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This Article is From Dec 24, 2014

एनडीटीवी इंडिया एक्सक्लूसिव : आदिवासियों की हालत खस्ता, सरकार रिपोर्ट पर चुप

नई दिल्ली:

देश में आदिवासियों की हालत बहुत खराब है। ये बात एक बार फिर से सामने आई है। आदिवासियों की बदहाली पर एक रिपोर्ट सरकार के ही बनाए पैनल ने जमा की, लेकिन एनडीए सरकार पिछले छह महीने से इस रिपोर्ट को अपने पास रखे हुए हैं और ठोस कदम उठाने के बजाय चुपचाप बैठी हुई है।

जाने माने समाजशास्त्री वर्जिनियस खाखा की अध्यक्षता में पिछले साल (2013) अगस्त में एक उच्च स्तरीय पैनल बनाया गया जिसने कहा है कि आदिवासी समुदाय के लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, और कुपोषण के मामले में देश में सबसे बुरे हाल में हैं। भारत में आदिवासियों की संख्या आठ से नौ फीसद (करीब 8.6 फीसद) के बीच है, लेकिन वो विकास के चलाए जा रहे प्रोजेक्ट की सबसे अधिक मार झेल रहे हैं।

खाखा पैनल की यह 400 पन्नों की रिपोर्ट एनडीटीवी इंडिया के पास है जिसमें कहा गया है कि विकास के प्रोजेक्ट की वजह से विस्थापित होने वाले 40 से 60 फीसद लोग आदिवासी हैं जो बार बार अपने घरों से भगाए जाते हैं और उन्हें बसाने की कोई संजीदा योजना कभी नहीं बनाई जाती। 20 फीसद से भी कम विस्थापित लोगों को बसाने की कोशिश की गई और उसमें से अधिकतर कागज़ों पर ही है।

इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि सरकार ने आदिवासियों की ज़मीन पर प्रचुर मात्रा में खनिज होने की वजह से कई प्रोजेक्ट लगाए इसके लिए उनकी ज़मीन को पीपीपी मॉडल के तहत निजी कंपनियों को दिया गया। इसके बदले में आदिवासियों को कुछ नहीं मिला है।

खाखा पैनल की सदस्य ऊषा रामनाथन ने एनडीटीवी इंडिया से बात करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट को तैयार करते हुए उन्हें एहसास हुआ कि सरकार की नीतियां आदिवासियों के रहन-सहन और उनके परिवेश के हिसाब से हैं ही नहीं।

ऊषा रामनाथन ने एनडीटीवी इंडिया से कहा, ‘आज आदिवासी न केवल बार-बार अपने घरों से विस्थापित हो रहे हैं बल्कि वो बिना किसी ठोस वजह के जेलों में भी हैं। मिसाल के तौर पर जब हम छत्तीसगढ़ में जगदलपुर जेल में गए तो वहां कई आदिवासी जेलों में हैं जिन्हें नक्सली घटनाओं का आरोपी बनाकर जेल में डाला गया है। जब हमने जानने की कोशिश की कि ये नक्सली घटनाएं क्या हैं तो हमें कुछ नहीं बताया गया। जो लोग नक्सलियों के धमकाने पर उनकी मीटिंग में गए हों या उनके लिए छोटा मोटा कमा कर दिया वह सभी जेल में हैं, यानी आदिवासी आज ज़बरदस्त नाइंसाफी झेल रहे हैं।’

खाखा पैनल ने आदिवासियों के हालात को ठीक करने के लिए आदिवासी सलाहकार परिषदों को मज़बूत करने, भूमि अधिग्रहण कानून में आदिवासियों के हित में बदलाव करने और राज्यों में आपराधिक कानूनों को लागू करने में राज्यपाल को फैसला करने की छूट देने को कहा है।

‘आदिवासी आपराधिक मामलों में सरकारों से जूझ रहे हैं ऐसे में राज्यपाल को अधिकार होने चाहिए कि वह तय करें कि आदिवासी इलाकों में कुछ कानून लागू होंगे या नहीं’, ऊषा रामनाथन ने एनडीटीवी इंडिया से कहा।

उधर, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि, ‘सरकार को बताना होगा कि वो इस रिपोर्ट को कब सार्वजनिक कर रही है क्योंकि आदिवासी काफी बुरे हालात में हैं। हम चाहेंगे कि सरकार इस रिपोर्ट को लोगों के सामने रखे और इसकी सिफारिशों पर अमल करे।’

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