प्रयागराज के कुंभ में खोया पाया केंद्र में बच्चों के लिए कार्ड बनवाए जा रहे हैं.
कुंभ मेले में दो भाइयों राम और श्याम के बिछुड़ने की फिल्मी कहानी आपने देखी होगी जिसमें बड़े होने पर किसी लॉकेट या निशानी से दोनों बिछुड़े भाई मिल जाते हैं. फिल्मों में ये पहचान दशकों से बिछुड़े भाइयों के बीच अचानक होती है. पर अब डिजिटल दुनिया है और इसी दौर में डिजिटल कुंभ हो रहा है. इस मेले में कोई राम या श्याम खोता है तो वह तुरंत अपने घर पहुंच सकता है अगर उसके गले में एक आरएफआईडी कार्ड लटका हो.
क्या है ये आरएफआईडी कॉर्ड
यह एक आइडेंटिटी कार्ड की तरह साधारण कार्ड है जो बच्चे के गले में लटका रहेगा. इस कार्ड पर लिखा है 'यदि मैं खो जाऊं तो मेरी मदद करें. साथ ही मुझे किसी नजदीकी खोया पाया केन्द्र के वोडफोन सेंटर पर पहुंचा दें.' यह कार्ड लोगों को खासा आकर्षित कर रहा है. अब तक 2000 से ज्यादा अभिभावक इसे अपने बच्चों के लिए ले जा चुके हैं.
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कैसे करता है ये आरएफआईडी कार्ड काम
कुंभ मेले में पहली बार इस आरएफआईडी कार्ड को एक मोबाइल कम्पनी के सहयोग से यूपी पुलिस ने लॉन्च किया है. इस कार्ड को एक्टिवेट करने की एक प्रक्रिया है. जिस बच्चे का कार्ड बनना होता है, उसका नाम, पता, पिता का नाम और पिता के मोबाइल नंबर को एक कुंभ मेला ऐप में रजिस्टर किया जाता है. फिर इस कार्ड को उससे कॉन्फ़िगर कर इसे एक्टिवेट कर दिया जाता है. जब कोई बच्चा गुम होगा और वह इससे सम्बंधित स्टोर पर पहुंचेगा तो वहां रखा स्कैनर इसे स्कैन कर बच्चे के लोकेशन की जानकारी दर्ज़ किए गए मोबाइल पर भेज देगा. इस जानकारी के मिलने के बाद माता-पिता सम्बंधित स्टोर पर आकर बच्चे को ले जाते हैं.
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कार्ड बनवाने के लिए पहुंच रहे हैं लोग
खोया पाया केंद्र में आरएफआईडी कार्ड के काउंटर पर जहां जौनपुर से मेला देखने आए रिंकू का पूरा परिवार अपने बच्चों के लिए डिजिटल कार्ड बनवा रहा है तो वहीं कानपुर से आई मुन्नी देवी खुद अपने लिए इस कार्ड को बनवा रही थी. आरएफआईडी कार्ड बनवाने के बाद सात साल की कनक बड़ी खुशी से कहती है कि "अगर खोएंगे तो मिल जाएंगे. कोई पूछेगा ये क्या चीज है, तो कहेंगे कि अच्छी चीज है. अगर खोएंगे तो मिल जाएंगे. अपने गांव तो चली जाऊंगी." यही बात उसकी बहन श्रेया भी कहती है.
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बुज़ुर्गों के लिए भी कार्ड
यह आरएफआईडी कार्ड सिर्फ बच्चों के लिए नहीं बल्कि उन बुजुर्गों के लिए भी है जो अपना पता ठीक से नहीं बता पाते. इसकी जानकारी मिलने पर ऐसे बुजुर्ग भी इस काउंटर पर पहुंच रहे हैं. कानपुर की मुन्नी देवी ने अपना खुद का आरएफआईडी कार्ड इसलिए बनवाया कि अगर बिछुड़ जाएंगी तो इससे आसानी से वे अपनों तक पहुंच जाएंगी.
VIDEO : कुंभ मेले में विदेशी महामंडलेश्वर
पारम्परिक तरीका सिर्फ लाउडस्पीकर की आवाज़ रही है
कुंभ मेले में लाउड स्पीकर से आती आवाज आपका ध्यान खींच लेती है जिसमें किसी के खोने की सूचना हमेशा आती रहती है. यह तरीका आज भी प्रचलित है. खोया पाया केंद्र में आंसू बहाते हुए लोग अपने बिछुड़ों से मिलने के लिए आते रहते हैं. इनमें से कई तो तुरंत मिल जाते हैं पर कइयों को कई-कई दिन लग जाते हैं. पर अगर इस तरह की नई-नई तकनीक का इस्तेमाल हो तो शायद लोगों की मुश्किलें कम हो जाएंगी.
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