भ्रष्टाचार और आत्महत्या के लिए एक कांट्रेक्टर को उकसाने के आरोपों से घिरे बीजेपी के वरिष्ठ विधायक केएस ईश्वरप्पा से पुलिस ने अब तक पूछताछ नहीं की है. FIR में उन्हें आरोपी नम्बर एक बनाया गया है. कांट्रेक्टर संतोष पाटिल ने तो आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप खुदकुशी से पहले लगाया ही था, अब एक हिन्दू संत ने आरोप लगाए हैं कि धार्मिक संस्थानों को भी 30 फीसदी कमीशन देने के बाद ही सरकार अनुदान देती है.
कांट्रेक्टर संतोष पाटिल को आत्महत्या के लिए उकसाने की FIR ईश्वरप्पपा के खिलाफ है. एक हफ्ता गुजरने को है लेकिन अब तक पुलिस ने उनसे पूछताछ करना भी ज़रूरी नहीं समझा, इस सच्चाई के बावजूद कि ईश्वरप्पा को इस मामले में अव्वल नंबर का आरोपी बनाया गया है. सरकार की नींद अब भी नहीं खुली. अब कर्नाटक के एक बड़े लिंगायत संत ने भी आरोप लगाए हैं कि 30 फीसदी कमीशन देने के बाद ही सरकारी फंड मिलता है.
लिंगायत संत दिंगलेश्वर स्वामी ने कहा कि ''हम साधु संतों को भी 30 फ़ीसदी कमीशन देने के बाद ही सरकारी फंड जारी किया जाता है. अगर कमीशन न दें तो यह राशि हमें नहीं मिलती है. अधिकारी ने हमें बताया कि कमीशन देने से सब कुछ आराम से हो जाता है. आप खुद ही सोचिए कि भ्रष्टाचार किस हद तक व्याप्त है.''
मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री ईश्वरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा है. कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन भी बीजेपी सरकार पर 40 फीसदी कमीशनखोरी का आरोप लगातार लगा रहा है. इसके बावजूद मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई 30 फीसदी कमीशन के आरोपों की जांच की जगह उल्टा दिंगलेश्वर स्वामी से ही सबूत मांग रहे हैं.
मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि ''वह एक बड़े स्वामी हैं. सारा राज्य उनको जानता है. मैं उनसे विनती करता हूं कि सारे सबूत मुझे दें कि किससे पैसे मांगे, किसको उन्होंने पैसे दिए. मैं इस मामले को गंभीरता से लेकर इसकी जांच कराऊंगा.''
जरा सोचिए अगर मठों और ऐसे दूसरे धार्मिक संस्थानों से भी उगाही की जा रही हो तो वहां आम लोग किस तरह अपने छोटे-छोटे कामों के लिए पिस रहे होंगे. रिश्वतखोरी की एक अहम कड़ी ट्रांसफर-पोस्टिंग उद्योग है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वह कर्नाटक में खूब फल फूल रहा है.
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