साल चीन की यात्रा पर गए थे और उस दौरान दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपने संबंध और प्रगाढ़ बनाने का संकल्प लिया था। हालांकि हाल ही में संबंधों में परेशानी उस समय पैदा हुई जब चीन ने अजहर पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध के लिए भारत के प्रयास को रोक दिया था। इसके साथ ही उसने भारत को एनएसजी की सदस्यता दिए जाने का विरोध करते हुए कहा था कि उस समूह में शामिल होने के लिए भारत को एनपीटी पर हस्ताक्षर करना चाहिए।
अपनी यात्रा के पहले मुखर्जी ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ जंग में चीन के भारत के साथ हाथ मिलाने से ‘‘इसका अलग असर’’ होगा। उन्होंने संकेत दिया कि चुनौती से निपटने के लिए दोनों देशों को साथ आना चाहिए।
यह टिप्पणी अजहर को आतंकवादियों की संयुक्त राष्ट्र सूची में डालने के लिए भारत के प्रयास को बीजिंग द्वारा रोके जाने की पृष्ठभूमि में आयी है।
मुखर्जी की यात्रा की शुरुआत मंगलवार को औद्योगिक शहर गुआंग्झाउ से होगी। वह इस शहर का दौरा करने वाले पहले भारतीय नेता होंगे। बौद्ध धर्म के चान पंथ की शुरुआत यहीं से हुई थी और बाद में यह जापान तथा कोरिया तक फैला।
भारतीय समुदायों के साथ संवाद के बाद मुखर्जी इंडिया-चाइना बिजनेस फोरम को भी संबोधित करेंगे ताकि भारत में निवेश की संभावनाओं को रेखांकित किया जा सके। वहां भारतीय समुदाय के तीन हजार से ज्यादा कारोबारी हैं।
राष्ट्रपति वहां गवर्नर से भी मिलेंगे जो पार्टी के सचिव भी हैं। वहां उनके सम्मान में दोपहर का भोज दिया जाएगा। अपनी यात्रा के दूसरे चरण में मुखर्जी बीजिंग जाएंगे जहां चीनी नेतृत्व के साथ प्रमुख द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर व्यापक चर्चा करेंगे।
उनकी यात्रा का एक प्रमुख कार्यक्रम चीनी और भारतीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के एक गोलमेज सम्मेलन में शामिल होना भी है। दोनों देशों के शिक्षण संस्थानों के बीच कई एमओयू पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। बीजिंग में, वह पेकिंग विश्वविद्यालय के छात्रों से भी बातचीत करेंगे।
उनके साथ शिक्षाविदों का एक प्रतिनिधिमंडल भी जाएगा जिसमें दो केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपति, आईआईटी दिल्ली और भुवनेश्वर, आईआईएम अहमदाबाद तथा एनआईटी नागपुर और अगरतला के प्रमुख भी होंगे। राष्ट्रपति के साथ केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार और चार सांसद भी जाएंगे।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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